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आसान विदेशी मुद्रा

आसान विदेशी मुद्रा
चित्रण : प्रज्ञा घोष / दिप्रिंट

एक मुद्रा को दूसरी मुद्रा में बदलने की सुविधा के बारे में

एक मुद्रा को दूसरी मुद्रा में बदलने की सुविधा से, अपने प्रॉडक्ट को ज़्यादा देशों तक पहुंचाया जा सकता है. यह खास तौर पर आपके लिए तब अहम हो सकता है, जब एक से ज़्यादा देशों में अपने प्रॉडक्ट बेचे और शिप किए जाते हैं. हालांकि, आपकी वेबसाइट पर हर देश की मुद्रा के लिए अलग प्रॉडक्ट पेज नहीं होते हैं. Merchant Center के सभी खातों में एक मुद्रा को दूसरी मुद्रा में बदलने की सुविधा अपने-आप चालू रहती है. बस वे प्रॉडक्ट और कीमतें सबमिट करें जो आपकी वेबसाइट पर इस्तेमाल की जाती हैं. इसके बाद, टूल आपके लिए विज्ञापनों में एक मुद्रा को दूसरी मुद्रा में बदले जाने का अनुमान लगा लेगा.

इस लेख में बताया गया है कि एक मुद्रा को दूसरी मुद्रा में बदलने की सुविधा कैसे काम करती है.

फ़ायदे

  • आपके प्रॉडक्ट के विज्ञापनों को आपकी वेबसाइट में बिना कोई बदलाव किए, अपने-आप दूसरे देश में दिखाती है. जिस देश में सामान बेचा जा रहा है अगर आपके पास उसकी मुद्रा स्वीकार करने की सुविधा नहीं है, तो एक मुद्रा से दूसरी मुद्रा में बदलने की सुविधा से आपको अपनी पहुंच बढ़ाने में मदद मिलती है.

यह सुविधा कैसे काम करती है

एक मुद्रा से दूसरी मुद्रा में बदलने की सुविधा, आपके प्रॉडक्ट डेटा में दी गई कीमत को अपने-आप टारगेट किए गए नए देश की मुद्रा में बदल देती है. साथ ही, आपके विज्ञापनों और मुफ़्त में दिखाई जाने वाली प्रॉडक्ट लिस्टिंग में दोनों कीमतें दिखती हैं. इससे आपकी लिस्टिंग और विज्ञापन, दूसरे देशों के लोगों को भी समझ में आ जाते हैं. साथ ही, कम से कम बदलाव करके, अपनी मौजूदा वेबसाइट और लैंडिंग पेजों का इस्तेमाल करना जारी रखा जा सकता है.

अगर अपने कैंपेन में, टारगेट किए गए देश की मुद्रा से अलग मुद्रा में कीमतें दी जाती हैं, तो कीमतें अपने-आप बदल जाएंगी और स्थानीय मुद्रा में दिखेंगी.

आपके विज्ञापन या लिस्टिंग में दिख रही, बदली हुई कीमत का अनुमान, Google Finance की विनिमय दरों के मुताबिक होगा.

आपके विज्ञापनों और लिस्टिंग में आपकी मुद्रा को उस देश की मुद्रा में बदल दिया जाएगा जहां प्रॉडक्ट को बेचा जाना है. हालांकि, किसी नए देश को टारगेट करने के लिए, आपको उस देश की भाषा से जुड़ी ज़रूरी शर्तों को अब भी पूरा करना होगा. ध्यान रखें कि आपको अपने टारगेट किए गए देश की शिपिंग से जुड़ी ज़रूरी शर्तों को पूरा करने के लिए, अपनी शिपिंग की सेटिंग भी अपडेट करनी होंगी. शिपिंग की जानकारी सेट अप करने का तरीका जानें

आपकी वेबसाइट आपकी मौजूदा मुद्रा में शुल्क लेती है, इसलिए उपयोगकर्ता की खरीदारी की आखिरी कीमत उपयोगकर्ता के क्रेडिट कार्ड या पैसे चुकाने की सेवा देने वाली दूसरी कंपनी की विनिमय दरों के हिसाब से होती है. इसका मतलब है कि खरीदारी की आखिरी कीमत और अनुमान अलग-अलग हो सकते हैं. पक्का करें कि आपके पूरे लैंडिंग पेज और वेबसाइट पर कीमत, सबसे पहले चुनी गई मुद्रा में साफ़ तौर पर दिख रही हो.

मटिल्डा का स्टोर अमेरिका में है और उनकी वेबसाइट पर प्रॉडक्ट की कीमतें अमेरिकन डॉलर में दिखती हैं. वह अमेरिका में विज्ञापन करने के लिए शॉपिंग विज्ञापनों का इस्तेमाल करती हैं, इसलिए उनके प्रॉडक्ट डेटा में कीमतें अमेरिकन डॉलर में होती हैं. वह कनाडा में भी प्रॉडक्ट को बेचती और शिप करती हैं, लेकिन उनकी वेबसाइट पर कीमतें कैनेडियन डॉलर में नहीं दिखतीं.

