एक मुद्रा कैरी ट्रेड की मूल बातें

क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है?

क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है?

विदेशी मुद्रा भंडार का कैसे हो इस्तेमाल

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पिछले वित्त वर्ष की शुरुआत से 160 अरब डॉलर से अधिक बढ़ चुका है और इस समय करीब 640 अरब डॉलर है। अगर यही रुझान बना रहा तो भारत के पास जल्द ही 700 अरब डॉलर से अधिक का भंडार हो सकता है। साफ तौर पर देश 1990 के दशक के शुरुआती वर्षों की उस स्थिति से बहुत बेहतर हालत में आ चुका है, जब वह बड़ी मुश्किल से डिफॉल्ट से बच पाया था। लेकिन अब भारत सबसे अधिक विदेशी मुद्रा भंडार वाले देशों में से एक है, जिससे यह बहस शुरू हुई है कि भारत को अपने विदेशी मुद्रा भंडार का क्या करना चाहिए। आम तौर पर यह सुझाव दिया जाता है कि भंडार का इस्तेमाल बुनियादी ढांचे के वित्त पोषण में हो। लेकिन यह साफ नहीं है कि ऐसा कैसे किया जा सकता है। विदेशी मुद्रा का इस्तेमाल विदेशी सामान एवं सेवाएं या परिसंपत्तियां खरीदने में किया जा सकता है। इस तरह भंडार के इस्तेमाल का मतलब होगा कि भारत बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए बहुत से उपकरणों और सामग्री का आयात करेगा। यह पसंदीदा तरीका नहीं होने के आसार हैं और इसके विभिन्न वृहद आर्थिक असर होंगे।

आम तौर पर सुझाया जाने वाला एक अन्य विकल्प सॉवरिन वेल्थ फंड बनाना है, जिससे भारत विदेश में परिसंपत्तियां खरीद सकेगा। यह भी तर्क दिया जाता है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को प्रतिफल बढ़ाने के लिए अपने निवेेश को विविधीकृत बनाना चाहिए। यह अमेरिकी सरकार की प्रतिभूतियों जैसी अत्यधिक तरल परिसंपत्तियों में निवेश करता है, इसलिए अमूमन प्रतिफल कम रहता है। शायद विकसित बाजारों में कम ब्याज दरों की वजह से भी प्रतिफल कम रहता हो। ऐसे में ये तर्क सही लगते हैं, लेकिन शायद केंद्रीय बैंक के पास शेयरों या उच्च प्रतिफल वाले बॉन्डों में निवेश की क्षमता नहीं है। इसके अलावा इससे जोखिम बढ़ जाएगा और भंडार रखने का कोई मतलब नहीं होगा।

इस संदर्भ में इस तथ्य को समझना जरूरी है कि भारत ने चालू खाता अधिशेष के जरिये विदेशी मुद्रा भंडार नहीं बनाया है। भारत में हमेशा चालू खाता घाटा रहता है, जिसका मतलब है कि यह बाकी की दुनिया से वस्तुओं और सेवाओं का शुद्ध आयातक है। असल में भारत का भंडार पूंजी के अतिरिक्त प्रवाह को दर्शाता है और इसका एक हिस्सा बहुत जल्दी वापस जा सकता है। विदेशी मुद्रा भंडार पर आरबीआई की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक इस भंडार में अस्थिर प्रवाह का अनुपात 65 फीसदी से अधिक है। भारत का भंडार पिछले करीब 18 महीनों के दौरान पूंजी के अधिक प्रवाह के कारण ही तेजी से बढ़ा है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं, खास तौर पर अमेरिका में अत्यधिक नरम मौद्रिक नीति से पूंजी का अधिक प्रवाह हुआ है। ऐसे में आरबीआई ने भंडार बनाने के लिए मुद्रा बाजार में पूरा दखल देकर अच्छा काम किया है। कम दखल से भारतीय रुपये में अनावश्यक मजबूती आती। वैसे भी भारतीय रुपये का मूल्य अधिक है, जिससे भारत की विदेशी बाजारों में प्रतिस्पर्धी क्षमता प्रभावित हुई है।

