इंट्राडे ट्रेडिंग के उदाहरण

ऐसे घटते बढ़ते है शेयरों के दाम
Stocks में Trading V/S Investment | Trading vs Investment in Stocks Hindi.
दोस्तो Share Market में ट्रेडिंग करना एक Temporary चीज है लेकिन अगर आप इसे लंबे समय तक करते हैं तो क्या होगा? क्या यह ट्रेडिंग के बजाय Investment करने के योग्य है? Trading & Investing के बीच वास्तविक अंतर क्या है? Different प्रकार के ट्रेड क्या हैं?
आज हम जानेंगे कि "Stocks में Trading V/S Investment | Trading vs Investment in Stocks Hindi" के बीच अंतर है। Trading और Investment strategy के Different प्रकार हैं। शेयर बाजार में अलग अलग सेगमेंट में अलग अलग तरह के ट्रेड होते हैं।
Stocks में Trading V/S Investment | Trading vs Investment in Stocks Hindi. |
स्टॉक मार्केट में ट्रेडिंग क्या है? - What is Trading in Stock Market?
ट्रेडिंग का मतलब केवल बेचना और खरीदना है। इसलिए, जब आप बाजार में Securities खरीद रहे हैं और फिर उन्हें लाभ के लिए बेच रहे हैं, तो यह एक Profitable Business है। मान लीजिए कि आप रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के 100 शेयर 2500 रुपए प्रति शेयर की कीमत पर खरीदते हैं और एक बार शेयर की कीमत बढ़कर 2800 हो जाती है, तो आप उसे बेच देते हैं। तो 2800 - 2500 = 300 x 100 मात्रा का लाभ होता है जो कि 30,000 के बराबर है।
30,000 रुपये का लाभ देखना वाकई अच्छा लगता है लेकिन आप इसका विश्लेषण करने की कोशिश करें। यहां आपने 100 शेयरों की मात्रा के साथ 2500 प्रति शेयर का निवेश किया जो इसे 2,50,000 रुपये का निवेश बनाता है। और, आपने 250,000 का निवेश करके 30,000 इंट्राडे ट्रेडिंग के उदाहरण का लाभ कमाया जो कि 12% का लाभ है और यह 12% समान होगा चाहे आपने 1 शेयर खरीदा हो या 100 शेयर। यहां रिलायंस का शेयर भाव 12% बढ़कर 2500 से 2800 हो गया।
इंट्राडे ट्रेडिंग क्या है? - What is Intraday Trading?
उपरोक्त उदाहरण में, हमें 12% इंट्राडे ट्रेडिंग के उदाहरण इंट्राडे ट्रेडिंग के उदाहरण का लाभ हुआ और मान लीजिए कि इस तरह की चाल दिखाने में 12 दिन लगे। तो, आपको उस अवधि के लिए इंतजार करना होगा। एक और तरीका यह है कि आपने किसी तरह यह पता लगा लिया कि रिलायंस की कीमत आज अच्छी बढ़त देने वाली है। और, आप इसकी अच्छी मात्रा खरीदते हैं मान लीजिए 2500 की कीमत पर और दिन के अंत तक यह 2650 तक चला जाता है लेकिन आप इसे कहीं 2600 के औसत मूल्य पर बेचते हैं जिसका अर्थ है प्रति शेयर 100 रुपये का लाभ।
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अब, आप कहेंगे कि 2,50,000 रुपये की राशि से हम 100 शेयरों की मात्रा खरीद सकते हैं जिससे यह कुल 10,000 का लाभ कमाता है। लेकिन, अंतर यह है कि इसे इंट्राडे ट्रेडिंग कहा जाता है, क्यों? क्योंकि आप एक ही दिन में शेयर खरीद और बेच रहे हैं। व्यापार के पहले रूप को स्विंग ट्रेडिंग कहा जाता है जहां आपने इंट्राडे ट्रेडिंग के उदाहरण इसे खरीदा और फिर इसे बेचने के लिए कुछ दिनों तक इंतजार किया।
स्विंग ट्रेडिंग V/S इंट्राडे ट्रेडिंग - Swing trading vs Intraday Trading