हालांकि, एक मुद्रा से दूसरी मुद्रा में बदलने की सुविधा के साथ, मटिल्डा कनाडा में विज्ञापन देने के लिए अपना अमेरिका का प्रॉडक्ट डेटा और लैंडिंग पेज इस्तेमाल कर सकती हैं, जिस पर कीमतें अमेरिकन डॉलर में दिखती हैं. प्रॉडक्ट डेटा सबमिट करने के बाद, वे अपने Google Ads खाते में एक नया शॉपिंग कैंपेन आसान विदेशी मुद्रा बनाती हैं. अब उनके पास दो कैंपेन हैं, एक अमेरिका के लिए और दूसरा कनाडा के लिए. इसके लिए, उन्होंने वही लैंडिंग पेज और खास तौर पर वही प्रॉडक्ट डेटा इस्तेमाल किया है.

मटिल्डा के कनाडा वाले कैंपेन में, उनके विज्ञापन पर प्रॉडक्ट की कीमतें कैनेडियन डॉलर आसान विदेशी मुद्रा में दिखती हैं और दूसरी मुद्रा के तौर पर अमेरिकी डॉलर वाली कीमतें भी होती हैं. दूसरी मुद्रा में बदली गई कीमतों से कनाडा के संभावित ग्राहकों को प्रॉडक्ट और उसकी कीमत को अपनी जानी-पहचानी मुद्रा में समझने में मदद मिलती है. लोग जब किसी विज्ञापन पर क्लिक करते हैं, तो उन्हें मटिल्डा का लैंडिंग पेज दिखता है जिसमें कीमत अमेरिकी डॉलर में होती हैं. वे अपनी खुद की मुद्रा में साफ़ तौर पर कीमत की जानकारी पाकर, चेकआउट प्रोसेस को पूरा कर सकते हैं.

नीति और ज़रूरी शर्तें

उपयोगकर्ताओं को आपकी मुफ़्त में दिखाई जाने आसान विदेशी मुद्रा वाली लिस्टिंग और विज्ञापन, उनकी मुद्रा से अलग मुद्रा में दिखते हैं. इसलिए, उन्हें लग सकता है कि वे किसी दूसरे देश की कंपनी या व्यापारी से खरीदारी कर रहे हैं. लोगों के अनुभव को एक जैसा रखने के लिए, आपको उस देश की कीमत और टैक्स से जुड़ी ज़रूरी शर्तों का पालन करना होगा जिसकी मुद्रा का इस्तेमाल आपके प्रॉडक्ट डेटा में हुआ है.

उदाहरण के लिए, अगर आपका प्रॉडक्ट डेटा अमेरिकी डॉलर में सबमिट किया गया है और आपकी वेबसाइट अमेरिकी डॉलर में शुल्क ले रही है, तो आपको अमेरिका की कीमत और टैक्स से जुड़ी ज़रूरी शर्तों का पालन करना होगा. दूसरी सभी ज़रूरी शर्तों के बारे में जानने के लिए, उस देश की स्थानीय ज़रूरी शर्तें देखें.

यह किन सुविधाओं के साथ काम करता है

Merchant Center और Google Ads की इन सुविधाओं के साथ, एक मुद्रा को दूसरी मुद्रा में बदलने की सुविधा का इस्तेमाल किया जा सकता है.

UPSC परीक्षा कम्प्रेहैन्सिव न्यूज़ एनालिसिस - 14 October, 2022 UPSC CNA in Hindi

निम्नलिखित में से किस राष्ट्रीय उद्यान का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है?

(a) बलफकरम राष्ट्रीय उद्यान

(b) देहिंग पटकाई राष्ट्रीय उद्यान

(c) मौलिंग राष्ट्रीय उद्यान

(d) नमदाफा राष्ट्रीय उद्यान

उत्तर: d

व्याख्या:

  • नमदाफा राष्ट्रीय उद्यान वर्ष 1983 में अरुणाचल प्रदेश में स्थापित एक विशाल संरक्षित क्षेत्र है।
  • 1,000 से अधिक फूलों और लगभग 1,400 जीव प्रजातियों के साथ, यह पूर्वी हिमालय में एक जैव विविधता हॉटस्पॉट है।
  • यह पूर्वोत्तर भारत में अरुणाचल प्रदेश राज्य में चांगलांग जिले के भीतर भारत और म्यांमार के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित है।
  • यह दुनिया का एकमात्र उद्यान है जहां बड़ी बिल्ली की चार प्रजातियां हैं बाघ (पैंथेरा टाइग्रिस), तेंदुआ (पैंथेरा पार्डस), हिम तेंदुआ (पैंथेरा उनसिया) और धूमिल तेंदुआ (नियोफेलिस नेबुलोसा) पाई जाती हैं।
  • हालाँकि, राष्ट्रीय उद्यान में हिम तेंदुओं को अभी तक न तो देखा गया है और न ही दर्ज किया गया है और हाल के सर्वेक्षण के आधार पर वन्यजीव अधिकारियों को हिम तेंदुए की मौजूदगी की पुष्टि का इंतजार है।
  • भारत में पाई जाने वाली एकमात्र ‘वानर’ प्रजाति, हूलॉक गिबन्स, इस राष्ट्रीय उद्यान में पाई जाती है।