मुद्रा बाजार में दखल से मदद भी मिली है क्योंकि इससे अर्थतंत्र में रुपये की तरलता बढ़ी और आरबीआई को महामारी के दौरान बाजार में ब्याज दरों को नीचे लाने में मदद मिली। लेकिन अब स्थितियां बदलने लगी हैं। अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने अपने परिसंपत्ति खरीद कार्यक्रम को घटाने का फैसला किया है और ऊंची महंगाई उसे उम्मीद से पहले मौद्रिक नीति को सख्त करने के लिए मजबूर कर सकती है। इससे वैश्विक वित्तीय स्थितियां सख्त बन सकती हैं और भारत जैसे देश से पूंजी, कम से कम कुछ समय के लिए ही बाहर जा सकती है। हालांकि भारत 2013 के 'टैपर टैंट्रम' (बॉन्ड खरीद में कमी) के घटनाक्रम की तुलना में बेहतर स्थिति में है। लेकिन फिर भी वैश्विक धन प्रबंधकों के ब्याज दरों के बदलते माहौल में अपनी पोजिशन में फेरबदल से भारत से पूंजी की अहम निकासी हो सकती है। आम तौर पर पोर्टफोलियो प्रबंधक बड़े बाजारों में ज्यादा बिकवाली करते हैं क्योंकि उनके लिए कीमतों को अधिक प्रभावित किए बिना ऐसा करना तुलनात्मक रूप से आसान होता है।

ऐसी स्थिति में बड़े भंडार का यह फायदा होगा कि आरबीआई मुद्रा बाजार की उठापटक को शांत करने में सक्षम होगा, जिससे कारोबारी रुपये के खिलाफ दांव लगाने को हतोत्साहित होंगे। पूंजी की बड़ी निकासी से मुद्रा में गिरावट निश्चित बन जाएगी, जिससे वित्तीय स्थिरता को लेकर जोखिम पैदा होंगे। इस तरह ऐसे वैश्विक आर्थिक माहौल में बड़े भंडार की वित्तीय स्थिरता लाने में अहम भूमिका हो सकती है। हालांकि बहुत ज्यादा बड़ा भंडार भी समस्याएं पैदा कर सकता है। इसके अलावा बड़े भंडार को नीतिगत समझदारी के एक विकल्प के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। इस समय भारत के लिए सबसे बड़ा जोखिम उसका राजकोषीय स्थिति है। महामारी की वजह से राजकोषीय स्थिति में कमजोरी से बचना मुश्किल था, लेकिन विदेशी और घरेलू निवेेशकों की इस चीज पर नजर बनी रहेगी कि भारत कितने असरदार तरीके से लंबी अवधि की टिकाऊ राजकोषीय राह पर लौटता है। इसमें अधिक देरी होने से वृद्धि के जोखिम बढ़ेंगे और पूंजी का प्रवाह प्रभावित होगा।

बड़ा भंडार बाह्य खाते को स्थिरता देता है, लेकिन आरबीआई अपनी ही नीतिगत जटिलताओं के कारण लगातार विदेशी मुद्रा का भंडारण जारी नहीं रख सकता। बड़े भंडार से ज्यादा पूंजी का प्रवाह हो सकता है, जिससे मुद्रा प्रबंधन मुश्किल बन सकता है। इससे रुपये में मजबूती का दबाव बनेगा और भारत की प्र्रतिस्पर्धी क्षमता प्रभावित होगी। आरबीआई के लगातार दखल से अर्थतंत्र में रुपये की तरलता का स्तर बढ़ेगा और मुद्रास्फीति के जोखिम पैदा होंगे। लगातार नियंत्रण की भी कीमत चुकानी पड़ती है।

