समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार

Economic Survey 2022: आर्थिक सर्वे ने पेश की अर्थव्यस्था की सुनहरी तस्वीर, बजट में ग्रोथ को तेज करने पर होगा जोर
विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति में देश में काफी बेहतर है। पिछले साल 31 दिसंबर तक भारत का फॉरेक्स रिजर्व 634 अरब डॉलर था, जिसके पीछे मुख्य कारण पिछले दोनों वित्त वर्षों के दौरान विश्व व्यापार में भारत का भुगतान संतुलन पॉजिटिव रहना है। यह रिजर्व 13.2 महीनों के मर्चेंडाइज आयात के लिए पर्याप्त है
भुवन भास्कर
आम बजट 2022-23 से एक दिन पहले पेश आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 ने देश की अर्थव्यवस्था की जो तस्वीर सामने रखी है, उसने बजट से उम्मीदों को और बढ़ा दिया है। सर्वे का लब्बोलुआब यह है कि कोरोना और उसकी मुश्किलें अतीत की बात हो चुकी हैं और अब देश पीछे मुड़कर देखने को तैयार नहीं है। सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के हवाले से कहा है कि अगले दो वर्षों में भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनकर उभरने वाला है। चालू साल में 9.2% की वृद्धि दर हासिल करने की उम्मीद के बाद अब अगले साल यानी 2022-23 में अर्थव्यवस्था के 8-8.5% की रफ्तार से बढ़ने की संभावना जताई गई है।
इस साल कृषि क्षेत्र की ग्रोथ रेट 3.9% रहने की उम्मीद है, जो कि पिछले साल 3.2% रही थी। सेक्टर आधारित यह ग्रोथ व्यापक है और लगभग हर सेक्टर 2021-22 के दौरान जबर्दस्त वृद्धि दर्ज करने की राह पर है। औद्योगिक क्षेत्र में चालू वर्ष के दौरान 11.8% की वृद्धि रहने का अनुमान है, जबकि पिछले वर्ष इसमें 7% की कमी दर्ज की गई थी। सेवा क्षेत्र में भी इस वर्ष 8.4% की वृद्धि रहने की उम्मीद है, जबकि 2020-21 के दौरान यह 8.2% संकुचित हुई थी। इतना ही नहीं, अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में भी 2021-22 के संकेत काफी उत्साहजनक रहे हैं।
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देश का कुल निर्यात रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा है। जहां 2020-21 के दौरान निर्यात में 4.7% की कमी आई थी, वहीं चालू वर्ष में इसके 16.5% बढ़ने की उम्मीद है। हालांकि निर्यात से ज्यादा तेजी आयात में दर्ज की गई है, जो कि पिछले साल 13.6% घटा था, जबकि इस साल इसमें 29.4% वृद्धि की संभावना है। आयात में इतनी जबर्दस्त वृद्धि का कारण खपत में हुई बढ़ोतरी में देखा जा सकता है।
कुल मिलाकर चालू साल में खपत लगभग 7% बढ़ने की संभावना है। इसमें खास बात यह है कि खपत बढ़ाने में सरकार और निजी क्षेत्र की लगभग बराबर भागीदारी है। सरकारी खपत पिछले साल के 2.9% से बढ़कर इस साल 7.6% रहने की संभावना है, जबकि निजी क्षेत्र जिसने पिछले साल खपत में 9% से ज्यादा की कमी की थी, इस साल 6.9% ज्यादा खपत कर रहा है। यह कोविड से पूर्व निजी क्षेत्र की खपत का लगभग 97% है।
खपत के अलावा निवेश में भी स्थितियां काफी सुधरी हैं। निवेश, जिसकी गणना ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन (GFCF) के रूप में की जाती है और जो भविष्य में आमदनी पैदा करने के लिहाज से एक महत्वपूर्ण कारक है, में 15% की वृद्धि का अनुमान है, जो कि पिछले साल लगभग 11% घटा था। इतना ही नहीं, सरकार ने पूंजीगत व्यय और इंफ्रास्ट्रक्चर पर जो खर्च किए हैं, उसके कारण 2021-22 में निवेश और GDP का अनुपात बढ़कर 29.6% तक पहुंच गया है, जो कि पिछले 7 वर्षों का उच्चतम स्तर है।
विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति में देश में काफी बेहतर है। पिछले साल 31 दिसंबर तक भारत का फॉरेक्स रिजर्व 634 अरब डॉलर था, जिसके पीछे मुख्य कारण पिछले दोनों वित्त वर्षों के दौरान विश्व व्यापार में भारत का भुगतान संतुलन पॉजिटिव रहना है। यह रिजर्व 13.2 महीनों के मर्चेंडाइज आयात के लिए पर्याप्त है।
सर्वे से यह भी संकेत मिल रहा है कि वित्तीय घाटे के मोर्चे पर स्थितियां पूरी तरह नियंत्रण में हैं। सर्वे कहता है कि लगातार बेहतर राजस्व आने से अप्रैल-नवंबर 2021 के दौरान वित्तीय घाटा पूरे साल के बजटीय अनुमान का सिर्फ 46.2% पहुंचा है, जबकि अप्रैल-नवंबर 2020 के दौरान यह 135% से अधिक और अप्रैल-नवंबर 2019 के दौरान यह 114% से ज्यादा हो चुका था।
लेकिन इन तमाम सकारात्मक संकेतों के बीच सर्वे ने 2022-23 की चुनौतियों की भी झलक कहीं-कहीं दी है। सर्वे में राजस्व वसूली में हुई जबर्दस्त बढ़त के आंकड़ों का यह कहकर स्वागत किया गया है कि यदि सरकार को अर्थव्यवस्था के लिए और मदद देने की जरूरत पड़ी, तो इस लिहाज से सरकार के पास पर्याप्त फंड हैं। अप्रैल-नवंबर 2021 के दौरान सालाना आधार पर राजस्व वसूली में 67% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इसके साथ ही विदेश मुद्रा भंडार के स्थिति का जिक्र करते हुए सर्वे में कहा गया है कि 2022-23 के दौरान वैश्विक वित्त बाजारों से लिक्विडिटी खत्म होने की स्थिति में भारत अपनी स्थिति मैनेज करने में पूरी तरह सक्षम होगा।
सर्वे में ग्रोथ के जिन लक्ष्यों की घोषणा की गई है, उनके लिए कुछ मूलभूत शर्तें भी गिनाई गई हैं। इनमें महामारी से और आर्थिक अवरोध उत्पन्न न होने, मॉनसून के सामान्य रहने, दुनिया भर के बैंकों द्वारा लिक्विडिटी कम करने की योजना के योजनापूर्वक क्रियान्वित होने और कच्चे तेल के 70-75 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में बने रहने की उम्मीद शामिल हैं। जाहिर है मानसून और महामारी को छोड़ दें, तो लिक्विडिटी और कच्चा तेल (जो कि पहले ही 90 डॉलर का स्तर पार कर चुक है) वित्त मंत्री के गणित को बड़ी चुनौती दे सकते हैं।
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने शाम को एक निजी चैनल से बातचीत में कहा कि उन्हें उम्मीद है कि 2022-23 के दौरान निजी क्षेत्र की ओर से निवेश में तेजी आएगी और इससे रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। एयर इंडिया के विनिवेश से सरकार बेहद उत्साहित नजर आ रही है और इसलिए सर्वे में 2024-25 तक विनिवेश से रकम जुटाने की एक पाइपलाइन भी पेश की गई है, जिसे नेशनल मॉनेटाइजेशन पाइपलाइन कहा गया है। इसमें अगले 4 वर्षों में सरकारी परिसंपत्तियों की बिक्री से 6 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य है। इसके तहत जो 5 शीर्ष सेक्टर गिनाए गए हैं, वे हैं सड़क, रेल, बिजली, तेल एवं गैस पाइपलाइन और टेलीकॉम, जिनकी हिस्सेदारी कुल लक्षित फंड में 83% होगी।
रोजगार सृजन का जिक्र करते हुए सर्वे में मनरेगा का विशेष उल्लेख किया गया है और कहा गया है कि 2020-21 में योजना के तहत 1,11,171 करोड़ रुपये जारी किए गये, जबकि 2021-22 में इस योजना से 68,233 करोड़ रुपये की मजदूरी का भुगतान हुआ।
विदेशी मुद्रा भंडार और स्वर्ण भंडार फिर लुढ़का
