प्रवृत्ति की ताकत की परिभाषा

सकारात्मक सोच
हम हमेशा एक कहावत सुनते हैं, जैसा हम सोचते हैं वैसा ही हम बन जाते हैं। मन के हारे हार है – मन के जीते जीत। ये कहावत पूरी तरह से सही हैं, क्योकि हमारा मन एक वक्त में एक ही विचार कर सकता हैं – सकारात्मक या नकारात्मक ! इस संसार में जो भी घटनाएं घट रही हैं या हो रही हैं तो निश्चित रूप से उसको देखने का भी नजरिया सकारात्मक या नकारात्मक हो सकता है। अर्थात हमेशा कुछ न कुछ कमी निकालते रहते हैं जब कि कुछ लोग उसी घटना को सकारात्मक रूप में देखते हैं और उसमे ये खोजते है कि इसमें क्या अच्छाई है, और उसी अच्छाई से सिख लेकर नित अपना जीवन सफल बनाते चले जाते हैं। वास्तव में हमारे जीवन में जो होता हैं अच्छे के लिए होता है। हमें कुछ समय के लिए उस घटना से दुःख जरुर होता है लेकिन बाद में यही पता चलता है कि ये हमारे लिए अच्छा ही हुआ। मेरे एक मित्र ने एक ऋषि के दो शिष्यों की कहानी सुनाई थी। ऋषि के दो शिष्यों में एक सकारात्मक सोच तथा दूसरा नकारात्मक सोच वाला था। सकारात्मक सोच वाला हमेशा दूसरों की भलाई तथा दूसरा नकारात्मक सोच वाला बहुत क्रोधी था। एक दिन ऋषि दोनों शिष्यों को लेकर वन में परीक्षा लेने गए। एक फलदार वृक्ष के पास दोनों शिष्यों को लेकर ऋषि ठहर गए। ऋषि ने पेड़ की ओर देखा और शिष्यों से कहा की इस पेड़ को ध्यान से देखो। फिर उन्होंने पहले शिष्य से पूछा की तुम्हें क्या दिखाई देता है? सकारात्मक सोच रखने वाले शिष्य ने अत्यंत विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया कि ये पेड़ बहुत ही विनम्र है लोग इसको पत्थर मारते हैं फिर भी ये बिना कुछ कहे फल देता है । इसी तरह इंसान को भी होना चाहिए, कितनी भी परेशानी हो विनम्रता और त्याग की भावना नहीं छोड़नी चाहिए। इंसान को फलदार पेड़ की तरह अपना जीवन जीना चाहिए। परमार्थ में ही अपने जीवन का पालन करना चाहिए। नकारात्मक सोच वाले शिष्य ने गुस्से से कहा ये पेड़ बहुत धूर्त है, बिना पत्थर मारे ये कभी फल नहीं देता इससे फल लेने के लिए प्रवृत्ति की ताकत की परिभाषा इसे मारना ही पड़ेगा। मनुष्य को अपनी आवश्यकता की चीजें दूसरों से छीन लेनी चाहिए। यदि संसार में जीना है तो पत्थर मारे बिना काम नहीं चलेगा। कुछ अभीष्ट की प्राप्ति का सबसे सरल उपाय पत्थर मारना ही है। अब उदाहरण हमारे सामने है। पेड़ दोनों शिष्यों के लिए समान है। केवल सोच का फर्क है। पेड़ किसी प्रकार का विभेद दोनों के बीच नहीं कर रहा है। लेकिन दोनों शिष्यों की सोच के कारण पेड़ की देने की उपयोगिता बदल रही है। सकारात्मक सोच हमारे जीवन पर बहुत गहरा असर डालती है। नकारात्मक सोच के व्यक्ति अच्छी चीज़ों मे भी बुराई ही ढूंढते हैं। गुलाब के फूल को देखकर हम सीख सकते हैं – काँटों से घिरा होने के बाद भी संसार को खुशबु दे रहा है। गुलाब का फूल चारों तरफ से संकटों से घिरा है लेकिन अपनी खुशबू बिखेरने के कार्य को नहीं छोड़ रहा है। मेरा एक मित्र हमेशा सबकी भलाई में लगा रहता था। अपना कार्य छोड़कर हमेशा दूसरो के कार्य पर ध्यान केन्द्रित करता था। मित्र को लग रहा था कि यह प्रवृत्ति सकारात्मक प्रवृत्ति है। लेकिन मित्र यह भूल गया कि उसे भी अपना कार्य करना है। लेकिन मित्र की सकारात्मक प्रवृत्ति होने के चलते केवल विश्वास पर सारे कार्य अपने अधीनस्थ के ऊपर छोड़ दिया। अब संसार तो सभी जगह है। जब वक्त आया तो सारे अधीनस्थ ने उनका साथ छोड़ दिया। अब वे जाँच के दायरे में आ गए। उनके ऊपर काफी