इसलिए मुद्रा बाजार में अत्यधिक दखल के बजाय भारत अपनी जरूरत के विदेशी प्रवाह पर पुनर्विचार कर सकता है। मुद्रा बाजार में अत्यधिक दखल की अपनी सीमाएं और कीमत हैं। कर्ज के बजाय प्रत्यक्ष विदशी निवेश और इक्विटी प्रवाह को तरजीह दी जानी चाहिए। उदाहरण के लिए भारत का बाह्य वाणिज्यिक उधारी का स्टॉक 200 अरब डॉलर से अधिक है। हालांकि नीति प्रतिष्ठान अन्य दिशा में जा रहा है। यह सरकारी बॉन्डों को वैश्विक बॉन्ड सूचकांकों में शामिल कराने की कोशिश कर रहा है। इससे डेट पूंजी का प्रवाह बढ़ेगा, जो इस समय ठीक नहीं है। इससे विदेशी मुद्रा प्रबंधन और मुश्किल बन जाएगा। इससे बाहरी झटकों का भारत के लिए जोखिम बढ़ जाएगा। हालांकि आरबीआई ने मुद्रा बाजार के प्रबंधन में अच्छा काम किया है, लेकिन नीति-निमाताओं को व्यापक वृहद आर्थिक उद्देेश्यों के साथ पूंजी खाते का तालमेल बैठाना चाहिए।

क्या होता है विदेशी मुद्रा भंडार, क्या हैं इसके मायने ?

विदेशी मुद्रा भंडार को फॉरेक्स रिजर्व या एफएक्स रिजर्व भी कहा जाता है

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कुल मिलाकर विदेशी मुद्रा भंडार में केवल विदेशी बैंकनोट, विदेशी बैंक जमा, विदेशी ट्रेजरी बिल और अल्पकालिक और दीर्घकालिक विदेशी सरकारी प्रतिभूतियां शामिल होनी चाहिए. हालांकि, सोने के भंडार, विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर), और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पास जमा राशि भी विदेशी मुद्रा भंडार का हिस्सा क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है? होता है. यह व्यापक आंकड़ा अधिक आसानी से उपलब्ध है, लेकिन इसे आधिकारिक अंतरराष्ट्रीय भंडार या अंतर्राष्ट्रीय भंडार कहा जाता है.

विदेशी मुद्रा भंडार को आमतौर पर किसी देश के अंतरराष्ट्रीय क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है? निवेश की स्थिति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं. आमतौर पर, जब किसी देश के मौद्रिक प्राधिकरण पर किसी प्रकार का दायित्व होता है, तो उसे अन्य श्रेणियों जैसे कि अन्य निवेशों में शामिल किया जाएगा. सेंट्रल बैंक की बैलेंस शीट में, घरेलू ऋण के साथ विदेशी मुद्रा भंडार संपत्ति है.

आधिकारिक अंतरराष्ट्रीय भंडार संपत्ति एक केंद्रीय बैंक को घरेलू मुद्रा खरीदने की अनुमति देती है, जिसे केंद्रीय बैंक के लिए लायबिलिटी माना जाता है.
देश का विदेशी पूंजी भंडार 11 जनवरी को समाप्त सप्ताह में 2.68 अरब डॉलर बढ़कर 396.08 अरब डॉलर हो गया, जो 27,671.0 अरब रुपये के बराबर है. विदेशी मुद्रा भंडार पर पाउंड, स्टर्लिग, येन जैसी अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं के मूल्यों में होने वाले उतार-चढ़ाव का सीधा असर पड़ता है.

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30 साल पहले विदेशी मुद्रा भंडार पर था संकट, भारत को ऐसे मिला 500 अरब डॉलर का मुकाम

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 501.70 अरब डॉलर पर पहुंच गया है. विदेशी मुद्रा भंडार की यह धनराशि एक वर्ष के आयात के खर्च के बराबर है.

विदेशी मुद्रा भंडार 500 अरब डॉलर के पार

दीपक कुमार

  • नई दिल्‍ली,
  • 13 जून 2020,
  • (अपडेटेड 13 जून 2020, 1:28 PM IST)
  • भारत का विदेशी मुद्रा भंडार चीन और जापान के बाद सबसे ज्‍यादा
  • भारत को इस मुकाम पर पहुंचने में करीब 30 साल का समय लगा

हर हफ्ते की तरह इस बार भी केंद्रीय रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा भंडार के आंकड़े जारी किए हैं. इस बार के आंकड़े बेहद खास हैं. दरअसल, पहली बार भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 500 अरब डॉलर के पार पहुंच गया है. इसी के साथ भारत का विदेशी मुद्रा भंडार चीन और जापान के बाद सबसे ज्‍यादा हो गया है. भारत को इस मुकाम पर पहुंचने में करीब 30 साल का समय लगा है.

