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Zee Business हिंदी 6 दिन पहले ज़ीबिज़ वेब टीम

कमोडिटीज़ ट्रेडिंग ऑनलाइन

कमोडिटी व्यापार इक्विटी, बॉन्ड और रियल एस्टेट के पारंपरिक अवसरों से अलग, निवेश के लिए विविध अवसरों मुझे एक ब्रोकर चुनने में मदद करें को लाता है। ऐतिहासिक डेटा के आधार पर, अपने मौजूदा पोर्टफोलियो में कमोडिटी एक्सपोज़र जोड़ने से जोखिम कम करते हुए आपको रिटर्न बढ़ाने में मदद मिलती है। अन्य परिसंपत्ति वर्गों के साथ वस्तुओं का बहुत कम या नकारात्मक सहसंबंध है।

  • बुलियन, ऊर्जा, कृषि में व्यापार
  • कम मार्जिन पर व्यापार करना
  • पोर्टफोलियो का विविधीकरण
  • निवेश, व्यापार, बचाव और अनुमान लगाना
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानकीकृत कीमतें
  • जोखिम से बचाव

कमोडीटीज़ में निवेश के लिए हमें क्यों चुनें

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कमोडिटी के एफ.ए.क्यू

क्या किसी भी समय किसी भी कमोडिटी पर व्यापार / धारण की मात्रा की कोई सीमा है?

हाँ, उस मात्रा की अधिकतम अनुमेय सीमा है जिसे किसी विशेष कमोडिटी में कारोबार या आयोजित किया जा सकता है। यह सीमा संबंधित एक्सचेंजों और रेगुलेटर द्वारा निर्धारित की जाती है और कमोडिटी के अनुसार भिन्न होती है।

मैं कमोडिटी व्यापारों का निपटान कैसे करता हूँ?

कमोडिटी व्यापार प्रक्रिया के दो भाग हैं: ऑर्डर संसाधित करना और मार्क टू मार्केट (एम.टी.एम) निपटान। आप मोतीलाल ओसवाल के डीलिंग डेस्क या किसी अन्य ब्रोकर को फ़ोन पर एक आदेश दे सकते हैं, जिसके साथ आपका खाता है और यह व्यापार शुरू करता है। डीलर एक मूल्य देता है और आपको प्रारंभिक मार्जिन जमा करने के लिए कहता है।

क्या किसी कमोडिटी की कीमत एक दिन में बढ़ सकती है या गिर सकती है?

हां, अचानक और चरम मूल्य वृद्धि को रोकने के लिए सर्किट सीमाएं (ऊपरी और निचले) या दैनिक मूल्य सीमाएं (डीपीआर) हैं। जब एक सर्किट सीमा हिट होती है, तो व्यापार को पंद्रह मिनट के लिए रोक दिया जाता है।

कमोडिटी व्यापार क्या होता है?

कमोडिटी ट्रेडिंग दुनिया भर में कमोडिटी एक्सचेंजों में वस्तुओं के व्यवहार की प्रक्रिया है। कमोडिटी को 4 प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है: धातुएँ - चाँदी, सोना, प्लेटिनम, और तांबा, ऊर्जा - कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, गैसोलीन, और तेल गरम करना, कृषि - मक्का, फलियाँ, चावल, गेहूँ, आदि और पशुधन और मांस - अंडे , सूअर का मांस, मवेशी, आदि।

भारत में कमोडिटी ट्रेडिंग कैसे शुरू करें?

भारत में कमोडिटी ट्रेडिंग निम्नलिखित एक्सचेंजों पर की जाती है: मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (MCX) नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (NCDEX) यूनिवर्सल कमोडिटी एक्सचेंज (UCX) नेशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (NMCE) इंडियन कमोडिटी एक्सचेंज (ICEX) ACE डेरिवेटिव्स एंड कमोडिटी एक्सचेंज लिमिटेड (ACE) भारत में वस्तुओं का व्यापार करने के लिए, आपको एक भरोसेमंद ब्रोकर चुनने और उनके साथ एक डीमैट और ट्रेडिंग खाता खोलने की आवश्यकता है। ट्रेडिंग शुरू करने के लिए शुरुआती निवेश राशि का चयन करें। सिमुलेशन पर अभ्यास करना शुरू करें और बाजार की समझ, जोखिम की भूख, पूंजी की उपलब्धता आदि के आधार पर एक व्यापारिक रणनीति बनाएं।

कमोडिटी बाज़ार में निवेश कैसे करें?

