रुपये का मूल्य और विदेशी मुद्रा भंडार

रुपये का मूल्य और विदेशी मुद्रा भंडार
Q. With reference to Foreign Exchange reserves, consider the following Statements:
1. The foreign exchange reserves help a country to maintain the value of their currency at fixed rate.
2. Countries with a fixed exchange rate regime use forex reserves to keep the value of their currency lower than US Dollar.
3. Depreciation of rupee in India will lead to increase in foreign exchange reserves.
Which of the above given statements is/are correct?
Q. विदेशी मुद्रा भंडार के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. विदेशी मुद्रा भंडार किसी देश को निश्चित दर पर उसकी मुद्रा के मूल्य को बनाए रखने में मदद करता है।
2. एक निश्चित विनिमय दर व्यवस्था वाले देश अपनी मुद्रा का मूल्य अमेरिकी डॉलर से कम रखने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग करते हैं।
3. भारत में रुपये के मूल्यह्रास से विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि होगी।
विदेशी मुद्रा भंडार लगातार दूसरे सप्ताह बढ़कर 547.25 अरब डॉलर पर
मुंबई, 25 नवंबर (भाषा) देश का विदेशी मुद्रा भंडार 18 नवंबर को समाप्त सप्ताह में 2.537 अरब डॉलर बढ़कर 547.252 अरब डॉलर पर पहुंच गया। इसमें लगातार दूसरे सप्ताह वृद्धि हुई है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, 11 नवंबर को समाप्त सप्ताह रुपये का मूल्य और विदेशी मुद्रा भंडार रुपये का मूल्य और विदेशी मुद्रा भंडार में विदेशी मुद्रा भंडार 14.72 अरब डॉलर बढ़कर 544.72 अरब डॉलर पर पहुंच गया था। अगस्त 2021 के बाद देश के विदेशी मुद्रा भंडार में इस सप्ताह सबसे तेज वृद्धि हुई रुपये का मूल्य और विदेशी मुद्रा भंडार है।
गौरतलब है कि अक्टूबर 2021 में विदेशी मुद्रा भंडार 645 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया था। वैश्विक घटनाक्रम के बीच केंद्रीय बैंक के रुपये की विनियम दर में तेज गिरावट को रोकने के लिए मुद्रा भंडार का उपयोग करने की वजह से इसमें कमी आई है।
केंद्रीय बैंक ने कहा कि 18 नवंबर को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा आस्तियां (एफसीए) 1.76 अरब डॉलर बढ़कर 484.288 अरब डॉलर हो गईं।
डॉलर में अभिव्यक्त किये जाने वाली विदेशी मुद्रा आस्तियों रुपये का मूल्य और विदेशी मुद्रा भंडार में मुद्रा भंडार में रखे यूरो, पौंड और जापानी येन जैसे गैर डॉलर मुद्रा के मूल्य में आई कमी या बढ़त के प्रभावों को दर्शाया जाता है।
इसके अलावा स्वर्ण भंडार का मूल्य भी आलोच्य सप्ताह में 31.5 करोड़ डॉलर की वृद्धि के साथ 40.011 अरब डॉलर पर पहुंच गया।
आंकड़ों के अनुसार, विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) 35.1 करोड़ डॉलर बढ़कर 17.906 अरब डॉलर हो गया।
आंकड़ों के अनुसार समीक्षाधीन सप्ताह में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में रखा देश का मुद्राभंडार भी 11.1 करोड़ डॉलर बढ़कर 5.047 अरब डॉलर हो गया।
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.
India Forex Reserve: विदेशी मुद्रा भंडार में थमा गिरावट का रूझान, आरबीआई के साप्ताहिक आंकड़ों से खुलासा
India Forex Reserve: पिछले कुछ समय से देश के विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserve) में गिरावट दिख रही थी लेकिन 28 अक्टूबर को समाप्त होने वाले सप्ताह में यह ट्रेंड बदला है
28 अक्टूबर को समाप्त होने वाले सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 656 करोड़ डॉलर बढ़कर 56.11 करोड़ रुपये पर पहुंच गया।
India Forex Reserve: पिछले कुछ समय से देश के विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserve) में गिरावट दिख रही थी लेकिन 28 अक्टूबर को समाप्त होने वाले सप्ताह में यह ट्रेंड बदला है। 28 अक्टूबर को समाप्त होने वाले सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 656 करोड़ डॉलर बढ़कर 56.11 हजार करोड़ रुपये पर पहुंच गया। ये आंकड़े भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) हर हफ्ते जारी करता है।
आज शुक्रवार 4 नवंबर को जारी आंकड़ों से विदेशी मुद्रा भंडार में उछाल की जानकारी मिली है। आईएमएफ के पास भी देश का भंडार मजबूत हुआ है और 28 अक्टूबर को समाप्त होने रुपये का मूल्य और विदेशी मुद्रा भंडार वाले सप्ताह में यह 4.8 करोड़ डॉलर उछलकर 484.7 करोड़ डॉलर पर पहुंच गया।
डॉलर दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा क्यों मानी जाती है?
