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Option के महत्वपूर्ण लक्षण क्या हैं?

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Option के महत्वपूर्ण लक्षण क्या हैं?

ICAR-Directorate of Onion and Garlic Research

कीट एवं रोग प्रबंधन

उच्चतर विपणन योग्य कंदीय उपज एवं अच्छी गुणवत्ता वाले कंद हासिल करने के लिए कीट एवं रोग प्रबंधन करना अति महत्वपूर्ण होता है। लहसुन के प्रमुख कीटों एवं रोगों, उनके लक्षणों तथा प्रबंधन तरीकों को तालिका में दर्शाया गया है।

तालिका ‐ प्रमुख कीट एवं रोग, उनके लक्षण तथा नियंत्रण उपाय

थ्रिप्स (थ्रिप्स टबासी)

1.प्रारंभिक अवस्था में (पौध रोपण के 45 दिन पष्चात्) पत्तियों में कुंचन एवं मुड़ने जैसे लक्षण थ्रिप्स संक्रमण से होते हैं।

2. विशिष्ट लक्षणों के रूप में पत्तियों पर सफेद अथवा रूपहले धब्बे पाए जाते हैं।

3. गंभीर संक्रमण होने पर सम्पूर्ण पौधा धब्बेदार दिखने लगता है और सफेद पड़ने लगता है।

1.पौध रोपण से कम से कम 30 दिन Option के महत्वपूर्ण लक्षण क्या हैं? पहले लहसुन की फसल के चारों ओर (250 वर्ग मीटर) अवरोधक फसल के रूप में मक्का की दो पक्तियों अथवा बाह्य पक्ति में मक्का तथा अन्दर की पंक्ति में गेहूं की फसल लगायें। इससे वयस्क थ्रिप्स की गतिविधियां बाधित करने में मदद मिलती है।

2.थ्रिप्स की संख्या जब 30 थ्रिप्स/पौधा के आर्थिक थ्रेसहोल्ड़ स्तर से अधिक हो जाए तब कीटनाशक प्रोफिनोफास (0.1 प्रतिशत), कार्बोसल्फॉन (0.2 प्रतिशत) अथवा फिप्रोनिल (0.1 प्रतिशत) का छिड़काव करें।

एरीफाइड कुटकी (एसेरीया टुलिपी )

1.पत्तियां पूरी तरह नहीं खिल पातीं। सम्पूर्ण पौधे में ठूंठ, मुड़ाव, कुंचन तथा पीला कर्बुरण दिखाई देने लगता है।

2.कर्बुरण अधिकांसशतः पत्तियों के सिरों पर देखा जाता है।

जैसे ही रोग के लक्षण दिखाई दें तुरन्त डाइकोफॉल ( 0.2 प्रतिशत) अथवा सल्फर (0.05 प्रतिशत) का छिड़काव करें। यदि आवश्यक हो तो 15 दिन पश्चात् दोबारा छिड़काव करें।

1.मल, अण्ड़ों तथा वयस्क कुटकी के छोटे धब्बों के साथ पत्तियां सफेद पड़नी लगती हैं।

2.पत्तियों पर पीले अथवा ताम्र धब्बे होते हैं।

3.पत्तियों पर मकड़ी जाला बनता है।

जैसे ही रोग के लक्षण दिखाई दें तुरन्त डाइकोफॉल ( 0.2 प्रतिशत) अथवा सल्फर (0.05 प्रतिशत) का छिड़काव करें। यदि आवश्यक हो तो 15 दिन पश्चात् दोबारा छिड़काव करें।

तना एवं कंद सूत्रकृमि (डैटिलेंकस डिप्सैसी )

1.डैटिलेंकस डिप्सैसी रंध्र अथवा पौधा जख्म के मार्ग से प्रवेश करके पित्त (सूजन) अथवा विरूपण उत्पन्न कर देता है । इससे कवक एवं जीवाणु जैसे सेकेण्ड़री रोगजनकों का प्रवेश हो जाता है।

2. ठूंठ वृद्धि, कंदों का रंग उड़ना तथा सूजे हुए तने।

1.रोग के लक्षणों वाली कलियों की रोपाई न करें।

2.खेतों में तथा औजारों में समुचित स्वच्छता बनाए रखना अनिवार्य है क्योंकि यह सूत्रकृमि संक्रमित पौधों तथा अपशिष्टो में बचे रहकर पुनर्जनन कर Option के महत्वपूर्ण लक्षण क्या हैं? सकते हैं।

1.प्रारंभ में पत्तियों पर छोटी, अण्ड़ाकार क्षति अथवा धब्बे जो कि बाद में बैंगनी-भूरे रंग में परिवर्तित हो जाते हैं।