प्रश्न 5. भारत के संदर्भ में, ‘अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA)’ के ‘अतिरिक्त नयाचार (एडिशनल प्रोटोकॉल)’ का अनुसमर्थन करने का निहितार्थ क्या है? (CSE-PYQ-2018)(स्तर – कठिन)

(a) असैनिक परमाणु रिएक्टर IAEA के रक्षोपायों के अधीन आ जाते हैं।

(b) सैनिक परमाणु अधिष्ठान IAEA के निरीक्षण के अधीन आ जाते हैं।

(c) देश के पास नाभिकीय पूर्तिकर्ता समूह (NSG) से यूरेनियम के क्रय का विशेषाधिकार हो जाएगा।

(d) देश स्वतः NSG का सदस्य बन जाता है।

उत्तर: a

व्याख्या:

  • पुराने आईएईए (International आसान विदेशी मुद्रा Atomic Energy Agency (IAEA)) सुरक्षा उपायों के तहत सभी एनपीटी हस्ताक्षरकर्ता अपने परमाणु स्थलों को निर्दिष्ट करेंगे और आईएईए निर्दिष्ट स्थलों का निरीक्षण करेगा।
  • इस प्रकार, आईएईए, पुराने सुरक्षा उपायों के तहत, केवल किसी देश द्वारा घोषित या निर्दिष्ट स्थलों पर ही अनधिकृत गतिविधियों के लिए निरीक्षण कर आसान विदेशी मुद्रा सकता था।
  • इस प्रकार इसने मूल रूप से राष्ट्रों के लिए गुप्त परमाणु कार्यक्रम चलाने का एक विकल्प खुला छोड़ दिया – जैसा कि इराक के मामले में हुआ था।
  • इस प्रकार, वर्ष 1993 में, IAEA ने मौजूदा सुरक्षा व्यवस्था को कड़ा करने के लिए अतिरिक्त प्रोटोकॉल (AP) तैयार किए।
  • हालांकि, भारत विशिष्ट अतिरिक्त प्रोटोकॉल आईएईए को उन गतिविधियों में बाधा डालने या हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं देते हैं जो भारत के सुरक्षा समझौतों के दायरे से बाहर हैं, इस प्रकार भारत IAEA समझौते के बाहर एक सैन्य परमाणु कार्यक्रम के संचालन का अधिकार सुरक्षित रखता है।

UPSC मुख्य परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न :

प्रश्न 1. “पेलेट संयंत्र और टॉरफेक्शन दिल्ली के प्रदूषण का जवाब हो सकता है”। व्याख्या कीजिए। (150 शब्द, 10 अंक) (जीएस-3; पर्यावरण)

प्रश्न 2.”मनरेगा योजना महामारी के दौरान और बाद विफलता और एक सफलता दोनों थी”। समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (250 शब्द, 15 अंक) (जीएस-2; शासन)

विदेशी मुद्रा का प्रबंधन जरूरी

बीते आठ महीनों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने शेयर और बॉन्ड की बिकवाली कर लगभग 40 अरब डॉलर भारत से निकाल लिया है. इसी अवधि में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 52 अरब डॉलर की कमी हुई है. अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपये के मूल्य में गिरावट जारी है. निर्यात की अपेक्षा आयात में तेजी से वृद्धि हो रही है. इसका मतलब है कि हमें भुगतान के लिए निर्यात से प्राप्त डॉलर से कहीं अधिक डॉलर की जरूरत आसान विदेशी मुद्रा है.

सामान्य परिस्थितियों में भी भारत के पास डॉलर की संभालने लायक कमी रहती आयी है, जो अमूमन सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का एक से दो प्रतिशत होती है. आम तौर पर यह 50 अरब डॉलर से कम रहती है और आयात से अधिक निर्यात होने पर इसमें बढ़ोतरी होती है. इस कमी की भरपाई शेयर बाजार में विदेशी निवेश, विदेशी कर्ज, निजी साझेदारी या बॉन्ड खरीद से की जाती है.

इस तरह से आनेवाली पूंजी हमेशा ही चालू खाता घाटे से अधिक रही है, जिससे भारत का 'भुगतान संतुलन' खाता अधिशेष में रहता है. विदेशी कर्ज और उधार से ही ऐसा अधिशेष रखना जरूरी नहीं कि अच्छी बात ही हो, खासकर तब दुनियाभर में कर्ज का दबाव है. लेकिन सामान्य दिनों में विदेशियों का आराम से भारतीय अर्थव्यवस्था को कर्ज देना उनके भरोसे का संकेत है.

यह सब तेजी से बदलने को है और भारत के विदेशी मुद्रा कोष के संरक्षक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने चेतावनी का शुरुआती संकेत दे दिया है. अगर भाग्य ने साथ दिया और मान लिया जाये कि इस वित्त वर्ष में 80 अरब डॉलर की बड़ी रकम भी भारत में आये, तब भी आसान विदेशी मुद्रा भुगतान संतुलन खाते में 30-40 अरब डॉलर की कमी रहेगी. हमारा चालू खाता घाटा जीडीपी का 3.2 प्रतिशत तक होकर 100 अरब डॉलर के पार जा सकता है.