कमोडिटी बाजार में निवेश करने का सबसे आम तरीका एक वायदा अनुबंध के माध्यम से है, जो बाद के समय में एक निर्धारित मूल्य पर कमोडिटी की एक विशिष्ट मात्रा को खरीदने या बेचने के लिए एक समझौता है।

कमोडिटी विनिमय क्या है?

कमोडिटी बाजार एक संगठित, विनियमित बाजार है जो वस्तुओं और संबंधित निवेश उत्पादों के व्यापार और विनिमय के लिए मंच, नियम, विनियम और प्रक्रिया प्रदान करता है। कई प्रकार के आधुनिक जिंस एक्सचेंज हैं, जिनमें धातु, ईंधन और कृषि जिंस एक्सचेंज शामिल हैं। ट्रेडर्स ट्रेड फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट्स एक पूर्व निर्धारित तारीख तक एक सहमति पर वस्तुओं को खरीदने या बेचने के लिए सहमत हैं। भारत में छह कमोडिटी एक्सचेंज हैं, मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (MCX), नेशनल कमोडिटीज एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (NCDEX), नेशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज, इंडियन कमोडिटी एक्सचेंज, ACE डेरिवेटिव्स एक्सचेंज और यूनिवर्सल कमोडिटी एक्सचेंज।

मैं किस कमोडिटी का व्यापार कर सकता हूँ?

जिन कमोडिटी का व्यापार किया जा सकता है, वे निम्नलिखित 4 श्रेणियों में से किसी एक में हो सकती हैं: • धातु और सामग्री जैसे सोना, चांदी, प्लैटिनम, तांबा, लौह अयस्क, एल्युमिनियम, निकल, जस्ता, टिन, स्टील, सोडा ऐश, दुर्लभ पृथ्वी धातु आदि। • कच्चे तेल, ताप तेल, प्राकृतिक गैस, और गैसोलीन, थर्मल कोयला, वैकल्पिक ऊर्जा जैसी ऊर्जा। • एग्री-कमोडिटी (सोयाबीन, अरंडी के बीज, काली मिर्च, धनिया, हल्दी, चना, उड़द, तोर दाल, कच्चा पाम तेल, मूंगफली का तेल, सरसों के बीज आदि) • तेल सेवाओं, खनन सेवाओं और अन्य जैसी सेवाएं।

कमोडिटी स्पॉट और फ्यूचर्स मार्केट में क्या अंतर है?

कमोडिटी स्पॉट और फ्यूचर्स मार्केट के बीच मुख्य अंतर डिलीवरी की तारीखों और कीमतों में हैं। स्पॉट प्राइस एक स्पॉट कॉन्ट्रैक्ट की वर्तमान कीमत है, जिस पर एक विशेष वस्तु को तत्काल डिलीवरी के लिए निर्दिष्ट स्थान पर खरीदा या बेचा जा सकता है। फ्यूचर्स मार्केट दो पक्षों के बीच एक अनुबंध है, जिसमें एक पक्ष एक निश्चित मूल्य पर एक निश्चित मात्रा में वस्तु या वित्तीय उपकरण खरीदने के लिए सहमत होता है, और सामान की डिलीवरी भविष्य में बाद की तारीख (पूर्व-निर्दिष्ट) पर मुझे एक ब्रोकर चुनने में मदद करें की जाती है। किसी कमोडिटी की फ्यूचर्स प्राइस का निर्धारण उसके वर्तमान स्पॉट प्राइस, डिलीवरी तक के समय, जोखिम मुक्त ब्याज दर और भविष्य की तारीख में स्टोरेज लागत के संबंध में कमोडिटी की कीमत पर किया जाता है।

म्यूचुअल फंड में पैसा कैसे लगायें?