शेयरों की खरीद के लिए ऑर्डर देते समय, आपको यह Specified करना होगा कि आप शेयरों की डिलीवरी कहां करना चाहते हैं या सिर्फ एक इंट्राडे ट्रेड। ज़ेरोधा में डिलीवरी को सीएनसी यानी कैश एंड कैरी और इंट्राडे को एमआईएस कहा जाता है। यदि आप सीएनसी चुन रहे हैं, तो इसका मतलब है कि आप शेयरों की पूरी कीमत का भुगतान करते हैं और अपने ट्रेडिंग खाते में डिलीवरी प्राप्त करते हैं जैसा कि हमने पहले उदाहरण में 2,500 की कीमत पर 100 शेयरों के लिए 2,50,000 रुपये का भुगतान करके किया था। अगर आप इसे कुछ दिनों के बाद बेच रहे हैं जैसे हमने किया, इसे स्विंग ट्रेडिंग भी कहा जाता है।
लेकिन, दूसरे उदाहरण में, जहां हम इंट्राडे इंट्राडे ट्रेडिंग के उदाहरण यानी एमआईएस में 100 शेयर खरीद रहे हैं, इसका मतलब है कि हमें दिन खत्म होने इंट्राडे ट्रेडिंग के उदाहरण से पहले इसे बेचना होगा। इसे स्क्वेरिंग ऑफ पोजीशन कहा जाता है और यदि आप इस स्क्वायर ऑफ को अपने दम पर नहीं करते हैं, तो ब्रोकर ऐसा करेगा और जुर्माना भी वसूल करेगा। ज़ेरोधा में, जुर्माना 50 रुपये है यदि आप दोपहर 3.20 बजे से पहले अपनी स्थिति को कम नहीं करते हैं। सवाल यह है कि कोई इसे एमआईएस व्यापार के रूप में क्यों Specified करेगा जहां उन्हें उसी दिन व्यापार को बंद करना होगा? इस सवाल का जवाब मार्जिन में है।
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Share Market Update News: किसी कंपनी को जब अपना विस्तार करना होता है और उसके लिए पैसे चाहिए होते हैं तो उसके पास पैसा बनाने के कई विकल्प होते हैं. उन्हीं विकल्पों में से एक होता है, अपनी हिस्सेदारी को लोगों में बांटना. इसके साथ कंपनी आईपीओ (इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग) निकालती है. आप कंपनी को पैसे देकर इन आईपीओ (कंपनी में हिस्सेदारी) को कंपनी इंट्राडे ट्रेडिंग के उदाहरण से सीधा खरीद सकते हैं. इसके साथ ही कंपनी के ये शेयर आप कभी भी और किसी को भी बेच सकते हैं.
क्या होता है प्राइमरी और सेकेंड्री मार्केट
लेकिन जब कंपनी शेयर बेच रही थी, तब अगर आप उनको नहीं खरीद पाए और अब आप उन्हें खरीदना चाहते हैं तो आप किसी और से ये शेयर खरीद सकते हैं. आईपीओ के अलावा आप एक बार भी न तो कंपनी से शेयर खरीदते हैं और न ही कंपनी को बेचते हैं. आप तो किसी ओर से शेयर खरीद रहे हैं और किसी और को ही शेयर बेच रहे हैं. यहां आप सेकेंड हैंड शेयरों की खरीद-फरोख्त कर रहे हैं. इसलिए जहां आईपीओ से शेयरों की खरीद-फरोख्त कर रहे हैं, उसे प्राइमरी और जहां सेकेंड हैंड शेयरों की बिक्री-खरीद हो रही है, उसे सेकेन्ड्री मार्केट कहा जाता है. आप जो रोजना शेयर मार्केट की खबरें सुनते हैं, वो वास्तव में एक सेकेन्ड्री मार्केट है.
सेबी के नए मार्जिन नियम आज से लागू, यहां जानिए अपने हर सवाल का जवाब
सेबी मार्जिन के दो तरह के नियमों को लागू करना चाहता है. पहला नियम कैश मार्केट में अपफ्रंट मार्जिन से संबंधित है.
मैं मार्जिन को पूरी तरह से नहीं समझता, क्या मुझे इसके बारे में विस्तार से बता सकते हैं?
मार्जिन का मतलब उस रकम से है, जो आपके ट्रेडिंग अकाउंट में होती है. सामान्य रूप से निवेशक को अपने ट्रेडिंग अकाउंट में जमा रकम से शेयर खरीदने की इजाजत होनी चाहिए. लेकिन, व्यवहार में मामला थोड़ा अलग है. कई ब्रोकिंग कंपनियां अपने क्लाइंट को शेयर खरीदने के लिए रकम उधार देती हैं. इसे लिवरेज या मार्जिन ट्रेडिंग कहते हैं. इंट्राडे ट्रेडिंग में यह ज्यादा देखने को मिलता है.
Margin Rule To Change From Today: आज से 100 फीसदी मार्जिन रूल लागू, जानिए- सेबी ने क्यों किया बदलाव?