विदेशी मुद्रा के इस अतिरिक्त दबाव को झेलने के लिए हमारा भंडार पूरा नहीं होगा. इसीलिए रिजर्व बैंक ने अप्रवासी भारतीयों से डॉलर में जमा को आकर्षित करने के लिए कुछ छूट दी है. इसने विदेशी कर्ज लेना भी आसान बनाया है तथा भारत सरकार के बॉन्ड के विदेशी स्वामित्व की सीमा भी बढ़ा दी है. इन उपायों का उद्देश्य अधिक डॉलर आकर्षित करना है.

बढ़ते व्यापार और चालू खाता घाटा तथा इस साल चुकाये जाने वाले विदेशी कर्ज की मात्रा बढ़ने जैसे चिंताजनक संकेतों को देखते हुए ऐसे उपायों की जरूरत थी. भारत का कुल विदेशी कर्ज 620 अरब डॉलर है और इसमें से 267 अरब डॉलर आगामी नौ माह में चुकाना है. कम अवधि के कर्ज का यह अनुपात 44 प्रतिशत है और खतरनाक रूप से अधिक है.

कर्ज लेने वाली निजी कंपनियों को या तो नया कर्ज लेना होगा या फिर भारत के मुद्रा भंडार से धन निकालना होगा. दूसरा विकल्प वांछित नहीं है क्योंकि मुद्रा भंडार घट रहा है और उसे बढ़ाने की जरूरत है. पहला विकल्प आसान नहीं होगा क्योंकि डॉलर विकासशील देशों में जाने के बजाय अमेरिका की ओर जा रहा है. किसी भी स्थिति में नये कर्ज पर अधिक ब्याज देना होगा, जिससे भविष्य में बोझ बढ़ेगा.

रिजर्व बैंक की पहलें केंद्र सरकार द्वारा डॉलर बचाने के उपायों के साथ की गयी हैं. सोना पर आयात शुल्क बढ़ाकर 12.5 प्रतिशत कर दिया गया है. बहुत अधिक मांग के कारण भारत दुनिया में सोने का सबसे बड़ा आयातक है. शुल्क बढ़ाने से मांग कुछ कम भले हो, पर इससे तस्करी भी बढ़ सकती है. गैर-जरूरी आयातों पर कुछ रोक लगने की संभावना है ताकि डॉलर का जाना रुक सके.

विदेशी मुद्रा और विनिमय दर का प्रबंधन रिजर्व बैंक की जिम्मेदारी है. अभी शेयर बाजार पर निवेशकों के निकलने के अलावा तेल की बढ़ी कीमतों के कारण भी दबाव है. इससे भारत का कुल आयात खर्च (सालाना 150 अरब डॉलर से अधिक) प्रभावित होता है तथा अनुदान खर्च भी बढ़ता है क्योंकि तेल व खाद के दाम का पूरा भार उपभोक्ताओं पर नहीं डाला जाता है.

इस अतिरिक्त वित्तीय बोझ का सामना करने के लिए सरकार ने इस्पात और तेल शोधक कंपनियों के मुनाफे पर निर्यात कर लगाया है. इस कर से एक लाख करोड़ रुपये से अधिक के राजस्व संग्रहण की अपेक्षा है. यह रुपये के मूल्य में गिरावट के असर से निपटने का एक अप्रत्यक्ष तरीका है.

लेकिन निर्यात कर एक असाधारण और अपवादस्वरूप उपाय है तथा इसे तभी सही ठहराया जा सकता है, जब तेल की कीमतें बहुत अधिक बढ़ी हैं. भारत सरकार पर राज्यों को मुआवजा देने का वित्तीय भार भी है, जो वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण में कमी के कारण देना होता है. राज्य सरकारों पर अपने कर्ज का भी बड़ा बोझ है और 10 राज्यों की स्थिति तो खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है, जो उनके दिवालिया होने का कारण भी बन सकता है.

बाहरी मोर्चे पर रुपये पर दबाव केवल तेल की कीमतें बढ़ने से आयात खर्च में वृद्धि के कारण नहीं है. तेल और सोने के अलावा अन्य कई उत्पादों, जैसे- इलेक्ट्रॉनिक्स, केमिकल, कोयला आदि के आयात में अप्रैल से जून के बीच 32 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. जून में सोने का आयात पिछले साल जून से 170 प्रतिशत अधिक रहा था. यह देखना होगा कि अधिक आयात शुल्क से सोना आयात कम होता है या नहीं.

भारतीय संप्रभु गोल्ड बॉन्ड खरीद सकते हैं, जो सोने का डिमैट विकल्प है और कीमती विदेशी मुद्रा भी बाहर नहीं जाती. सरकार को आक्रामक होकर बॉन्ड बेचना चाहिए. आगामी महीनों में घरेलू और बाहरी मोर्चों पर दोहरे घाटे के प्रबंधन के लिए ठोस उपाय करने होंगे. उच्च वित्तीय घाटा उच्च ब्याज दरों का कारण बनता है और उच्च व्यापार घाटा रुपये को कमजोर करता है.

अगर दोनों घाटों को कम करने के लिए इन दो नीतिगत औजारों (ब्याज दर और विनिमय दर) पर ठीक से काम किया जाता है, तो हम संकट से बच सकते हैं. रुपये को कमजोर करना एक स्वाभाविक ढाल है, पर निर्यात बढ़ने तक अल्प अवधि में व्यापार घाटे को बढ़ा सकता है.