समस्याएँ आ गयी। वे चक्रव्यूह में फंसते चले गए। तो उस मित्र को अपने सकारात्मक प्रवृत्ति पर काफी खेद हुआ। लेकिन उसी मित्र को अन्य मित्र ने सलाह दी कि गुलाब के फूल की तरह खुशबू बिखेरते रहिए। सुख-दुःख आते – जाते रहता है। अपनी मौलिक सोच को कभी मत छोडिए। वही एक मनुष्य की पहचान होती है। अब ये हम पर निर्भर करता है कि हम अपने दुखों को देखकर और दुखी होते चले जाएँ ये इससे सीख लेकर अपने जीवन को एक नयी दिशा में प्रवृत्ति की ताकत की परिभाषा ले जाएँ। प्रकृति का ये नियम है कि हम जितना संघर्ष करेंगे , हमारी सफलता का प्रतिशत उतना ही अधिक होगा। इसलिए संघर्ष करना हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बने, संघर्ष से भागे नहीं बल्क़ि इसे अपना दोस्त बना लें। हर कोई अपने जीवन में अपनी लड़ाई लड़ रहा है और सबके अपने अपने दुख हैं। इसीलिए कम से कम हम जब सभी अपनों से मिलते हैं तब एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने के बजाय एक दूसरे को प्यार, स्नेह और साथ प्रवृत्ति की ताकत की परिभाषा रहने की खुशी का एहसास दें, जीवन की इस यात्रा को लड़ने की बजाय प्यार और भरोसे से आसानी से पार किया जा सकता है। यह जीवन है, परिवार और मित्रों की भावनाओं के साथ हमें होना चाहिए तथा एक-दूसरे को समझने की कोशिश करनी चाहिए, अलग-अलग सोचना, एक-दूसरे के बारे में सोचना और बेहतर तालमेल बिठाना – यही प्रयास हमारा होना चाहिए। अंत में हम इतना ही कहना चाहेंगे कि सकारात्मक सोच का अर्थ नकारात्मक बातों को कम सोचना है। सकारात्मक सोच की भी अपनी सीमा होती है। नकारात्मक सोच को बिलकुल भी समाप्त नहीं कर देना है। सकारात्मक सोच से व्यक्ति की तरक्की होती चली जाती है तथा अनावश्यक तनाव से मनुष्य बचता है जिससे स्वास्थ्य ठीक रहता है।
व्यंजना शब्द-शक्ति की परिभाषा एवं भेद ( Vyanjana Shabd Shakti : Arth, Paribhasha Evam Bhed )
जहां शब्द का अर्थ अभिधा तथा लक्षणा शब्द-शक्तियों के द्वारा नहीं निकलता वहाँ शब्द की गहराई में छिपे हुए अर्थ को प्रकट करने वाली शक्ति व्यंजना शब्द-शक्ति कहलाती है | इससे जो अर्थ प्रकट होता है, उसे व्यंग्यार्थ कहते हैं |
‘व्यंजना’ शब्द ‘वि+अंजना’ से बना है जिसका अर्थ है – विशेष दृष्टि | इसका अर्थ यह है कि इसमें विशेष दृष्टि से देखकर अर्थ निकालना पड़ता है |
उदाहरण – घर गंगा में है | यहाँ व्यंग्यार्थ है कि घर गंगा की तरह पवित्र है |
व्यंजना शब्द-शक्ति के भेद ( Vyanjana Shabd Shakti Ke Bhed )
व्यंजना शब्द शक्ति के दो भेद हैं – ( क ) शाब्दी व्यंजना, (ख ) आर्थी व्यंजना |
(क ) शाब्दी व्यंजना – जहाँ व्यंजना शब्द-विशेष के कारण उत्पन्न होती है, वहाँ शाब्दी व्यंजना होती है | अगर उस शब्द के स्थान पर उसका कोई समानार्थक शब्द रख दिया जाए तो व्यंग्यार्थ नहीं निकलता |
उदाहरण – चिर जीवो जोरी जुरै, क्यों न स्नेह गंभीर |
को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के बीर ||
यहाँ वृषभानुजा ( वृषभानु +जा ) का अर्थ वृषभानु की पुत्री ( राधा ) निकालने पर हलधर का अर्थ बलराम होगा और हलधर के बीर का अर्थ होगा-कृष्ण |
वृषभानुजा ( वृषभ +अनुजा ) का अर्थ बछिया लेने पर हलधर का अर्थ बैल होगा और हलधर के बीर का अर्थ सांड होगा |
यहां व्यंजना ‘वृषभानुजा’ और ‘हलधर के बीर’ पर आधारित है यदि इन दोनों शब्दों के स्थान पर इनके समानार्थक शब्द रख दिए जाएं तो व्यंग्यार्थ नहीं निकलेगा | अत: यहाँ शाब्दी व्यंजना है |