Published: September 1, 2021 9:54 AM IST
Margin Rule To इंट्राडे ट्रेडिंग के उदाहरण Change From Today: सेबी ने 1 सितंबर यानी आज से पीक मार्जिन के नियमों में बदलाव कर दिया है. आज से ट्रेडिंग के लिए 100 फीसदी मार्जिन अपफ्रंट रखने की जरूरत होगी. पहले यह सिर्फ 75 फीसदी था. यानी शेयर खरीदने या बेचने के लिए 75 फीसदी अपफ्रंट मार्जिन की जरूरत थी. आज से इंट्राडे पोजीशन में भी 100 फीसदी मार्जिन की जरूरत होगी.
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जानिए – 100 फीसदी मार्जिन रूल का ट्रेडर्स पर क्या होगा असर?
फ्यूचर एंड ऑप्शन (F&O) में ट्रेडिंग करने वालों को अब मार्जिन के तौर पर ज्यादा फंड रखना होगा. अब पीक मार्जिन के तौर पर 100 फीसदी मार्जिन अपफ्रंट रखना होगा. एक ही दिन में शेयर खरीदकर बेचने वाले यानी इंट्राडे करने वालों को भी 100 फीसदी मार्जिन की जरूरत होगी. पहले 75 फीसदी मार्जिन अपफ्रंट की जरूरत होती थी.
आसान शब्दों में कहें तो अगर कोई ट्रेडर 10 लाख रुपये का निफ्टी कॉन्ट्रैक्ट खरीदना चाहता है तो अब उसे बतौर 20 फीसदी मार्जिन 2 लाख रुपये रखना होगा. लेकिन पहले सिर्फ 1.50 लाख रुपये मार्जिन रखने इंट्राडे ट्रेडिंग के उदाहरण की जरूरत होती थी.
जानिए- क्या है पीक मार्जिन?
पिछले साल तक कारोबारी सत्र के अंत में मार्जिन वसूला जाता था. उदाहरण के तौर पर अगर आपने कल एक करोड़ रुपये F&O में निवेश किया तो आज के मार्केट सत्र में भी अतिरिक्त 1 करोड़ रुपये का निवेश इंट्राडे ट्रेडिंग के उदाहरण कर सकते थे. पुराने सिस्टम में एक करोड़ रुपये के अतिरिक्त निवेश पर अलग से कोई मार्जिन नहीं चुकाना पड़ता था. यानी कल के मार्केट सत्र से लेकर आज के मार्केट सत्र के बीच सिर्फ एक करोड़ रुपये के मार्जिन पर आप 2 करोड़ रुपये F&O में निवेश इंट्राडे ट्रेडिंग के उदाहरण कर सकते थे. लेकिन नए नियम के मुताबिक, आपको अतिरिक्त एक करोड़ रुपये पर भी मार्जिन देना होगा.
ट्रेडिंग क्या है | ऑनलाइन ट्रेडिंग और ऑफलाइन ट्रेडिंग की जानकारी
शेयर बाजार में शेयरों की खरीद और बिक्री करने की क्रिया को ट्रेडिंग कहते हैं स्टॉक मार्केट में कोई भी शेयर सस्ते दामों पर खरीदना और भाव बढ़ने पर उसे बेच देने की क्रिया को ही ट्रेडिंग कहते हैं और शेयर खरीदने और बेचने वाले व्यक्ति को निवेशक या ट्रेडर कहते हैं निवेशक और ट्रेडर के बीच बहुत कम ही अंतर होता है निवेशक एक तरह से किसी भी शेयर को खरीदकर कर उसमें निवेश करता है उसे लंबे अंतराल के बाद भाव बढ़ने पर बेचता है किंतु ट्रेडर को निवेशक नहीं कहा जा सकता ट्रेडर एक ही दिन में शेयरों को खरीद बेच कर पैसे कमाता है शेयर बाजार में ट्रेडर हो या निवेशक यदि पैसा कमाना है तो ट्रेडिंग करना ही पड़ेगा निवेशक हफ्ते में 15 दिन में या 1 महीने में ट्रेड करता है किंतु ट्रेडर सुबह से शाम तक ट्रेडिंग करके पैसे कमाता है
ट्रेडिंग क्या है | ऑनलाइन ट्रेडिंग और ऑफलाइन ट्रेडिंग की जानकारी हिंदी में
अब हम बात करेंगे कि ट्रेडिंग कितने प्रकार की होती है
ट्रेडिंग मुख्यतः तीन प्रकार की होती है
1 इंट्राडे ट्रेडिंग ( intraday trading)
2 पोजीशनल ट्रेडिंग ( positional trading)
3 शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग ( short term treading)