आप घर बैठे ही बिना किसी ब्रोकर या एजेंट की मदद से म्यूचुअल फंड में पैसा लगा सकते हैं.

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जिन लोगों को शेयर बाजार में निवेश करने के बारे में कोई आइडिया नहीं है उनके लिए भी म्यूचुअल फंड निवेश का एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है. आप घर बैठे ही बिना किसी ब्रोकर या एजेंट की मदद से म्यूचुअल फंड में पैसा लगा सकते हैं. इसे म्यूचुअल फंड का डायरेक्ट प्लान कहते हैं.

गुरुग्राम में काम करने वाले सीएफपी विक्रम मल्होत्रा ने कहा, "म्यूचुअल फंड वास्तव में लोगों से जुटाए गए खुदरा पैसे का बड़ा ग्रुप है. इसे शेयर, बांड और सिक्योरिटीज में किसी अनुभवी फंड मैनेजर द्वारा निवेश किया जाता है. फंड मैनेजर अपनी बुद्धिमत्ता और टीम के रिसर्च के आधार पर किसी सेक्टर की कंपनी में निवेश का फैसला करते हैं. इसके बाद मामूली शुल्क लेकर निवेशकों को उनका रिटर्न दिया जाता है."

महिंद्रा मैन्युलाइफ म्यूचुअल फंड के सीईओ आशुतोष विश्नोई ने कहा, "कोई भी म्यूचुअल फंड शेयरों की तुलना में कम जोखिम के साथ बेहतर रिटर्न प्राप्त करने के लिए निवेश का बेहतरीन माध्यम है." उन्होंने गृहणी, नई नौकरी में आए लोगों और छोटे खुदरा निवेशकों को सिप के जरिए निवेश की सलाह दी है. उन्होंने कहा कि मौजूदा वक्त नई सिप शुरू करने के लिहाज से सबसे उपयुक्त है.

  1. म्यूचुअल फंड क्या है?
    म्यूचुअल फंड निवेश का एक माध्यम है जिसमें कई निवेशकों का पैसा एक जगह जमा किया जाता है. इस फंड में से पैसे का निवेश शेयर बाजार में किया जाता है. म्यूचुअल फंड का प्रबंधन एसेट मैनेजमेंट कंपनियां करती है. हर एएमसी में आमतौर पर कई म्यूचुअल फंड स्कीम होती हैं.
  2. म्यूचुअल फंड कैसे चुनें?
    आप किस प्रकार के फंड में निवेश करना चाहते हैं, सबसे पहले यह चुनें. म्यूचुअल फंड में निवेश करते वक्त आपको निवेश की अवधि, जोखिम उठाने की क्षमता और निवेश के लक्ष्य के बारे में ध्यान रखना चाहिए. इक्विटी म्यूचुअल फंड तभी चुने जाने चाहिए जब आप ज़्यादा जोखिम उठाने को तैयार हों और आपके निवेश की अवधि पांच-सात साल से अधिक हो. अगर आप कम जोखिम उठा सकते हैं, तो आप हाइब्रिड फंड में निवेश कर सकते हैं. यदि आप मामूली या बहुत कम जोखिम लेना चाहते हैं, तो आपको डेट फंड में निवेश करना चाहिए. सभी म्यूचुअल फंड में कुछ न कुछ जोखिम होता है. म्यूचुअल फंड चुनने के लिए एक समय-सीमा में उसका प्रदर्शन देखकर उसकी तुलना कर फंड चुन सकते हैं.
  3. म्यूचुअल फंड से कमाई कैसे होती है?
    आप किस प्रकार के फंड में निवेश करना चाहते हैं, आपकी कमाई इस बात पर निर्भर करती है. लंबी अवधि में बेहतरीन रिटर्न पाने के लिए आप इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं. इसके बाद आप अलग-अलग एएमसी के किसी फंड में से चुन सकते हैं.

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अनजान शहर में ना हो दिक्कत इसलिए करें ये काम

मन में कई सवाल उठते हैं, कई चीज़ो की टेंशन होती है- कहां रहेंगे? फर्नीचर कहां से जुटाएंगे? जरूरत के समय कौन मदद करेगा? हम आपको बताते हैं कुछ ऐसे तरीके जिनसे आप इन सब दिक्कतों को सहजता से दूर कर सकते हैं.