2.धब्बे बड़े हो कर आपस में मिल जाते है और पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती है। घाव के कारण पत्तियां गिर जाती है।

रोपाई के 30 दिन पश्चात् अथवा जैसे ही रोग के लक्षण प्रकट होते, 10-15 दिन के अन्तराल पर मैन्कोजेब / 0.25 % अथवा ट्राइसाइक्लाजॉल / 0.1% या हेक्साकोनाजॉल /0.1% अथवा प्रोपीकोनाजॉल /0.1% का छिड़काव करें।

1.पत्ती के मध्य में छोटी पीली से नारंगी चित्ती अथवा धारी विकसित होने लगती है जो कि जल्दी ही अण्ड़ाकार, तकली आकृति के Option के महत्वपूर्ण लक्षण क्या हैं? बड़े धब्बों में बदल जाती है। इन धब्बों के किनारे गुलाबी होते हैं।

2. पत्तियों में धब्बे षीर्श से नीचे आधार की ओर बढ़ते हैं। धब्बे विस्तारित समूहों में इकट्ठे होते हैं, पत्तियों में अंगमारी और धीरे-धीरे सम्पूर्ण पर्ण में अंगमारी आ जाती है।

रोपाई के 30 दिन पष्चात् अथवा जैसे ही रोग के लक्षण प्रकट हों, 10-15 दिन के अन्तराल पर मैन्कोजेब / 0.25% अथवा ट्राइसाइक्लाजॉल / 0.1% या हेक्साकोनाजॉल / 0.1% अथवा प्रोपीकोनाजॉल / 0.1% का छिड़काव करें।

1. पीलापन तथा पत्ती सिरों के पीछे शुष्कन

2.आमतौर पर जड़ें नश्ट हो जाती हैं। क्षतिग्रस्त धब्बों पर सतही सफेद रोएंदार कवकजाल दिखाई देता है।

3.ऊतक की सतह अथवा भीतर भूरा अथवा काला स्कलेरोटिया विकसित होने लगता है।

1.फसल चक्र का पालन करें, संक्रमित पौधों को नष्ट कर दें और इन पौधों के आसपास की मिट्टी का उपचार करें।

2. उच्च तापमान पर मृदा सौरीकरण से रोग आवर्ती में कमी आती है।

3. कार्बेन्डाजि़म / 0.1 % का अनुप्रयोग किया जाए।

प्याज पीला बौना विषाणु

पत्तियां चपटी तथा कड़क होकर मुड़ जाती है। पत्तियों में हल्के पीलेपन से आरंभ होकर पीलेपन की तीव्रता बाद में बढ़ जाती है और धीरे-धीरे पूरी पत्तियां पीली हो जाती है। प्याज के पौधे बौने रह जाते हैं।

1.विषाणु मुक्त पौध सामग्री का उपयोग करें।

2. एफिड़, विषाणु वाहक की Option के महत्वपूर्ण लक्षण क्या हैं? रोकथाम के लिए कीटनाशक प्रोफिनोफास / 0.1% अथवा कार्बोसल्फॉन / 0.2% या फिप्रोनिल / 0.1% का पर्णीय छिड़काव करें।

लीक पीली धारियां विषाणु

1.पत्तियों के दूरवर्ती भाग पर हल्की पीली धारियां जिनसे सम्पूर्ण पौधे में बौनापन बढ़ता है।

2.विषाणु के कारण कंद छोटे एवं विकृत हो जाते हैं जिसके कारण उपज में कमी तथा फसलोत्तर भण्ड़ारण क्षति होती है।

1.विषाणु मुक्त पौध सामग्री का उपयोग करें।

2. एफिड़, विषाणु वाहक की रोकथाम के लिए कीटनाशक

अथवा कार्बोसल्फॉन / 0.2%

या फिप्रोनिल / 0.1 % का

पर्णीय छिड़काव करें।

आयरिश पीला धब्बा विषाणु

2.यह धब्बे इकट्ठे होकर पत्तियों पर बड़े धब्बे बनाते हैं।

3.पुरानी पत्तियों पर स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं।

1. लहसुन के खेतों तथा आसपास स्वैच्छिक, शेषक तथा खरपतवारों को हटायें।

2. विषाणु मुक्त पौध सामग्री का उपयोग करें।

4. थ्रिप्स नियंत्रण से पीले धब्बों में कुछ कमी आ सकती है क्योंकि थ्रिप्स विषाणु के वाहक होते हैं।

पेनिसिलियम सड़न (पेनिसिलियम कोरिम्बीफेरम )

2.सड़न अथवा क्षय की प्रगत अवस्था में कलियां हरे अथवा मटमैले चूर्ण में टूट जाती है।

काला माउल्ड़ (एस्परजिलस प्रजातियां )