(ख ) आर्थी व्यंजना – जहाँ व्यंजना शब्द-विशेष पर आधारित न होकर अर्थ पर आधारित होती है, उसे आर्थी व्यंजना कहते हैं | आर्थी व्यंजना के दो प्रकार हैं – (अ ) अभिधामूलक आर्थी व्यंजना, (आ ) लक्षणामूलक प्रवृत्ति की ताकत की परिभाषा आर्थी व्यंजना |
(अ ) अभिधामूलक आर्थी व्यंजना – जहाँ पहले अभिधार्थ यानि मुख्यार्थ निकलता है तथा फिर व्यंग्यार्थ निकलता है, वहाँ अभिधामूलक व्यंजना होती है |
उदाहरण – अनेकार्थी शब्दों में अभिधामूला आर्थी व्यंजना होती है | उदाहरण के लिये ‘हरि’ शब्द के अनेक अर्थ हैं, जैसे भगवान, विष्णु, इंद्र, मर्कट, सिंह आदि | ऐसे में भगवान के अतिरिक्त जितने भी अर्थ निकलेंगे वे अभिधामूला आर्थी व्यंजना के उदाहरण होंगे |
( आ ) लक्षणामूलक आर्थी व्यंजना – प्रयोजनवती लक्षणा के सभी उदाहरण लक्षणामूलक आर्थी व्यंजना के उदाहरण भी हैं |
उदाहरण – सुरेश निरा बंदर है | इस वाक्य में प्रयोजनवती लक्षणा है | क्योंकि सुरेश की शरारती प्रवृत्ति के कारण इसमें उस पर व्यंग्य किया गया है | इसलिए यहाँ लक्षणामूलक आर्थी व्यंजना भी है |
पावर और टॉर्क के बीच अंतर
शक्ति और के बीच प्रमुख अंतर में से एकटोक़ यह है कि शक्ति किसी वस्तु द्वारा किए गए कार्य की मात्रा है जबकि टोक़ किसी विशेष दिशा में वस्तु को घुमाने के लिए बल की प्रवृत्ति है। तुलना चार्ट में उनके बीच कुछ अन्य अंतर नीचे दिए गए हैं
सामग्री: पावर बनाम टोक़
तुलना चार्ट
तुलना के लिए आधार | शक्ति | टोक़ |
---|---|---|
परिभाषा | यह समय की प्रति यूनिट खपत ऊर्जा की मात्रा है। | यह एक बल का माप है जिसका प्रभाव वस्तु को घुमा सकता है। |
SI इकाई | वाट (W) | न्यूटन मीटर (N-m) |
इकाई | जूल प्रति सेकंड | जौल |
पीढ़ी | जनरेटर और बैटरी | इंगित करता है जब बल किसी वस्तु पर लागू होता है। |
सूत्र | काम और समय का अनुपात। | बल और दूरी का उत्पाद। |
प्रतीक | पी | τ |
प्रकार | दो (विद्युत शक्ति और यांत्रिक शक्ति) | कोई विशिष्ट प्रकार नहीं |
मोजमाप साधन | ऊर्जा मीटर, मल्टीमीटर | टॉर्क सेंसर या टॉर्क मीटर |
मात्रा | अदिश | वेक्टर |
अनुप्रयोगों | घरेलू उपकरण, उद्योग, ग्रिड आदि। | बोतल कैप, मोटर शाफ्ट आदि खोलने के लिए कार का पहिया, कार स्टीयरिंग |
शक्ति की परिभाषा
शक्ति काम की मात्रा का माप है, या दूसरे शब्दों में, शक्ति को समय की प्रति यूनिट ऊर्जा के उपयोग की मात्रा के रूप में परिभाषित किया गया है। यह प्रवृत्ति की ताकत की परिभाषा जूल / सेकंड में मापा जाता है, और उनकी SI इकाई है वाट। शक्ति को मुख्य रूप से दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है, अर्थात्, विद्युत शक्ति और यांत्रिक शक्ति।
विद्युत शक्ति वह दर है जिस पर काम किया जाता हैएक विद्युत परिपथ द्वारा किया जाता है। विद्युत शक्ति को मुख्य रूप से तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है, अर्थात्, स्पष्ट शक्ति, वास्तविक शक्ति और प्रतिक्रियाशील शक्ति। स्पष्ट शक्ति वोल्टेज और वर्तमान के आरएमएस मूल्य का उत्पाद है। इसे निष्क्रिय शक्ति भी कहा जाता है।
सक्रिय शक्ति ही वास्तविक शक्ति हैसर्किट में विघटित, और यह पी द्वारा दर्शाया गया है। सक्रिय शक्ति केवल प्रतिरोध में खपत होती है। प्रतिक्रियाशील शक्ति केवल सर्किट की प्रतिक्रिया में खपत की जाने वाली शक्ति है। प्रतीक Q इसका प्रतिनिधित्व करता है। इसे VAR में मापा जाता है।
यांत्रिक शक्ति काम करने में उपयोग की जाने वाली ऊर्जा की मात्रा है। इसे जूल / सेकंड में मापा जाता है।