तनावपूर्ण हो सकता है नए शहर में शिफ्ट करना

अजीत तिवारी

  • नई दिल्ली,
  • 03 मई 2018,
  • (अपडेटेड 03 मई 2018, 6:24 PM IST)

किसी नए शहर में पहली नौकरी मिले तो उत्साह ही अलग होता है. वेतन और भत्तों जैसी महत्पूर्ण चीज़ों पर मोलभाव करते समय जिस गर्व की अनुभूति होती है, वह भावना बेशकीमती होती है. एक पल में आप बड़े हो जाते हैं. सयाने हो जाते हैं. और फिर आती है परिणाम की घड़ी- एक शहर से दूसरे शहर शिफ्ट करने का समय. मां के हाथ का खाना और बचपन के यार- इन सबसे दूर एक अनजान, नए शहर में शिफ्ट करना तनावपूर्ण लग सकता है.

मन में कई सवाल उठते हैं, कई चीज़ों की टेंशन होती है- कहां रहेंगे? फर्नीचर कहां से जुटाएंगे? जरूरत के समय कौन मदद करेगा? हम आपको बताते हैं कुछ ऐसे तरीके जिनसे आप इन सब दिक्कतों को सहजता से दूर कर सकते हैं:

1. सबसे महत्त्वपूर्ण: सही मकान की तलाश

किसी नए शहर में पहुंचने के बाद काफी परेशानी होती है, समझ नहीं आता कि कहां रहें, अपने लिए घर की खोज कहाँ से शुरू करें. इसका बेहतरीन तरीका यह है कि अपना टिकट बुक करने से पहले ही एक मकान बुक कर लें. अपने ऑफिस के आसपास के इलाके में ही तलाश करें. मकान अगर आपके नए ऑफिस के आसपास मिला तो आपके आने-जाने का समय और पैसा दोनों बचेगा. अगर आपका बजट सीमित है तो भी कोई बात नहीं, दूसरे बेहतरीन विकल्प चुनें और यह सुनिश्चित करें कि यह ऐसा इलाका हो, जो पब्लिक ट्रांसपोर्ट से अच्छी तरह से जुड़ा हो और उसके आसपास सभी बुनियादी सुविधाएं हों. इसके अलावा, जब तक आपके पास मार्केट रेट और अन्य जानकारी उपलब्ध न हो, किसी ब्रोकर के माध्यम से प्रॉपर्टी देखने की कोशि‍श न करें. ऐसा करने पर आपको ज्यादा किराया देना पड़ सकता है.

2. फर्नीचर की दिक्कत

यदि फुली फर्निश्ड मकान देखते हैं तो आपको फर्नीचर की चिंता से मुक्ति मिल जाएगी. इससे बेसिक फर्नीचर खरीदने के लिए आपको किसी तरह की रकम खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ेगी और इस बचत से आप कुछ एक्स्ट्रा घरेलू सामान खरीदने की लग्जरी हासिल कर सकते हैं. इस तरह आप घर से दूर होने पर भी घर जैसी एक जगह बनाने में सफल होंगे. यही नहीं, मकान छोड़ने के समय भी आप फर्नीचर शिफ्ट करने की दिक्कत और खर्च- दोनो से बच जाएंगे.

3. अकेले रहना किसको पसंद है?

क्या आप भी चाहते हैं की आपके पास आपकी पहली सैलरी मिलने पर साथ पार्टी करने वाले रूममेट्स हो जिनके साथ आप महीने भर का खर्च बांट लें और घर के काम मिलजुल कर पूरे कर लें? ये फैसला आपको करना है. नए शहर में अकेलेपन से बचना है तो शेयरिंग वाला फ्लैट लें. हां, इससे थोड़ी निजता ख़त्म हो सकती है मगर कम से कम आप महीने के मुझे एक ब्रोकर चुनने में मदद करें आखिर में अकेले, उदास तो नहीं बैठे होंगे, और न ही इसका असर आपकी कार्यक्षमता पर पड़ेगा.