राज एक्सप्रेस। देश में जितना भी विदेशी मुद्रा भंडार और स्वर्ण भंडार जमा होता है, उसके आंकड़े समय-समय पर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी किए जाते हैं। इन आंकड़ों में हमेशा ही उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है। काफी समय तक विदेशी मुद्रा भंडार (समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार Foreign Exchange Reserves) में गिरावट के बाद पिछले सप्ताह दर्ज हुई बढ़त के बाद अब एक बार फिर इसमें बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि, स्वर्ण भंडार (Gold Reserves) में इस बार बढ़त दर्ज हुई है। इस बात का खुलासा RBI द्वारा जारी किए गए ताजा आंकड़ों से होता है। बता दें, यदि विदेशी मुद्रा परिस्थितियों में बढ़त दर्ज की जाती है तो, कुल विदेशी विनिमय भंडार में भी बढ़त दर्ज होती है।
RBI के ताजा आंकड़े :
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 19 अगस्त 2022 को खत्म हुए सप्ताह में 6.687 अरब डॉलर घटकर 564.053 अरब डॉलर पर आ पहुंचा है,जबकि, 12 अगस्त 2022 को खत्म हुए सप्ताह में 2.23 अरब डॉलर घटकर 570.74 अरब डॉलर पर आ पहुंचा था। वहीँ, अगर 5 अगस्त 2022 को खत्म हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार देखे तो यह 2.23 अरब डॉलर 89.7 करोड़ डॉलर घटकर 572.978 अरब डॉलर पर आ पहुंचा था। जबकि, 29 जुलाई 2022 को खत्म हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार में 2.315 अरब डॉलर की बढ़त दर्ज हुई थी और यह 573.875 अरब डॉलर पर पहुच गया था। उससे पहले विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट का दौर काफी समय तक जारी था।
गोल्ड रिजर्व की वैल्यू :
बताते चलें, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारत के गोल्ड रिजर्व की वैल्यू में भी पिछले कुछ समय से गिरावट दर्ज होने के बाद एक बार की बढ़त के बाद अब समीक्षाधीन सप्ताह में गोल्ड रिजर्व की वैल्यू 70.4 करोड़ डॉलर घटकर 39.914 अरब डॉलर पर आ गिरी हैं। हालांकि, इससे पहले भी गोल्ड रिजर्व में बढ़त दर्ज हुई थी। रिजर्व बैंक ने बताया कि, आलोच्य सप्ताह के दौरान IMF के पास मौजूद भारत के भंडार में मामूली वृद्धि हुई। बता दें, विदेशी मुद्रा संपत्तियों (FCA) में आई गिरावट के चलते विदेशी मुद्रा भंडार में भी गिरावट दर्ज होती है, लेकिन अब जब FCA में बढ़त दर्ज हुई है तो विदेशी मुद्रा भंडार भी बढ़ा है। RBI के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी मुद्रा परिस्थितियों में बढ़त दर्ज होने की वजह से कुल विदेशी विनिमय भंडार में बढ़त हुई है और विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां, कुल विदेशी मुद्रा भंडार का एक अहम भाग मानी जाती है।
आंकड़ों के अनुसार FCA :
रिजर्व बैंक (RBI) के साप्ताहिक आंकड़ों पर नजर डालें तो, विदेशीमुद्रा परिसंपत्तियां, कुल विदेशी मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा होती हैं। बता दें, विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में बढ़त होने की वजह से मुद्रा भंडार में बढ़त दर्ज की गई है। FCA को डॉलर में दर्शाया जाता है, लेकिन इसमें यूरो, पौंड और येन जैसी अन्य विदेशी मुद्रा सम्पत्ति भी शामिल होती हैं। आंकड़ों के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के पास जमा विशेष आहरण अधिकार (SDR) 14.6 करोड़ डॉलर घट कर 17.98 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। जबकि, IMF में रखे देश का मुद्रा भंडार भी 5.8 करोड डॉलर गिर कर 4.936 अरब डॉलर हो गया। समीक्षाधीन सप्ताह में विदेशी मुद्रा आस्तियां (FCA) 5.77 अरब डॉलर घटकर 501.216 अरब डॉलर रह गई है।
क्या है विदेशी मुद्रा भंडार ?