आनंद महिंद्रा ने याद क‍िया वो दौर

देश के जानेमाने उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने भी उस दौर का जिक्र करते हुए इस नई सफलता पर खुशी जाहिर की है. आनंद महिंद्रा ने कहा, '30 साल पहले भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग शून्य हो गया था. अब हमारे पास तीसरा सबसे बड़ा वैश्विक भंडार है. आज के माहौल में ये खबर मनोबल बढ़ाने वाली है. अपने देश की क्षमता को मत भूलें और आर्थिक वृद्धि के रास्ते पर वापस आने के लिए इसका सही से इस्‍तेमाल क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है? करें.' लेकिन सवाल है कि 30 साल पहले विदेशी मुद्रा भंडार पर संकट क्‍यों आ गया था. आइए जानते हैं पूरी कहानी..

क्‍या हुआ था 30 साल पहले?

दरअसल, 1990 के दशक में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार रिकॉर्ड निचले स्‍तर पर था. भंडार इतना गिर गया था कि भारत के पास केवल 14 दिन के आयात के लिए ही विदेशी मुद्रा बची थी. हालात ये हो गए थे कि भारत सरकार ने बैंक ऑफ इंग्लैंड को 21 टन सोना भेजा, ताकि इसके बदले में विदेशी डॉलर मिल सके. इस डॉलर के जरिए सरकार को आयात किए गए सामानों का भुगतान करना था. आपको यहां बता दें कि भारत समेत दुनियाभर में अधिकतर कारोबार डॉलर में ही होता है. ऐसे में ये जरूरी बन जाता है कि विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर की उपलब्‍धता ज्‍यादा हो.

खाड़ी युद्ध के बाद बिगड़ी थी हालत

1990 के दशक में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार खाली होने की कई वजह है. सबसे बड़ी वजह 1990 का खाड़ी युद्ध है. इस युद्ध के बाद कच्‍चे तेल की कीमतों में भारी इजाफा हो गया था. इसने मुख्य रूप से कच्‍चे तेल के आयात के भरोसे चलने वाली भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी थी. वहीं, युद्ध के माहौल में डर की वजह से विदेशों में रहने वाले भारतीय स्‍वदेश लौटने लगे थे.

ये एक और झटका था, क्‍योंकि विदेशों में काम कर रहे भारतीयों की कमाई से भी विदेशी मुद्रा भंडार में इजाफा होता है. दरअसल, दुनिया भर के अलग-अलग देशों में काम करने वाले भारतवंशी अपनी कमाई का एक हिस्सा भारत में अपने परिजनों को भेजते हैं. अधिकतर रकम डॉलर में होने की वजह से विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत होता है.

इस हालात से कैसे निकला देश?

जब से देश ने उदारीकरण की आर्थिक नीति अपनाई है तब से विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ना शुरू हुआ है. इसकी पहल देश के पूर्व पीएम नरसिम्हा राव क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है? ने की थी. उन्होंने तब के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह की अगुवाई में कई बड़े फैसले लिए. इन फैसलों के तहत विदेशी निवेश की सीमा को बढ़ाया गया. वहीं विदेशी निवेशकों को लुभाने के लिए कई तरह के टैरिफ में कटौती की गई. शेयर बाजार और बैंकिंग में सुधारों के लिए जरूरी कदम उठाए गए.

अब क्‍यों हो रहा है इजाफा?

रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़े बताते हैं कि पांच जून को समाप्त सप्ताह में 8.22 अरब डॉलर का इजाफा हुआ और इस वजह से विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 501.70 अरब डॉलर पर पहुंच गया है. विदेशी मुद्रा भंडार की यह धनराशि एक वर्ष के आयात के खर्च के बराबर है. विदेशी मुद्रा भंडार के बढ़ने की सबसे बड़ी वजह कच्‍चे तेल की डिमांड में कमी है.