इसी तरह वित्तीय घाटा कम करने के लिए खर्च पर नियंत्रण और अधिक कर राजस्व संग्रहण जरूरी है. अधिक राजस्व के लिए आर्थिक वृद्धि और रोजगार में बढ़त की आवश्यकता है. दुनिया में मंदी की हवाओं के कारण अगर तेल के दाम गिरते हैं, तो यह भारत के लिए मिला-जुला वरदान होगा क्योंकि वैश्विक मंदी भारतीय निर्यात के लिए ठीक नहीं है, जो व्यापार घाटा कम करने के लिए जरूरी है.

विदेशी मुद्रा के लिए रिजर्व बैंक का कदम अच्छा है, मगर मूलभूत सुधारों की जरूरत है

रिजर्व बैंक ज्यादा विदेशी मुद्रा की उम्मीद कर रहा है और रुपये की गिरावट को भी रोकना चाहता है मगर वैश्विक आर्थिक स्थिति और यूएस फेड द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि के कारण रुपये पर दबाव बना रहेगा.

चित्रण : प्रज्ञा घोष / दिप्रिंट

विदेशी मुद्रा की आवक बढ़ाने और रुपये की गिरावट को रोकने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल में कुछ उपायों की घोषणा की है. अब तक वह रुपये की गिरावट को रोकने के लिए दखल देने वाले उपायों का सहारा ले रहा था. अब उसने विदेशी मुद्रा की आवक बढ़ाने के लिए पूंजी पर नियंत्रण को ढीला करने का उपाय अपनाया है.

नये उपायों के तहत सरकारी और कॉर्पोरेट बॉन्ड में विदेशी निवेश की शर्तों को ढीला करना, विदेशी मुद्रा में उधार लेने की सीमा बढ़ाना और बैंकों को प्रवासियों से ज्यादा बैंक डिपॉजिट आकर्षित करने की शर्तों को उदार बनाना शामिल है.

इनमें से कुछ उपाय सही दिशा में हैं और माहौल को मजबूत तो बना सकते हैं लेकिन जोखिम से बचने और डॉलर को सुरक्षित रखने के वैश्विक माहौल के कारण रुपये पर इन उपायों का सीमित असर ही पड़ेगा. इसके अलावा, उन उपायों के अस्थायी स्वरूप के कारण विदेशी निवेशकों को ये बहुत पसंद नहीं आ सकते हैं.

कर्ज में विदेशी निवेश को बढ़ावा

सरकारी बॉन्डों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) पारंपरिक रूप से कई नियंत्रणों से प्रभावित रहा है. हाल के वर्षों में उन नियंत्रणों को ढीला किया गया है. यह स्वागतयोग्य कदम है क्योंकि रुपये की प्रधानता वाले बॉन्डों में विदेशी निवेश के कारण कर्ज लेने वाले को विनिमय दर का जोखिम नहीं झेलना पड़ता.

सरकारी बॉन्डों में एफपीआइ की सीमा ऐसे प्रतिभूतियों के बकाया स्टॉक के 6 प्रतिशत के बराबर तय की गई है. इस सीमा के अलावा, अल्प-अवधि वाले सरकारी और कॉर्पोरेट बॉन्डों में एफपीआई द्वारा निवेश की सीमा एक खास एफपीआई के कुल निवेश के 30 प्रतिशत के बराबर तय की गई है.

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एफपीआई की आवक की शर्तों को उदार बनाने के लिए रिजर्व बैंक ने मार्च 2020 में ‘फुल्ली एक्सेसिबल रूट’ (एफएआर) की घोषणा की थी जिसके तहत एफपीआइ को उन सरकारी प्रतिभूतियों के चुनिन्दा ग्रुप में असीमित पहुंच दी गई जिनका निर्धारण रिजर्व बैंक समय-समय पर करता रहता है. फिलहाल, 5, 10, 30 साल की अवधि वाली सभी सरकारी प्रतिभूतियों को एफएआर के तहत स्वीकृत प्रतिभूतियों में शामिल माना गया है. हाल की घोषणा के बाद 7, 14 साल के सरकारी बॉन्डों को भी एफएआर में शामिल कर लिया जाएगा. इरादा यह है कि प्रतिभूतियों का दायरा इतना बढ़ा दिया जाए कि विदेशी निवेश की कोई सीमा न रहे.

सरकारी और कॉर्पोरेट बॉन्डों में विदेशी निवेश बढ़ाने के लिए, अल्प-अवधि वाले बॉन्डों में निवेश की 30 फीसदी की सीमा को 31 अक्टूबर 2022 तक के लिए खत्म कर दिया गया है.

ये कदम तो सही दिशा में उठाए गए हैं लेकिन पिछले कुछ महीनों से डॉलर बॉन्डों पर लाभ जिस तरह बढ़ा है उसके चलते भारतीय बॉन्डों में निवेश करने के लिए विदेशी निवेशकों को कम ही प्रोत्साहन मिलेगा. यह सीमाओं के उपयोग के डेटा से भी जाहिर है. सरकारी बॉन्डों में निवेश की मौजूदा 28 फीसदी की सीमा से ज्यादा का इस्तेमाल विदेशी निवेशक नहीं कर रहे हैं.