टोक़ की परिभाषा
टोक़ गोलाकार बल का माप हैजिसका प्रभाव वस्तु को घुमा सकता है। दूसरे शब्दों में, यह बल और दूरी का गुणनफल है। टोक़ को घुमा शक्ति भी कहा जाता है। टॉर्क की SI इकाई न्यूटन-मीटर है और न्यूटन-मीटर जूल के बराबर है।
टोक़ के उदाहरण - कसने या खोलने के लिएबोतल की टोपी, हमने हाथ के माध्यम से बल लगाया है। हम जितना अधिक बल लगाते हैं, उतना अधिक टॉर्क बढ़ता है। स्पैनर के माध्यम से अखरोट को कसने या ढीला करने के लिए और कार के टॉर्क के स्टीयरिंग को लगाने के लिए भी लगाया जाता है।
नीचे दिए गए सूत्र द्वारा टोक़ व्यक्त किया गया है।
पावर और टॉर्क के बीच मुख्य अंतर
- शक्ति समय की प्रति इकाई खपत ऊर्जा की मात्रा है, जबकि टोक़ ऊर्जा का माप है जिसका प्रभाव वस्तु को घुमा सकता है।
- बिजली की इकाई एक जूल प्रति सेकंड है, जबकि टोक़ की इकाई जूल के बराबर है।
- शक्ति की SI इकाई वाट है, जबकि टोक़ की SI इकाई न्यूटन-मीटर है।
- विद्युत शक्ति जनरेटर के कारण या बैटरी के माध्यम से होती है और काम करने से यांत्रिक शक्ति विकसित होती है। जब किसी वस्तु या पिंड पर बल लगाया जाता है तो टोक़ को प्रेरित किया जाता है।
- शक्ति को समय के संबंध में खपत ऊर्जा के प्रवृत्ति की ताकत की परिभाषा अनुपात के रूप में परिभाषित किया गया है, जबकि टोक़ बल और दूरी का उत्पाद है।
- शक्ति का प्रतिनिधित्व पत्र द्वारा किया जाता है पी जबकि टोक़ को ग्रीक वर्णमाला द्वारा दर्शाया गया है Τ (ताऊ)।
- शक्ति एक अदिश राशि है (यानी दिशाहीन) जबकि टोक़ एक वेक्टर मात्रा है। टोक़ ने वस्तु को एक दिशा में घुमा दिया जिसके विपरीत बल उस पर लगाया जाता है।
- शक्ति को मुख्य रूप से दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है, अर्थात्, यांत्रिक शक्ति प्रवृत्ति की ताकत की परिभाषा और विद्युत शक्ति। कोई विशिष्ट प्रकार का टॉर्क नहीं है।
- विद्युत शक्ति को ऊर्जा मीटर या मल्टीमीटर के माध्यम से मापा जाता है जबकि टोक़ को टोक़ सेंसर या टोक़ मीटर के माध्यम से मापा जाता है।
याद करने की बात
वाहनों में, शक्ति एक की क्षमता हैइंजन अपनी अधिकतम गति पर वाहन चलाने के लिए। बिजली वाहनों की गति के बराबर है। लेकिन वाहन की खींचने की क्षमता टोक़ द्वारा निर्धारित की जाती है। इसके अलावा, हम कह सकते हैं कि टोक़ वाहनों की भार वहन क्षमता है।
अभिप्रेरणा अर्थ ,परिभाषा ,प्रकार
( Motivation) लैटिन भाषा के शब्द मोटम (Motum) या मोवेयर (Moveers) से बना है, जिसका अर्थ है 'To Move' अर्थात गति प्रदान करना। इस प्रकार अभिप्रेरणा वह कारक है, जो कार्य को गति प्रदान करता है। । अभिप्रेरणा के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाओं पर चर्चा करते हैं।
वुडवर्थ : "अभिप्रेरणा व्यक्तियों की दशा का वह समूह है, जो किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए निश्चित व्यवहार को स्पष्ट करती है।"
गैट्स व अन्य के अनसार, "अभिप्रेरणा प्राणी के भीतर शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक दशा है, जो उसे विशेष प्रकार की क्रिया करने के लिए प्रेरित करती है।"
इस प्रकार उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि अभिप्रेरणा प्राणी की वह आंतरिक स्थिति है, जो प्राणी में क्रियाशीलता उत्पन्न करती है और लक्ष्य प्राप्ति तक चलती रहती है।