1.कंदों में गर्दन के पास काला मलीन प्रतीत होता है एवं बाहरी छिल्कों के नीचे धारिनुमा काले तंतु दिखाई देते हैं।

2.प्रगत अवस्था में सभी धब्बे संक्रमित एवं कंद मुरझाने लगते हैं।

1. समुचित शुष्कन के पश्चात् शुष्क परिस्थितियों में कंदों का भण्ड़ारण करें।

2. कंदों को खुदाई, भण्ड़ारण अथवा परिवहन के दौरान छिलने व दबने से बचाएं।

फ्यूजेरियम आधारीय सड़न

1. कलियों में चटकन होती है।

2.कंद दलदले अथवा धंसे हुए तथा/अथवा भूरे एवं काटकर खोलने पर जलयुक्त हो जाते हैं।

3.कलियों पर सफेद अथवा हल्का गुलाबी रंग प्रकट होने लगता है।

1.क्षतिग्रस्त कंदों को भंड़ारित न करें

2.अच्छे वायु संचरण के साथ शुष्क परिस्थितियों में कंदों का भण्ड़ारण करें

3. 3-4 वर्ष के लिए गेहूं तथा लोबिया जैसी गैर परपोशी फसलों के साथ फसल चक्र को अपनाएं।

जीवाण्विक सड़न (इर्वीनिया उप प्रजाति एवं स्यूड़ोमोनास उप प्रजाति)

दबाने पर रोगग्रस्त कंदों की ग्रीवा में से जलयुक्त , दुर्गन्ध वाला तरल निकलने लगता है।

1.खुदाई Option के महत्वपूर्ण लक्षण क्या हैं? के पष्चात् समुचित उपचार करें।

2.अच्छे वायु संचरण के साथ शुष्क परिस्थितियों में कंदों का भण्ड़ारण करें।


पत्तियों पर पलते थ्रिप्स थ्रिप्स ((निम्फ)

एरीफाइड कुटकी के लक्षण

लहसुन के कीट नाशीजीव

सूत्रकृमि (डैटिलेंकस डिप्सैसी) संक्रमण के लक्षण

स्टेमफाइलियम का प्रकोप स्टेमफाइलियम के लक्षण

बैंगनी धब्बा लक्षण

लहसुन पर विशाणु कॉम्पलेक्स के लक्षण लहसुन पर आयरिष पीला धब्बा विषाणु के लक्षण

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High Cholesterol Sign: पैरों में ऐंठन और जलन से समझ लीजिए खून में जमने लगा है गंदा कोलेस्ट्रॉल, ये हैं शुरुआती लक्षण

High Cholesterol Sign: पैरों में ऐंठन और जलन से समझ लीजिए खून में जमने लगा है गंदा कोलेस्ट्रॉल, ये हैं शुरुआती लक्षण

डीएनए हिंदी: Bad Cholesterol Early Signs- कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना बहुत ही आम होता जा रहा है. खान पान, भागमभाग भरी लाइफस्टाइल की वजह से बैड कोलेस्ट्रॉल बढ़ता जा रहा है. हालांकि शरीर इसके कई संकेत देता है, लेकिन एक दो संकेत ऐसे हैं जो शुरुआती लक्षण (Cholesterol Level High Early Signs) के तौर पर सामने आते हैं, हमें इसे किसी भी तरह से नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. शरीर में जैसे ही थकान या कमजोरी महसूस होने लगे (Weakness) मांशपेशियां खींचने लगे तो समझ लीजिए आपके लिए खतरे की घंटी है.

खून कोलेस्ट्रॉल (Cholesterol blood) में मौजूद मोम जैसा एक चिपचिपा पदार्थ है. शरीर में गुड और बैड कोलेस्ट्रॉल होता है. हमारे शरीर को गुड कोलेस्ट्रॉल की काफी जरूरत होती है, वहीं बैड कोलेस्ट्रॉल (Bad cholesterol) हमारे शरीर के लिए काफी नुकसानदायक है. अगर शरीर में बैड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ने लगती है तो दिल की बीमारियां, स्ट्रोक (Stroke Risk) का खतरा बढ़ने लगता है. कोलेस्ट्रॉल खून में पाया जाता है, जब कोलेस्ट्रॉल का लेवल बढ़ने लगता है तो ये रक्त वाहिकाओं में जमने लगता है और ब्लड फ्लो स्लो हो जाता है,ऐसे में शरीर में दर्द शुरू हो जाता है. जिस वजह से हार्ट तक खून ठीक से पहुंच नहीं पाता और स्ट्रोक, हार्ट अटैक (Heart Attack Risk Factor) के काफी मामले सामने आने लगते हैं.