नियमों में बार-बार बदलाव और अस्थायी रियायतों के कारण अनिश्चितता पैदा होती है और निवेशकों की दिलचस्पी भी घटती है. हाल के बदलावों के साथ कर्ज में विदेशी निवेश की कुल व्यवस्था को भी सरल बनाना पड़ेगा.

विदेशी मुद्रा में उधार लेने की शर्तों में छूट

कंपनियां विदेशी मुद्रा में जो उधार लेती हैं या ‘एक्सटर्नल कमर्शियल बोरोइंग’ (ईसीबी) उसमें उधार लेने की रकम, उधार की रकम पर अधिकतम ब्याज दर पर, और जिस काम के लिए उधार लेना है उस सबको लेकर कुछ प्रतिबंध हैं. रिजर्व बैंक ने उधार की रकम की सीमा फिलहाल 75 करोड़ डॉलर से बढ़ाकर 1.5 अरब डॉलर कर दी है. विदेशी मुद्रा में उधर पर ब्याज की शर्तों को उदार किया गया है. जबकि रुपये की कीमत तेजी से गिर रही है भारतीय फ़र्में अगर विदेशी मुद्रा में ज्यादा काम करेंगी तो उधार की रकम को मुद्रा की कीमत में फेरबदल से अछूता नहीं रखा गया तो व्यवस्थागत जोखिम पैदा हो सकता है.

रिजर्व बैंक की ‘फाइनांशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट’ के मुताबिक, विदेशी मुद्रा में लिए गए 44 फीसदी कर्ज के साथ कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं होती. इनमें से कुछ कर्ज के साथ स्वतः सुरक्षा जुड़ी होती है जिसमें करदार की आय भी विदेशी मुद्रा में होती है. चिंता की बात यह है कि सुरक्षा के साथ वाला विदेशी मुद्रा कर्ज पिछले कुछ महीनों में कम हुआ है.

‘एक्सटर्नल डेट’ पर जारी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के विदेशी कर्ज में ईसीबी का हिस्सा सबसे बड़ा है. वैश्विक स्तर पर बेहद नीची ब्याज दर का फायदा उठाते हुए कंपनियों ने पिछले दो साल में विदेशी मुद्रा में अच्छा-खासा कर्ज लिया है. लेकिन अब स्थिति बदल गई है. ब्याज दरें बढ़ रही हैं और इस साल रुपये की कीमत में 6 फीसदी की कमी आई है.

हालांकि, व्यवस्था यह कहती है कि कर्ज के कुछ भाग को सुरक्षा दी जानी चाहिए. कमजोर रुपया और ऊंची ब्याज दरों के चलते जो माहौल बना है उसमें विदेशी मुद्रा के कर्ज को उदार बनाना विवेकपूर्ण नहीं होगा. इसके अलावा यह व्यवस्था विवेकाधीन है और कुछ कर्जदारों को सुरक्षा की जरूरत से मुक्त रखती है.

आप्रवासियों द्वारा डिपॉजिट को आसान बनाना

फॉरेन करेंसी नॉन रेसिडेंट बैंक और नॉन रेसिडेंट (एक्सटर्नल) रुपी डिपॉजिट को सीआरआर और एसएलआर की शर्तों से मुक्त कर दिया गया है. इन डिपोजिटों पर सीमाबंदी कुछ समय के लिए हटा दी गई है. ब्याज की सीमा हटाने से बैंक नॉन रेसिडेंट डिपोजिटरों को ऊंची ब्याज दर दे सकते हैं. इससे इन डिपोजिटों को भारतीय बैंकों की ओर देखने का प्रोत्साहन मिलेगा. लेकिन यह छूट 31 अक्तूबर 2022 तक ही है इसलिए इसका असर सीमित ही होगा.

वैश्विक वित्तीय स्थितियों और यूएस फेड द्वारा ब्याज दरें बढ़ाने के कारण रुपये पर दबाव बना रहा सकता है. विदेशी मुद्रा की आवक बढ़ाने के लिए हाल में जो कदम उठाए गए हैं वे स्वागतयोग्य हैं और वे मध्य अवधि के लिए विदेशी मुद्रा की आवक बढ़ा सकते हैं. लेकिन उनके साथ मूलभूत सुधारों को भी लागू करने और विदेशी निवेश का नियमन करने वाली कुल व्यवस्था में विवेकाधीनता को कम करने और उसे सरल बनाने की जरूरत है.

(राधिका पांडे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में सलाहकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)

अमेरिकी डॉलर को रौंद रही रूस-चीन की स्ट्रैटजी: पुतिन ने सस्ता तेल बेचा, जिनपिंग ने सस्ता कर्ज बांटा; भारत भी अहम किरदार

24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला करते ही रूस पर प्रतिबंधों की बाढ़ आ गई। अमेरिकी डॉलर में कारोबार न कर पाने का संकट खड़ा हो गया। रूसी करेंसी रूबल की वैल्यू धड़ाम हो गई। रूस की इकोनॉमी तबाह होने की भविष्यवाणियां होने लगीं, लेकिन पुतिन तो जैसे इसी मौके के इंतजार में थे। उन्होंने जिनपिंग के साथ एक ऐसी स्ट्रैटजी को एक्टिवेट कर दिया, जिसकी तैयारी दोनों पिछले कई सालों से कर रहे थे। ये स्ट्रैटजी दुनिया से अमेरिका डॉलर के दबदबे को खत्म कर सकती है।

भास्कर एक्सप्लेनर में हम रूस-चीन की उसी स्ट्रैटजी को आसान भाषा में जानेंगे, लेकिन उससे पहले 2 सवालों के जवाब जान लेना जरूरी है.