जन्मजात या आंतरिक अभिप्रेरणा : इस प्रकार अभिप्रेरणा प्राणी में जन्म के साथ ही उपस्थित रहती है। ये प्राथमिक या जैविक अभिप्रेरणाएँ भी कहलाती है। इन अभिप्रेरणाओ में भूख, प्यास, काम, नींद और मल त्याग आती है। इन आभप्रेरणाओको हो सकारात्मक आभप्रेरणा कहते हैं। इस अभिप्रेरणा में बाल किसो भी कार्य को आतरिक इच्छा से करता है।
बाह्यय अर्जित अभिप्रेरणा : आभप्रेरणा जन्म से तो व्यक्ति में उपस्थित नहीं होती है लेकिन व्याका सामाजिक जीवन व्यतीत करने के लिए इन्हें समाज, परिवार, विद्यालय, समवयस्क समूहों से आजत करता है। इन अभिप्रेरणाओं का सामाजिक महत्त्व होने के कारण ये सामाजिक अभिप्रेरणा कहलाती है। इनमें पुरस्कार, दण्ड, निंदा, प्रशंसा, अनुमोदन आदि प्रमुख अभिप्रेरणाओं के इस सामान्य वर्गीकरण के अलावा कुछ मनोवैज्ञानिकों ने भी अभिप्रेरणा या अभिप्रेरकों के प्रकार बताये है जो निम्न प्रकार से है
1. मैस्लो के अनुसार : मैस्लो दो प्रकार के अभिप्रेरक बताता है
(अ) जन्मजात अभिप्रेरक :
(ब) अर्जित अभिप्रेरकः
2. थाम्पसन के अनुसार :
(अ) स्वभाविक अभिप्रेरक :
(ब) कृत्रिम अभिप्रेरक :
व्यवहार को नियंत्रित करने, पोत्साहित करने अथवा वांछित दिशा देने के लिए स्वभाविक अभिप्रेरकों के पूरक के रूप में प्रयुक्त किए जाते हैं। उदाहरणार्थ : प्रशंसा, पुरस्कार, दण्ड आदि।
3.गरेट के अनुसार :
(अ) जेविक अभिप्रेरक :
जीव की जैविक आवश्यकताओं के कारण होती है। इसमें मुख्यतया सवग आते है। जैसे-प्रेम, क्रोध,भय, ईर्ष्या आदि।
(ब) मनोवैज्ञानिक अभिप्रेरक :
व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं के कारण उत्पन्न होते है। इसमें मूल प्रवृत्तियां आती हैउदाहरणार्थ : रचनात्मकता, जिज्ञासा, पलायन आदि।
(स) सामाजिक अभिप्रेरक :
अभिप्रेरणा चक्र : मनोवैज्ञानिकों ने अभिप्रेरणा की प्रक्रिया को स्पष्ट करने के लिए अभिप्रेरणा चक्र का प्रतिपादन किया, जिसके तीन सोपान होते हैं, यह निम्नवत है
की कमी या अति किसी कारण से उत्पन्न हो जाये तो इसे आवश्यकता कहा जाता है। उदाहरणार्थ : प्यास लगने पर व्यक्ति के शरीर की कोशिकाओं में पानी की कमी हो जाती है, पानी की यह कमी आवश्यकता है।
2. प्रणोद/चालक/अंतर्नोद : यह अभिप्रेरणा चक्र का दूसरा सोपान है। जब प्राणी में आवश्यकता उत्पन्न होती है तो उसमें क्रियाशीलता बढ़ जाती है, यह क्रियाशीलता या तनाव ही चालक कहलाता है। उदाहरणार्थ-शरीर की कोशिकाओं में पानी की कमी आवश्यकता एवं प्यास इसका चालक है।
3. प्रोत्साहन : प्रोत्साहन को उद्दीपन कहा गया है। यह व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है तथा इसकी प्राप्ति से आवश्यकता संतुष्ट हो जाती है और चालक की चलाकता समाप्त हो जाती है।
उदाहरणार्थ : शरीर की कोशिकाओं में भोजन की कमी आवश्यकता भूख इसका चालक जबकि भोजन इसका प्रोत्साहन है। भूखा व्यक्ति भोजन खाता है तो कोशिकाओं में भोजन की पूर्ति हो जाती है तथा भूख नामक चालक समाप्त हो जाता है।
अभिप्रेरणा के सिद्धांत :
अभिप्रेरणा के सिद्धांत इस बात की व्याख्या करते हैं कि कोई व्यक्ति किसी विशिष्ट व्यवहार को क्यों करता है, उसके व्यवहार के लिए कौन से कारक उत्तरदायी है? अभिप्रेरणा के प्रमुख सिद्धांत निम्न प्रकार से हैं
मनोवैज्ञानिक विलियम मैक्डुगल है। विलियम मैक्डुगल कहता है— मूल प्रवृत्तियाँ ही व्यक्ति के व्यवहार का उद्गम होती है। विलियम मैक्डुगल 14 मूल-प्रवृत्तियाँ बताई है तथा प्रत्येक मूल-प्रवृत्ति से एक संवेग जुड़ा हुआ बताते है।
2.मनोविश्लेषण सिद्धांत : इस सिद्धांत का प्रतिपादन फ्रायड़ द्वारा किया गया है। इस सिद्धांत के अनुसार मानव व्यवहार को मूल-प्रवृत्तियां तथा अचेतन मन प्रेरित करता है। फ्रायड़ दो तरह की मूल-प्रवृत्तियाँ बताता