4. ऑफिस आने-जाने के लिए क्या करें

किसी नए शहर में रहने मुझे एक ब्रोकर चुनने में मदद करें का मतलब है कि न तो होगी आपके पास पापा की कार, और न ही होगी आपकी पसंदीदा बाइक (हां, अगर आप अपनी बाइक को साथ लेकर आते हैं तो बात ही कुछ और है!) इसलिए यह जरूरी है कि आप पहले से ही नए शहर के यातायात के साधन देख-समझ लें, अपने मकान के जो सबसे करीब साधन उपलब्ध हों, उसकी सेवाएं लें.

आखि‍रकार आपको अपनी नई नौकरी के लिए समय पे पहुंचना है और अपने सीनियर्स की नजर में एक दीर्घकालिक अच्छी छवि बनानी है. क्या आप ऐसा नहीं चाहेंगे? तो अपने ऑफिस के लिए कौन सा रूट लेना है, उसे तय कर लें. बस/मेट्रो/लोकल ट्रेन आदि की पूरी टाइमिंग आपको याद रखनी चाहिए. यदि सौभाग्य से आपके रूममेट्स का ऑफिस भी आपके ऑफिस के आसपास है, या आप एक ही ऑफिस में काम करते हैं, तो उनके साथ आप पूलिंग का विकल्प भी अपना सकते हैं.

5. प्रोफेशनल कॉन्टैक्ट बनाएं

सेटल हो जाने के बाद आप ऐसे लोगों से कॉन्टैक्ट बनाना शुरू करें जो आपको आपके पेशे में तरक्की करने में मदद कर सकते हों. इसमें आपके फ्लैट के पार्टनर भी काम आ सकते हैं. अलग-अलग प्रोफेशनल बैकग्राउंड और तरह-तरह के अनुभव होने की वजह से वे अपनी जानकारी और संपर्क के द्वारा आपको ऐसे लोगों से मिलाने में मदद कर सकते हैं, जो निकट भविष्य में नए अवसरों के दरवाजे खोल सकें. यह आपके लिए फ्लैट शेयर करने की एक और वजह हो सकती है.

गूगल से तो आपको कई सैकड़ों मकानों का विकल्प मिल सकता है, मगर नए, अनजान शहर में कौन सा घर, कौन सा इलाका चुनना है, ये कैसे तय करें? घबराहट होती है, टेंशन भी. यदि आप इस तनाव को दूर करने का आसान तरीका चाहते हैं तो नेस्टअवे पर मुझे एक ब्रोकर चुनने में मदद करें उपलब्ध प्रॉपर्टी को देखें और घर बैठे ही ढूंढे अपने पसंद का आशियाना. इस पर आप मकान तलाश कर ब्रोकरेज की बचत तो कर ही सकते हैं, साथ ही आपको प्रचलित 10 महीने की जगह महज 2 महीने का सिक्योरिटी डिपॉजिट ही देना होता है. यही नहीं, इसमें आपको फर्निश्ड अपार्टमेंट के तमाम ऐसे विकल्प मिलते हैं, जहां आप अपने तरह के लोगों के साथ रूम या फ्लैट शेयर कर सकते हैं. कितना आसान है ना? तो पूरी तैयारी कर लें और भावी जीवन के लिए सफलता के साथ उड़ान भरें. आपको शुभकामनाएं!

क्या है Reinsurance प्रोसेस, कंपनियां कब हायर करती हैं रीइंश्योरेंस ब्रोकर- जानें फायदे