एक समय था जब एक अमेरिकी डॉलर सिर्फ 4.16 रुपये में खरीदा जा सकता था, लेकिन इसके बाद साल दर साल रुपये का सापेक्ष डॉलर महंगा होता जा रहा है अर्थात एक डॉलर को खरीदने के लिए अधिक डॉलर खर्च करने पास रहे हैं. ज्ञातव्य है कि 1 जनवरी 2018 को एक डॉलर का मूल्य 63.88 था और 18 फरवरी, 2020 को यह 71.39 रुपये हो गया है. आइये इस लेख में जानते हैं कि डॉलर दुनिया में सबसे मजबूत मुद्रा क्यों मानी जाती है?
दुनिया का 85% व्यापार अमेरिकी डॉलर की मदद से होता है. दुनिया भर के 39% क़र्ज़ अमेरिकी डॉलर में दिए जाते हैं और कुल डॉलर की संख्या के 65% का इस्तेमाल अमरीका के बाहर होता रुपये का मूल्य और विदेशी मुद्रा भंडार है. इसलिए विदेशी बैंकों और देशों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर की ज़रूरत होती है. आइये इस लेख के माध्यम से जानते हैं कि आखिर डॉलर को विश्व में सबसे मजबूत मुद्रा के रूप में क्यों जाना जाता है?
अब हालात तो ऐसे हो गए हैं कि यदि कोई डॉलर का नाम लेता है तो लोगों के दिमाग में सिर्फ अमेरिकी डॉलर ही आता है जबकि विश्व के कई देशों की करेंसी का नाम भी 'डॉलर' है. अर्थात अमेरिकी डॉलर ही “वैश्विक डॉलर” का पर्यायवाची बन गया है.
डॉलर की मजबूती का इतिहास:
वर्ष 1944 में ब्रेटन वुड्स समझौते के बाद डॉलर की वर्तमान मज़बूती की शुरुआत हुई थी. उससे पहले ज़्यादातर देश केवल सोने को बेहतर मानक मानते थे. उन देशों की सरकारें वादा करती थीं कि वह उनकी मुद्रा को सोने की मांग के मूल्य के आधार पर तय करेंगे.
न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स में दुनिया के विकसित देश मिले और उन्होंने अमरीकी डॉलर के मुक़ाबले सभी मुद्राओं की विनिमय दर को तय किया. उस समय अमरीका के पास दुनिया का सबसे अधिक सोने का भंडार था. इस समझौते ने दूसरे देशों को भी सोने की जगह अपनी मुद्रा का डॉलर को समर्थन करने की अनुमति दी.
(ब्रेटन वुड्स कांफ्रेंस)
सन 1970 की शुरुआत में कई देशों ने मुद्रास्फीति से लड़ने के लिए डॉलर के बदले सोने की मांग शुरू कर दी थी. ये देश अमेरिका को डॉलर देते और बदले में सोना ले लेते थे. ऐसा होने पर अमेरिका का स्वर्ण भंडार खत्म होने लगा. उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने अपने सभी भंडारों को समाप्त करने की अनुमति देने के बजाय डॉलर को सोने से अलग कर दिया और इस प्रकार डॉलर और सोने के बीच विनिमय दर का करार खत्म हो गया और मुद्राओं का विनिमय मूल्य; मांग और पूर्ती के आधार पर होने लगा.
डॉलर सबसे मजबूत मुद्रा होने के निम्न कारण हैं
1. इंटरनेशनल स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइज़ेशन लिस्ट के अनुसार दुनिया भर में कुल 185 मुद्राएँ हैं. हालांकि, इनमें से ज़्यादातर मुद्राओं का इस्तेमाल अपने देश के भीतर ही होता है. कोई भी मुद्रा दुनिया भर में किस हद तक प्रचलित है यह उस देश की अर्थव्यवस्था और ताक़त पर निर्भर करता है. ज़ाहिर है डॉलर की मज़बूती और उसकी स्वीकार्यता अमरीकी अर्थव्यवस्था की ताक़त को दर्शाती है.