विदेशी मुद्रा भंडार देश के रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां होती हैं, जिनका उपयोग जरूरत पड़ने पर देनदारियों का भुगतान करने में किया जाता है। पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। इसका उपयोग आयात को समर्थन देने के लिए आर्थिक संकट की स्थिति में भी किया जाता है। कई लोगों को विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी का मतलब नहीं पता होगा तो, हम उन्हें बता दें, किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी अच्छी बात होती है, इसमें करंसी के तौर पर ज्यादातर डॉलर होता है, यानि डॉलर के आधार पर ही दुनियाभर में कारोबार किया जाता है। बता दें, इसमें IMF में विदेशी मुद्रा असेट्स, स्वर्ण भंडार और अन्य रिजर्व शामिल होते हैं, जिनमें से विदेशी मुद्रा असेट्स सोने के बाद सबसे बड़ा हिस्सा रखते हैं।
विदेशी मुद्रा भंडार के फायदे :
विदेशी मुद्रा भंडार से एक साल से अधिक के आयात खर्च की पूर्ति आसानी से की जा सकती है।
अच्छा विदेशी मुद्रा आरक्षित रखने वाला देश विदेशी व्यापार का अच्छा हिस्सा आकर्षित करता है।
यदि भारत के पास भुगतान के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा उपलब्ध है तो, सरकार जरूरी सैन्य सामान को तत्काल खरीदने का निर्णय ले सकती है।
विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता को कम करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार की प्रभाव पूर्ण भूमिका होती है।
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भारत का विदेशी मुद्रा भंडार रिकॉर्ड स्तर पर, 371 अरब डॉलर के पार हुआ
विदेशी मुद्रा भंडार में यह बढोतरी इस बात का संकेत है कि रिजर्व बैंक के नये गवर्नर उर्जित पटेल ने मुद्रा भंडार को बढाने की पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की नीति को कायम रखा है।
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है।
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अब तक के सबसे बड़े स्तर पर पहुंच गया है। नौ सितंबर को समाप्त सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 3.513 अरब डॉलर बढ़कर 371.279 अरब डॉलर हो गया जो इसका अब तक का उच्च स्तर है। भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार पूर्व सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 98.95 करोड़ डॉलर बढ़कर 367.76 अरब डॉलर हो गया था। विदेशी मुद्रा भंडार में यह बढोतरी इस बात का संकेत है कि रिजर्व बैंक के नये गवर्नर उर्जित पटेल ने मुद्रा भंडार को बढाने की पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की नीति को कायम रखा है।
केंद्रीय बैंक के अनुसार विदेशी मुद्रा आस्तियां नौ सितंबर को समाप्त सप्ताह में 3.509 अरब डॉलर बढ़कर 345.747 अरब डॉलर हो गया। आलोच्य सप्ताह में स्वर्ण भंडार 21.64 अरब डॉलर पर अपरिवर्तित रहा। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में देश का विशेष निकासी अधिकार भी 53 लाख डॉलर बढ़कर 1.493 अरब डॉलर हो गया है, वहीं कोष में भारत की जमा स्थिति भी 13 लाख डॉलर बढ़कर 2.395 अरब डॉलर हो गई है। आपको बता दें कि मौजूदा विदेशी मुद्रा भंडार 13 महीने के निर्यात को कवर करने के लिए सक्षम है।
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Rupee: डॉलर के मुकाबले लगातार कमज़ोर हो रहा है रुपया, आपके लिए क्या समझना है जरूरी?