बता दें कि भारत में बीते मार्च महीने से लागू लॉकडाउन की वजह से ईंधन की डिमांड कम हो गई थी. ऐसे में भारत ने कच्‍चे तेल के आयात को कम कर दिया. इसके अलावा, विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने की वजह विदेशी निवेश भी है. पिछले तीन-चार महीनों में विदेशी कंपनियों का भारतीय बाजार में निवेश बढ़ा है. वहीं, विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार में एक बार फिर पूंजी का प्रवाह शुरू कर दिया है.

विदेशी मुद्रा भंडार पिछले 5 दिनों में 11.17 अरब डॉलर फिसला, हफ्तेभर में आई सबसे बड़ी गिरावट

Foreign Exchange Reserves: विदेशी मुद्रा भंडार में सबसे बड़ी साप्ताहिक गिरावट आई है. आइए जानें इस हफ्ते कैसा रहा विदेशी निवेशकों का कारोबार-

By: ABP Live | Updated at : 09 Apr 2022 03:37 PM (IST)

विदेशी मुद्रा भंडार (फाइल फोटो)

Foreign Exchange Reserves: विदेशी मुद्रा भंडार में सबसे बड़ी साप्ताहिक गिरावट आई है. ग्लोबल भू-राजनीतिक घटनाक्रमों क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है? की वजह से मुद्रा के दबाव में आने के कारण भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 11.173 अरब डॉलर घटकर 606.475 अरब डॉलर पर आ गया. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने आंकड़ों में इस बारे में जानकारी दी है.

25 मार्च को भी आई थी गिरावट
इससे पूर्व 25 मार्च को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 2.03 अरब डॉलर घटकर 617.648 अरब डॉलर रहा था. आरबीआई की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट, विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों (FCA) के घटने की वजह से आई जो कुल मुद्राभंडार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है. आंकड़ों के मुताबिक, एफसीए 10.727 अरब डॉलर घटकर 539.727 अरब डॉलर रह गया.

जानें कैसा इंटरनेशन करेंसी का हाल?
डॉलर में अभिव्यक्त विदेशी मुद्रा भंडार में रखे जाने वाले विदेशी मुद्रा आस्तियों में यूरो, पौंड और येन जैसे गैर अमेरिकी मुद्रा में मूल्यवृद्धि अथवा मूल्यह्रास के प्रभावों को शामिल किया जाता है.

9.6 अरब डॉलर की आई कमी
आपको बता दें आरबीआई अपने विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर बेचकर मुद्रा बाजार में अस्थिरता को कम करने के लिए बाजार में हस्तक्षेप करता है. यूक्रेन पर रूस के हमले ने मुद्रा बाजारों में समस्या पैदा कर दी है. इससे पहले 11 मार्च को समाप्त सप्ताह में 9.6 अरब डॉलर की सर्वाधिक कमी आयी थी.

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गोल्ड रिजर्व में आई गिरावट
आलोच्य सप्ताह में स्वर्ण भंडार (Gold Reserve) का मूल्य भी 50.7 करोड़ डॉलर घटकर 42.734 अरब डॉलर रह गया. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के पास जमा विशेष आहरण अधिकार (SDR) 5.8 करोड़ डॉलर बढ़कर 18.879 अरब डॉलर हो गया. आईएमएफ में रखे देश का मुद्रा भंडार भी 40 लाख डॉलर बढ़कर 5.136 अरब डॉलर हो गया.