सवाल- 1: अमेरिकी डॉलर दुनिया की सबसे मजबूत करेंसी कैसे बन गई?

जवाबः 1944 से पहले तक ज्यादातर देश अपनी मुद्रा को सोने के मूल्य के आधार पर तय करते थे। यानी उस देश की सरकार के पास सोने का जितना भंडार है, बस उतनी ही मूल्य की करेंसी जारी करते थे।

1944 में न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स में दुनिया के विकसित देश मिले और उन्होंने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सभी मुद्राओं की विनिमय दर यानी करेंसी एक्सचेंज रेट को तय किया, क्योंकि उस वक्त अमेरिका के पास सबसे ज्यादा सोने का भंडार था।

1944 से ही अमेरिकी डॉलर दुनिया के विदेशी मुद्रा भंडार पर राज कर रहा है। (फाइल फोटो)

इसका असर एक छोटे से उदाहरण से समझिए। मान लीजिए भारत को पाकिस्तान की करेंसी पर भरोसा नहीं है। वो उससे डॉलर में कारोबार कर सकता था, क्योंकि उसे पता था कि अमेरिकी डॉलर डूबेगा नहीं और जरूरत पड़ने पर अमेरिका डॉलर के बदले सोना दे देगा।

ये व्यवस्था करीब 3 दशक चली। 1970 की शुरुआत में कई देशों ने डॉलर के बदले सोने की मांग शुरू कर दी। ये देश अमेरिका को डॉलर देते और उसके बदले में सोना लेते आसान विदेशी मुद्रा थे। इससे अमेरिका का स्वर्ण भंडार खत्म होने लगा।

1971 में अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने डॉलर को सोने से अलग कर दिया। इसके बावजूद देशों ने डॉलर में लेन-देन जारी रखा, क्योंकि तब तक डॉलर दुनिया की सबसे सुरक्षित मुद्रा बन चुका था।

1971 में अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने डॉलर को सोने से अलग कर दिया। इसके बावजूद देशों ने डॉलर में लेन-देन जारी रखा, क्योंकि तब तक डॉलर दुनिया की सबसे सुरक्षित मुद्रा बन चुका था।

डॉलर की मजबूती की एक बड़ी वजह आसान विदेशी मुद्रा थी। दरअसल 1945 में अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने सऊदी के साथ एक करार किया। करार की शर्त ये थी कि उसकी सुरक्षा अमेरिका करेगा और बदले में सऊदी सिर्फ डॉलर में तेल बेचेगा। यानी अगर देशों को तेल खरीदना है, तो उनके पास डॉलर होना जरूरी आसान विदेशी मुद्रा है।

फिलहाल दुनिया का 80% व्यापार डॉलर में होता है और दुनिया का करीब 60% विदेशी मुद्रा भंडार डॉलर में है।

सवाल- 2: डॉलर की पावर के दम पर अमेरिका बैठे-बिठाए कैसे अरबों कमाता है?

जवाबः SWIFT नेटवर्क के दम पर अमेरिका बैठे-बिठाए अरबों कमाता है। मान लीजिए अडाणी ग्रुप को पाकिस्तान के किसी कारोबारी से 10 हजार डॉलर की सूरजमुखी खरीदना है। SWIFT नेटवर्क के जरिए ये ट्रांजैक्शन 5 स्टेप में होगा…

स्टेप-1: सबसे पहले अडाणी ग्रुप अपने भारतीय बैंक को 10 हजार डॉलर के बराबर भारतीय रुपए भेजेगा।

स्टेप-2: भारतीय बैंकों का अमेरिकी बैंक में खाता होता है। वहां से वो डॉलर में एक्सचेंज करके पेमेंट करने को कहेंगे।

स्टेप-3: भारतीय खाते वाला अमेरिकी बैंक दूसरे पाकिस्तानी खाते वाले अमेरिकी बैंक में पैसा ट्रांसफर करेगा।

स्टेप-4: दूसरा अमेरिकी बैंक पाकिस्तानी बैंक में पैसे ट्रांसफर कर देगा।

स्टेप-5: पाकिस्तानी बैंक से कारोबारी 10 हजार डॉलर के बराबर पाकिस्तानी रुपए निकाल सकता है।

SWIFT नेटवर्क में फिलहाल 200 से ज्यादा देशों के 11,000 बैंक शामिल हैं। जो अमेरिकी बैंकों में अपना विदेशी मुद्रा भंडार रखते हैं। अब सारा पैसा तो व्यापार में लगा नहीं होता, इसलिए देश अपने एक्स्ट्रा पैसे को अमेरिकी आसान विदेशी मुद्रा आसान विदेशी मुद्रा बॉन्ड में लगा देते हैं, जिससे कुछ ब्याज मिलता रहे। सभी देशों को मिलाकर ये पैसा करीब 7 ट्रिलियन डॉलर है। यानी भारत की इकोनॉमी से भी दोगुना ज्यादा। इस पैसे का इस्तेमाल अमेरिका अपनी ग्रोथ में करता है।

अब आते हैं अपने प्रमुख सवाल पर। यानी डॉलर के दबदबे को कम करने के लिए चीन-रूस की स्ट्रैटजी क्या है? सबसे पहले बात रूस की.