2. दुनिया का 85% व्यापार अमेरिकी डॉलर की मदद से होता है. दुनिया भर के 39% क़र्ज़ अमेरिकी डॉलर में दिए जाते हैं और कुल डॉलर की संख्या के 65% का इस्तेमाल अमरीका के बाहर होता है. इसलिए विदेशी बैंकों और देशों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर की ज़रूरत होती है.
3. विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में देशों के कोटे में भी सदस्य देशों को कुछ हिस्सा अमेरिकी डॉलर के रूप में जमा करना पड़ता है.
4. दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों में जो विदेशी मुद्रा भंडार होता है उसमें 64% अमरीकी डॉलर होते हैं.
5. यदि दो नॉन अमेरिकी देश भी एक दूसरे के साथ व्यापार करते हैं तो भुगतान के रूप में वे अमेरिकी डॉलर लेना पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि यदि उनके हाथ में डॉलर है तो रुपये का मूल्य और विदेशी मुद्रा भंडार रुपये का मूल्य और विदेशी मुद्रा भंडार वे किसी भी अन्य देश से अपनी जरूरत का सामान आयात कर लेंगे.
6. अमेरिकी डॉलर की विनिमय दर में बहुत अधिक उतार-चढ़ाव नहीं होता है इसलिए देश इस मुद्रा को तुरंत स्वीकार कर लेते हैं.
7. अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है जिसके कारण यह बहुत से गरीब देशों को अमरीकी डॉलर में ऋण देता है और ऋण बसूलता भी उसी मुद्रा में हैं जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर की मांग हमेशा रहती है.
8. अमेरिका विश्व बैंक समूह और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के खजानों में सबसे अधिक योगदान देता है इस कारण ये संस्थान भी सदस्य देशों को अमेरिकी डॉलर में ही कर्ज देते हैं. जो कि डॉलर की वैल्यू को बढ़ाने के मददगर होता है.
डॉलर के बाद दुनिया में दूसरी ताक़तवर मुद्रा यूरो है जो दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों के विदेशी मुद्रा भंडार में 20% है. यूरो को भी पूरे विश्व में आसानी से भुगतान के साधन के रूप में स्वीकार किया जाता है. दुनिया के कई इलाक़ों में यूरो का प्रभुत्व भी है. यूरो इसलिए भी मज़बूत है क्योंकि यूरोपीय यूनियन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. कुछ अर्थशास्त्री मानते हैं कि निकट भविष्य में यूरो, डॉलर की जगह ले सकता है.
डॉलर को चीनी और रूसी चुनौती:
मार्च 2009 में चीन रुपये का मूल्य और विदेशी मुद्रा भंडार और रूस ने एक नई वैश्विक मुद्रा की मांग की. वे चाहते हैं कि दुनिया के लिए रुपये का मूल्य और विदेशी मुद्रा भंडार रुपये का मूल्य और विदेशी मुद्रा भंडार एक रिज़र्व मुद्रा बनाई जाए 'जो किसी इकलौते देश से अलग हो और लंबे समय तक स्थिर रहने में सक्षम हो.
इसी कारण चीन चाहता है कि उसकी मुद्रा “युआन” वैश्विक विदेशी मुद्रा बाज़ार में व्यापार के लिए व्यापक तरीक़े से इस्तेमाल हो. अर्थात चीन, युआन को अमेरिकी डॉलर की वैश्विक मुद्रा के रूप में इस्तेमाल होते देखना चाहता है. ज्ञातव्य है कि चीन की मुद्रा युआन को IMF की SDR बास्केट में 1 अक्टूबर 2016 को शामिल किया गया था.
यूरोपियन यूनियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2016 में विश्व के कुल निर्यात में अमेरिका का हिस्सा 14% और आयात में अमेरिकी हिस्सा 18% था. तो इन आंकड़ों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने के पीछे सबसे बड़ा कारण अमेरिका का विश्व व्यापार में महत्व और डॉलर की अंतरराष्ट्रीय बाजार में वैश्विक मुद्रा के रूप में सर्वमान्य पहचान है.