(i) जीवन से संबेधित (ईरोज) : निर्माणात्मक कार्यो की प्रवृत्ति। (ii) मृत्यु से संबंधित (थनैटॉस) : विध्वंसात्मक कार्यो की प्रवृत्ति।
3.चालक/अंतर्नोद/प्रणोद सिद्धांत : इस सिद्धांत का प्रतिपादन अमरीकी मनोवैज्ञानिक क्लार्क एल. हल द्वारा किया गया है। इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य में आवश्यकता से तनाव या क्रियाशीलता उत्पन्न होती है, जिसे चालक/अंतर्नोद या प्रणोद कहा जाता है। यही चालक अर्थात् तनाव व्यक्ति को विशेष व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है। इसे Push Theor भी कहा जाता है।
4.प्रोत्साहन सिद्धांत : यह सिद्धांत बोल्स एवं काफमैन द्वारा दिया गया है। इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति अपने पर्यावरण में स्थित वस्तु, स्थिति अथवा क्रिया से प्रभावित
व्यवहार-वादियों की देन मानी जाती है। जिसमें स्किनर का विशेष योगदान है। इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति किसी उद्दीपन से प्रेरित होकर ही व्यवहार करता है।
सिद्धांत : इस सिद्धांत का प्रतिपादन अब्राहम मैस्लो द्वारा 1954 में किया गया। मैरलो वह प्रथम मनोवैज्ञानिक है. जिसने "आत्मसिद्धि" प्रत्यय का अध्ययन किया तथा इसे एक महत्वपूर्ण अभिप्रेरक बताते हुए इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया। मैस्लो ने मानवीय आवश्यकता के 5 प्रकार बताये तथा उन्हें एक पदानुक्रम में व्यस्थित किया जो निम्न प्रकार से है
"पाशविक" शब्दकोश में हिन्दी का अर्थ
पाशविक वि० [सं० पाशव + हिं० इक (प्रत्य०)] पशुओं के जैसा क्रूर या निर्दयतापूर्ण । उ०— जेल शासन का विभाग नहीं, पाशविक व्यवसाय है, आदमियों प्रवृत्ति की ताकत की परिभाषा से जबर्दस्ती काम लेने का बहाना, अत्याचार का निष्कंटक साधन । — काया०, पृ० २३५ ।
शब्द जिसकी पाशविक के साथ तुकबंदी है
शब्द जो पाशविक के जैसे शुरू होते हैं
शब्द जो पाशविक के जैसे खत्म होते हैं
हिन्दी में पाशविक के पर्यायवाची और विलोम
शब्द जो «पाशविक» से संबंधित हैं
«पाशविक» शब्द का 25 भाषाओं में अनुवाद
का अनुवाद पाशविक
इस अनुभाग में प्रस्तुत हिन्दी इस अनुभाग में प्रस्तुत पाशविक अनुवाद स्वचालित सांख्यिकीय अनुवाद के माध्यम से प्राप्त किए गए हैं; जहां आवश्यक अनुवाद इकाई हिन्दी में «पाशविक» शब्द है।
अनुवादक हिन्दी - चीनी
अनुवादक हिन्दी - स्पैनिश
अनुवादक हिन्दी - अंग्रेज़ी
हिन्दी
अनुवादक हिन्दी - अरबी
अनुवादक हिन्दी - रूसी
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अनुवादक हिन्दी - बांग्ला
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अनुवादक हिन्दी - तमिल
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अनुवादक हिन्दी - तुर्क
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अनुवादक हिन्दी - रोमेनियन
अनुवादक हिन्दी - ग्रीक
अनुवादक हिन्दी - अफ़्रीकांस
अनुवादक हिन्दी - स्वीडिश
अनुवादक हिन्दी - नॉर्वेजियन
पाशविक के उपयोग का रुझान
«पाशविक» पद के उपयोग की प्रवृत्तियां
हिन्दी साहित्य, उद्धरणों और समाचारों में पाशविक के बारे में उपयोग के उदाहरण
हिन्दी किताबें जो «पाशविक» से संबंधित हैं
निम्नलिखित ग्रंथसूची चयनों में पाशविक का उपयोग पता करें। पाशविक aसे संबंधित किताबें और हिन्दी साहित्य में उसके उपयोग का संदर्भ प्रदान करने वाले उनके संक्षिप्त सार।.