Published at : 09 Apr 2022 03:33 PM (IST) Tags: foreign currency gold reserve foreign exchange reserves Gold forex हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Business News in Hindi

इकोनॉमिस्ट्स ने कहा, विदेशी मुद्रा की आवक बढ़ाने और रुपया में गिरावट रोकने में बहुत सफल नहीं होंगे RBI के उपाय

Dollar Vs Rupees: विदेशी माहौल अनुकूल नहीं है जिससे आरबीआई के उपायों से छोटी अवधि में थोड़ा फायदा हो सकता है। लेकिन, इनसे रुपया की दिशा बदलने की उम्मीद कम है। मंगलवार को शुरुआती कारोबार में रुपया 80 के लेवल को पार कर गया

RBI ने देश में विदेशी मुद्रा (Foreign Currency) की आवक बढ़ाने के जो उपाय किए हैं, उनका ज्यादा फायदा मिलने की उम्मीद नहीं है। इस वजह से डॉलर के मुकाबले रुपया के एक्सचेंज रेट पर इसका असर नहीं पड़ेगा। इकोनॉमिस्ट्स ने मनीकंट्रोल को यह बात बताई है। पिछले कुछ समय से डॉलर के मुकाबले रुपया में लगातार कमजोरी आ रही है।

कोटक सिक्योरिटीज में करेंसी डेरिवेटिव के हेड विकास बजाज ने कहा, "हमने रुपया में कमजोरी आने पर इस तरह के उपाय पहले भी देखे हैं। इनका खास असर नहीं पड़ता है। हमें यह इस तथ्य को स्वीकार करना होगा कि करंट अकाउंट (बढ़ता व्यापार घाटा) और कैपिटल अकाउंट (पूंजी का देश से बाहर जाना) दोनों ही मोर्चों पर रुपया को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उधर, डॉलर को लेकर माहौल काफी सपोर्टिव है और वित्तीय स्थितियां कठिन हो रही हैं।"

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उन्होंने कहा कि विदेशी माहौल अनुकूल नहीं है जिससे आरबीआई के उपायों से छोटी अवधि में थोड़ा फायदा हो सकता है। लेकिन, इनसे रुपया की दिशा बदलने की उम्मीद कम है। मंगलवार को शुरुआती कारोबार में रुपया 80 के लेवल को पार कर गया।

RBI ने इस महीने की शुरुआत में देश में विदेशी करेंसी की आवक बढ़ाने के लिए कई उपायों का ऐलान किया था। उम्मीद थी कि इन उपायों से डॉलर के मुकाबले रुपया पर दबाव घटेगा। इनमें बैंकों को नॉन-रेजिडेंट्स इंडियंस से विदेशी मुद्रा जुटाने के लिए ज्यादा आजादी दी गई थी। सरकारी और प्राइवेट कंपनियों के बॉन्ड में छोटी अवधि के लिए विदेशी इनवेस्टर्स के निवेश की सीमा हटा दी गई थी।

इस साल डॉलर के मुकाबले रुपया 4.5 फीसदी कमजोर हो चुका है। इस दौरान RBI रुपया को सहारा देने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल करता रहा है। ट्रेडर्स का अनुमान है कि RBI ने स्पॉट और फॉरवर्ड मार्केट में पिछले छह हफ्तों में 30 से 40 अरब डॉलर की बिक्री की है। रूस ने 24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला किया था। 18 फरवरी को इंडिया का विदेशी मुद्रा भंडार 632.95 अरब डॉलर था। 24 जून को यह घटकर 593.32 अरब डॉलर पर आ गया।

एक्सपर्ट्स का कहना है कि RBI ने विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने के साथ ही यह संकेत देने के लिए इन उपायों का ऐलान किया है कि वह लगातार रुपये में आ रही कमजोरी को रोकना चाहता है। साथ ही वह अपने विदेशी मुद्रा भंडार को गिरने से बचाना चाहता है। एक्सपर्ट्स का यह भी कहना है कि RBI के उपायों से स्पॉट मार्केट में कुछ हद तक डॉलर की कमी दूर करने में मदद मिल सकती है।

IFA Global के फाउंडर अभिषेक गोएनका ने कहा, "सेंटिमेंट के लिहाज से ये उपाय अहम हैं। इससे मार्केट पार्टिसिपेंट्स को यह संकेत जाता है कि RBI रुपया में लगातार आ रही गिरावट को रोकने को लेकर प्रतिबद्ध है। वह इसमें उतार-चढ़ाव पर भी अंकुश लगाना चाहता है। "

MoneyControl News

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First Published: Jul 19, 2022 1:22 PM

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