रूस के राष्ट्रपति पुतिन और चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग ब्रासीलिया की एक बैठक में साथ-साथ मौजूद।

रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल और गैस का उत्पादन करने वाला देश है और उसके सबसे बड़े खरीदार यूरोपीय देश हैं। रूस ने प्राकृतिक गैस खरीदने वाले यूरोपीय संघ के देशों से कहा कि वो डॉलर या यूरो के बजाय बिल का भुगतान रूबल में करें।

यानी जो देश पहले रूस से गैस खरीदने के लिए अमेरिकी बैंक में डॉलर रिजर्व रखते थे, उन्हें अब रूसी सेंट्रल बैंक में रूबल रिजर्व रखना पड़ रहा है। इसी तरह बाकी चीजों के निर्यात के लिए भी रूस अनफ्रेंडली देशों से रूबल में पेमेंट करने की मांग कर रहा है।

जून 2022 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने BRICS देशों की करेंसी का एक नया इंटरनेशनल रिजर्व बनाने की बात कही थी। पुतिन के इस प्रपोजल पर फिलहाल विचार किया जा रहा है। BRICS देशों में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और साउथ अफ्रीका हैं।

डॉलर को युआन से रिप्लेस करने के लिए चीन की कोशिशें

SWIFT की ही तरह चीन के सेंट्रल बैंक पीपल्स बैंक ऑफ चाइना ने CIPS नाम का सिस्टम बनाया है। इस पेमेंट सिस्टम से करीब 103 देशों के 1300 बैंक जुड़ चुके हैं। पिछले साल इस सिस्टम के जरिए 80 ट्रिलियन युआन (चीन की करेंसी) से ज्यादा का ट्रांजैक्शन हुआ। जनवरी 2022 में युआन दुनिया में चौथी सबसे ज्यादा ट्रांजैक्शन वाली करेंसी बन गई। उससे आगे सिर्फ US डॉलर, यूरो और ब्रिटिश पाउंड थे।

युआन रिजर्व को बढ़ावा देने के लिए चीन ने 40 से ज्यादा देशों के साथ करेंसी स्वैप एग्रीमेंट किया है। इस एग्रीमेंट के तहत 2 देशों को व्यापार करने कि लिए हर बार SWIFT सिस्टम की जरूरत नहीं। एक फिक्स अमाउंट का ट्रेड वो देश अपनी करेंसी में कर सकते हैं।

इसके अलावा सऊदी अरब से भी युआन में तेल बेचने की बात हो रही है। यानी जो देश तेल खरीदने के लिए अभी डॉलर रिजर्व रखते हैं, वो युआन में रिजर्व रखेंगे। इससे डॉलर का दबदबा कम होगा।

रूस-चीन की इस कोशिश में भारत का किरदार

डॉलर के दबदबे को कम करने की चीन-रूस की कोशिश में भारत भी एक किरदार निभा रहा है। यूक्रेन जंग शुरू होने के बाद भारत और रूस ने डॉलर को दरकिनार करते हुए रुपए और रूबल में आपसी कारोबार शुरू किया।

14 सितंबर को फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन के प्रेसिडेंट ए. शक्तिवेल ने कहा है कि भारत ने रूस के साथ रुपए में कारोबार के लिए SBI को आथोराइज किया है। 7 सितंबर को रिजर्व बैंक और फाइनेंस मिनिस्ट्री ने बैंक से इंपोर्ट और एक्सपोर्ट ट्रांजैक्शन को रुपए में करने का बढ़ावा देने की बात कही थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक इससे रुपए को मजबूती मिलेगी।

आर्टिकल में आगे बढ़ने से पहले एक पोल पर हम आपकी राय जानना चाहते हैं.

आगे का रास्ता.

एक्सपर्ट्स का मानना है कि डॉलर के दबदबे को कम करने के लिए चीन और रूस की कोशिशें नुकसान तो पहुंचा रहीं, लेकिन बड़ा इम्पैक्ट आने में काफी वक्त लगेगा। डॉलर के खिलाफ इस अभियान में रूस और चीन को दूसरे देशों के साथ की दरकार है।

हालांकि, एक्सपर्ट्स युआन को डॉलर की जगह फिट नहीं पाते। इसकी सबसे बड़ी वजह चीन की सरकार है। यहां लोकतंत्र नहीं है, जिस वजह से इंस्टीट्यूशन में ट्रांसपेरेंसी भी नहीं है। कोई भी देश ऐसी किसी करेंसी को रिजर्व नहीं रखना चाहेगा, जिसके डूबने का खतरा ज्यादा हो।

References…

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