में पाशविक प्रवृत्त (1111111111 बली) जाती है । पाशविक प्रजाति से ताल एक मैंमीय तत्त्वों (8.18.5 जी169०.8) से होता है जो रक्त के आसवन (1186111011) की प्रक्रिया द्वारा और होती है ।
सक्तिचा सिपाही वही है जो अपने स्वार्थ तथा कुभावनाओंपर विजय प्र1प्त करे, न कि पाशविक बलसे शत-बने परास्त करे और अपने स्वार्थकी सिद्धि करे । पाशविक बल प्रतिद्वन्द्रीमें भी .
दासजी अहिंसा नीति के पक्ष में तीव्ररूप से वाद-विवाद कर रहे थे, और उन्होंने अन्त में यह कहा था कि पाशविक बल से आत्मिक बल कहीं अधिक प्रबल है। तुम लोग शारीरिक बल पर अत्यधिक ध्यान दे .
इच्छाओं का भी महत्त्व है, अत: उन्हें बुद्धि के अधीन का उनके नियन्त्रण से पाशविक आत्मा और बुद्धिमय जाता, दोनों की सिद्धि होती है । इससे ही संपूर्ण स्व सिद्ध होता है । इसलिए जहॉ .
पाशविक, निकर पशु संबंधी: तर-, निर्दय, विषयी, विषय.; तर्कहीन; निर्णद्धि, भूखा जड़; अक्कड़; काना, बिना साफ किया हुआ; ह. ( हिनक) पशु; पशुबब मनुष्य; (य. 1गाय1 पशु", पाशविक; निर्दयी: अमानुषिक; .
साहसी कर्म के ( शुभाशुभ ) परिणाम को जाने बिना केवल पाशविक बल से काम करने का यत्न करता है । अत : , वह उस कर्म के दुष्फल से दु : ख का भागी होता है । ६१ । ( ७२ ) देर से काम करने वाला प्रत्येक .
कुछ फैसलों की रतन 'अधा, प्रद जम, १लावा, पाशविक यति-बनि' से होती वहाँ फिर 'पाशविक इ-मे, शेर अत्, वामश्चिया और हवस शत करने के बाद, भरतीय अबी की यविबता, औनशुविता, प्रतिष्ठा, गरिमा, .
आय कुल स्वर में देवीजी ने रोककर कहा-जिलानी पुरुष को अपनी शारीरिक शक्ति पर, पाशविक शक्ति पर अभिमान और भरोसा है ? हैं, 'जब यह शक्तिशाली है तो उससे इनकार केसे जिया जा सकता है?
यह कथन औ" शयद इसलिए 'पाशविक' प्रतीत होता है कि इसमें जीवन पर किसी विचारणा, सिरत या वाद का (आरोप नहीं है । 'पाशविक जीवन' जेते सीधे तरि सहज ओध अथवा (दामन रंरीर को जमील करता से ।
जहाँ तक पर के नेतिक स्तर का मम्बम्थ है, यह कह मलता डाके यह अपने में कुछ नहीं है, सिवाय एक आवेग के, प्रवृत्ति की ताकत की परिभाषा लेकिन पाशविक वृति नहीं एक मानवीय अत्यन्त सुन्दर भावना । प्यार अपने में कभी भी .