पहला लक्षण (Early Sign, Leg Cramps)

पैरों में ऐंठन आने लगती है. ये कोलेस्ट्रॉल बढ़ने का सबसे पहला लक्षण है. जब अचानक कोई काम करने के बाद आप खड़े होते हैं और आपसे चला नहीं जाता, पैरे सुन्न हो जाता है, पैरों में ऐंठन होती है, झनझनाहट होती है. ये बढ़ते कोलेस्ट्रॉल का पहला और सबसे अहम लक्षण है, हम इसे आम कमजोरी और थकान समझकर टाल देते हैं.

पैरों और तलवों में जलन होना या दर्द होना, ये भी एक बहुत महत्वपूर्ण लक्षण है. खासतौर पर तब,जब आप रात में लेटते हैं और अचानक मिर्ची जैसी जलन होती है. इसके अलावा पैरों की त्वचा ठंडी हो जाए, बार-बार संक्रमण का होना, पैर और एड़ी में घाव Option के महत्वपूर्ण लक्षण क्या हैं? आना लेकिन वो जल्दी से ठीक न होना.

कैसे कंट्रोल करें कोलेस्ट्रॉल (How to Control Cholesterol)

हरी सब्जियों का सेवन, फैट कम खाएं, डेयरी उत्पादों से बचें, अंडा न खाएं, तला भूना, जंक फूड कम खाएं, विटामिन सी से जुड़े फल, साबुत अनाज, दलिया, रागी, बाजरा, ओट्स खा सकते हैं. नशीले पदार्थों का सेवन कम करें, नमक कम लें

(Disclaimer: हमारा लेख केवल Option के महत्वपूर्ण लक्षण क्या हैं? जानकारी प्रदान करने के लिए है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें.)

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मूली से थर थर कांपती हैं बीपी-शुगर की समस्या, सेवन से हो जाता है खात्मा!

Benefits of eating Radish

मूली के अंदर अनेक महत्वपूर्ण पोषक तत्व पाए जाते हैं.

मूली का सेवन कर आप अपने शरीर को कई बीमारियों से बचा सकते हैं.

Benefits of eating Radish: सर्दियों के मौसम में लोग मूली (Radish) को बड़े ही चाव से खाना पसंद करते हैं. मूली सबसे हेल्दी सब्जियों में से एक है. मूली के अंदर कई औषधीय गुण छिपे हुए हैं. मूली का सेवन कर आप बीपी (Blood Pressure), शुगर और कैंसर (Cancer) जैसी बीमारियों से शरीर की रक्षा कर सकते हैं. इस लेख में मूली से मिलने वाले फायदों के बारे में बताएंगे.

कैंसर के खतरे को करें कम

मूली के अंदर एंटी कैंसर गुण मौजूद होते हैं. मूली का सेवन कर आप कैंसर सेल्स को रोक सकते हैं. मूली के अंदर ऐसे यौगिक पाए जाते Option के महत्वपूर्ण लक्षण क्या हैं? हैं जो पानी के साथ मिलाने पर आइसोथियोसाइनेट्स में टूट जाते हैं. बता दें कि आइसोथियोसाइनेट्स कैंसर के ट्यूमर और उसके Option के महत्वपूर्ण लक्षण क्या हैं? विकास को रोकने में सहायक है.

डायबिटीज को करें कंट्रोल

मूली के अंदर ऐसे गुण मौजूद होते हैं जो ब्लड शुगर (Blood Sugar) को कंट्रोल में रखने का काम करते हैं. मूली में बायोएक्टिव यौगिक पाए जाते हैं जो एडिपोनेक्टिन नामक हार्मोन को कंट्रोल करते हैं. बता दें कि ये हार्मोन शुगर के लेवल को नियमित करने के लिए जिम्मेदार है.

हार्ट और ब्लड प्रेशर में कारगर

मूली के अंदर भरपूर मात्रा में पोटेशियम पाया जाता है. ये ब्लड प्रेशर (Blood Pressure) को कंट्रोल में रखने का काम करता है. इसके अलावा मूली में एंथोसायनिन मौजूद होता है. ये ब्लड सर्कुलेशन और ब्लड प्रेशर को बेहतर बनाने का काम करता है.

पाचन को बनाए मजबूत

पाचन को बेहतर बनाने में मूली काफी मददगार है. मूली के अंदर घुलनशील और अघुलनशील फाइबर पाए जाते हैं. ये पाचन के लिए बहुत कारगर है. फाइबर पाचन तंत्र को हेल्दी बनाए रखता है. आप मूली का सेवन कर अपच और कब्ज की समस्या से छुटकारा पा सकते हैं.

(नोटः ये जानकारी एक सामान्य सुझाव है. इसे किसी तरह के प्रोफेशनल की सलाह के तौर पर न लें. आप इसके लिए संबंधित विशेषज्ञों की सलाह जरूर लें.)

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