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कई मामलों में, बीमा कंपनियां रीइंश्योरेंस ब्रोकर की सेवाओं का यूज करके इन कंपनियों के साथ डील करती हैं. साधारण शब्दों में समझें तो रीइंश्योरेंस एक ऐसा इंश्योरेंस है जो एक इंश्योरेंस कंपनी खुद को रिस्क से बचाने के लिए खरीदती है. रीइंश्योरेंस की प्रोसेस मुश्किल हो सकती है. ये इंडिविजुअल पॉलिसी खरीदने जैसा नहीं है. जहां बहुत कम संख्या में ऑप्शन मिल जाते हैं. बीमा कंपनियों की बैलेंस शीट पर बड़े रिस्क होते हैं. इन रिस्क को कम करने के लिए रीइंश्योरेंस ब्रोकर को सबसे अच्छा ऑप्शन मुझे एक ब्रोकर चुनने में मदद करें माना जाता है. ये ब्रोकर बीमा करने का सबसे अच्छा और सस्ता तरीका खोजने में माहिर होते हैं. इसलिए कई बीमा कंपनियां अपनी सर्विस को ज्यादा अच्छा बनाने के लिए रीइंश्योरेंस ब्रोकरों को हायर करती हैं. इन ब्रोकरों का एक्सपीरियंस बीमा कंपनियों के बहुत काम आता है. ये ब्रोकर कमीशन के रूप में या फिक्स प्राइस के रूप में कमाई करते है. कभी-कभी रीइंश्योरेंस बिजनेस के लिए एक फिक्स राशि पर मिनिमम फिक्स प्राइस का भुगतान किया जाता है. और फिर रीइंश्योरेंस ब्रोकरों को उसी कंपनी के साथ अपना बिजनेस करने के लिए अच्छे-खासे कमीशन की पेशकश की जाती है.

रीइंश्योरेंस ब्रोकर कौन-कौन सी सुविधाएं देते हैं

पॅालिसी का सिलेक्शन

ऐसे कई तरीके हैं जिनमें अलग-अलग तरह की रीइंश्योरेंस पॅालिसी का इस्तेमाल करके एक ही रिस्क को कवर किया जा सकता है. रीइंश्योरेंस ब्रोकर को रीइंश्योरेंस पॅालिसी लेने का काफी एक्सपीरियंस होता है. अपने डेटा के आधार पर, वे बेहतर तरीके से जानते हैं कि किस तरह के रिस्क को कवर के लिए कौनसी पॅालिसी बढ़िया कवरेज देगी.

नेगोशिएटिंग रेट

रीइंश्योरेंस ब्रोकर बड़ी संख्या में फर्मों के लिए रीइंश्योरेंस पॅालिसी खरीदते हैं. इसलिए रीइंश्योरेंस ब्रोकर बहुत सारे बिजनेस को कंट्रोल करते हैं. रीइंश्योरेंस कंपनियाँ इन ब्रोकर को स्पेशल रेट देती हैं. जो बीमा कंपनी के मुझे एक ब्रोकर चुनने में मदद करें डायरेक्ट अपनी पॉलिसी को लाने पर उपलब्ध नहीं होती हैं.

प्रशासनिक कार्यों में सहायता

रीइंश्योरेंस पॉलिसी जारी करना एक पेंचीदा काम है. इसके लिए कागजी कार्रवाई के रूप में बहुत अधिक प्रशासनिक कामों की जरुरत होती है. इसलिए ब्रोकर का काम ये होता है कि वो रीइंश्योरेंस कॅान्ट्रेक्ट के पॅालिसी नियमों का ध्यान से इवेल्यूएशन करे. इन प्रशासनिक कामों के लिए बाजार से संबंधित बहुत ज्यादा स्किल्ड और एक्सपीरियंस वाले इंसान की जरुरत होती है.

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क्लेम करने के लिए असिस्टेंस मिलता है

रीइंश्योरेंस ब्रोकर बाजार को इतनी अच्छी तरह से जानते हैं, कि वे हर तरह के क्लेम के भुगतान रेशो को समझते हैं. इसलिए ब्रोकर अपने ग्राहकों को जितना हो सके उतनी जल्दी डेडलाइन के भीतर क्लेम दिलवाने में मदद करते हैं. ये जरुरी दस्तावेजों के बारे में भी जानते हैं जिनकी क्लेम करने की प्रोसेस में जरुरत होती है. हालांकि ये तय करना बीमा कंपनी का काम है कि प्रीमियम का भुगतान समय पर किया जाए. लेकिन बीमा कंपनियों के पास कई पॅालिसी होती हैं. इस कारण वे भुगतान करने से चूक सकती हैं. इसलिए ज्यादातर ब्रोकर कस्टमर के बिहाफ पर प्रीमियम को पे कर देते हैं. जिसका चार्ज वे बाद में ग्राहक से वसूल लेते हैं.

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