«पाशविक» पद को शामिल करने वाली समाचार सामग्रियां
इसका पता लगाएं कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रेस ने निम्नलिखित समाचार सामग्रियों के बारे में क्या चर्चा की है और इस संदर्भ में पाशविक पद का कैसे उपयोग किया है।
भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने पेरिस में हुए पाशविक आतंकी हमलों के बाद मंगलवार को इस बात की चेतावनी दी कि भारत में आतंकी संगठन इस्लामी राज्य के नेतृत्व में हमलों का ख़तरा मौजूद है और इस ख़तरे से निपटने के लिए एहतियाती कदम उठाए जा . «स्पूतनिक इण्टरनेशनल
इस पन्ने पर आपको पेरिस हमलों से जुड़ी हर ख़बर मिलेगी. 17:03. प्रिंस ऑफ़ वेल्स ने पेरिस हमलों की निंदा करते हुए प्रवृत्ति की ताकत की परिभाषा इन्हें 'पाशविक हमले' बताया है और कहा है कि जो हुआ है उसके प्रति वह अपनी 'पूरी तरह भय की' भावनाओं को व्यक्त करना चाहते हैं. 17:14. जर्मन . «बीबीसी हिन्दी, नवंबर 15»
ऐसे दुर्गुणों का नाश बहुत कठिन होता है। दुर्गा की आराधना के माध्यम से हम अपने भीतर की दैवीय शक्ति को जगाकर पाशविक वृत्तियों को नष्ट कर सकते हैं। लक्ष्मी से सच्ची सम्पदा आत्मजागृति के लिए हमारा मन तैयार होना चाहिए। मन पवित्र, केंद्रित . «दैनिक भास्कर, अक्टूबर 15»
वे दूसरों के जीवन को भी मंगलमय बनाते हैं। यूं ही जीवन में विस्तार कर लेना तो पाशविक मानसिकता है। लेकिन स्त्री-पुरुष के रूप में परिवार और समाज को जोड़ने के संकल्प के साथ आगे बढ़ना ही पूर्णता है। इससे परिवार समाज और राष्ट्र संतुष्ट होता है . «नवभारत टाइम्स, अक्टूबर 15»
हिंसा के पक्ष में यह तर्क दिया जाता है कि वह पाशविक वृत्ति है. गांधी जी इस पाशविक प्रवृत्ति की निंदा करते थे क्योंकि अंदर से, अचेतन की अंधेरी गुफा से अपने शिकार को ढूंढ़ता क्रुद्ध पशु, जब बाहर निकलता है तो वह न केवल हिंसक हो जाता है बल्कि . «प्रभात खबर, अक्टूबर 15»
दो दशक पहले राजधानी के बगिया रेस्टोरेंट में अपनी 'बेवफा' जीवनसंगिनी नैना साहनी को गोली मार कर, उसके टुकड़े तंदूर में जलाने वाले सुशील शर्मा को लोग आज भी नहीं भूले होंगे। पूरे देश में यह पाशविक घटना तंदूर कांड के नाम से कुख्यात हुई थी। «Jansatta, सितंबर 15»
मध्य प्रदेश के शिवपुरी और सेंधवा जिले में हाल ही में जिस तरह से कुछ महिलाओं पर डायन के नाम पर पाशविक जानलेवा हमले एवं अत्याचार किए गए, उसने एक बार फिर देश में एक ऐसे प्रभावी केन्द्रीय कानून की जरूरत को रेखांकित किया है, जिससे महिलाओं . «Sahara Samay, जून 15»
रेशमी (प्रवृत्ति की ताकत की परिभाषा नाम बदला हुआ) ने लव मैरिज की थी फिर भी वो पति के पाशविक रेप का शिकार हुई। उसने सुप्रीम कोर्ट में जाकर पति के अन्याय से इंसाफ चाहा तो सुप्रीम कोर्ट ने विवाह की पवित्रता का हवाला देते हुए रेशमी की अपील को ठुकरा दिया। लेकिन रेशमी ने . «अमर उजाला, जून 15»
बयालीस साल से जिंदगी मेरे लिए अभिशाप बन गई है। यह कहना है उस गुनहगार का जिसने अपनी पाशविक हरकत से नर्स अरुणा शानबाग की जिंदगी को चार दशक का नरक बना दिया। वह दोषी आज भी जिंदा है और राजधानी दिल्ली से कुछ दूर हापुड़ के एक गांव में रहता है। «Jansatta, मई 15»
42 साल पहले अरुणा एक पाशविक व्यवहार की शिकार हुईं। इसी व्यवहार ने उन्हें मानसिक तौर पर एक ऐसी स्थायी अपंगता की तरफ धकेल दिया, जिससे वह अपने अंतिम समय तक उबर नहीं पाई। तब वह 22 साल की लड़की थीं, अब करीब 65 साल की उम्र में उनका देहांत हुआ है। «एनडीटीवी खबर, मई 15»