Rupee Dollar: $1 की कीमत ₹80 के बराबर हो चुकी है. यह भारतीय इतिहास का सबसे सबसे न्यूनतम स्तर है. पिछली सरकार (यूपीए 2004- 2014) की तुलना में देखें तो डॉलर के मुकाबले रुपए में तकरीबन ₹20 की गिरावट आई है. 2014 की शुरुआत में एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा का मूल्य ₹61.8 हुआ करता था.
कमज़ोर होते रुपए के आर्थिक नुकसान क्या हैं?
भारतीय अर्थव्यवस्था एक आयात आधारित अर्थव्यवस्था है. हमेशा से ही निर्यात के मुकाबले आयात का हिस्सा ज्यादा रहा है. इसलिए गिरते रुपए का पहला नुकसान तो यह होगा कि भारत के इंपोर्ट बिल पर पहले की तुलना में अत्यधिक भार बढ़ेगा, जिसके परिणामस्वरूप विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आयेगी. पिछले 8 वर्षों में भारत के लिए अप्रत्याशित विदेशी मुद्रा भंडार एक बड़ी कामयाबी रही है. लेकिन पहले ही निवेशकों के जरिए भारत से पैसे बाहर निकालने की वजह से विदेशी मुद्रा भंडार पर नकरात्मक असर पड़ रहा था और अब कमज़ोर होते रुपए के रुप में दोहरी मार पड़ेगी.
विदेशी मुद्रा भंडार घटेगा
पिछले वर्ष 3 सितंबर 2021 को पहली बार विदेशी मुद्रा भंडार 642.5 अरब डॉलर के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया था. लेकिन वर्तमान समय में भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों से पता चलता है कि 1 जुलाई को विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 588.314 अरब डॉलर रह गया था. डॉलर के मुकाबले रूपये में आ रही तेज गिरावट की वजह से देश का व्यापार घाटा भी बढ़ रहा है. बीते जून में देश का व्यापार घाटा 26.18 अरब डॉलर रहा था, जबकि जून 2021 में यह महज 9.60 अरब डॉलर ही था.
महंगाई की मार
कमजोर होते रुपए की एक मार महंगाई के रुप में भी दिखाई पड़ती है. भारत के कुल विदेश व्यापार को देखें तो पता चलता है कि हम सबसे अधिक आयात पेट्रोलियम उत्पादों का करते हैं. इसलिए सबसे ज्यादा असर भी इसी पर दिखाई पड़ने वाला है. रुपए की कमज़ोरी की वजह से महंगे आयात भुगतान की स्थिति में कंपनियां पहले से महंगे डीजल और पेट्रोल के दामों में एक बार फ़िर बढ़ोत्तरी करेगी. जिसका असर सीधे तौर पर आम जनता पर दिखाई पड़ेगा. इसके साथ ही भारत खाद्य तेल और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का भी आयात बड़े स्तर पर करता है. इसलिए यहां भी दामों में उछाल देखी जाएगी. ऐसी स्तिथि में पहले से महंगाई की मर झेल रही भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए और भी बुरे दिन आ जायेंगे.
रुपए में गिरावट से क्या निर्यात में फायदा मिलेगा?
एक आर्थिक आकलन यह जरूर कहता है कि निर्यात बढ़ाने के लिए मुद्रा के मूल्य में गिरावट फायदेमंद हो सकती है, लेकिन भारत के दृष्टिकोण से देखें तो यह आकलन बहुत सटीक नज़र नहीं आता है. उदाहरण के लिए जून महीने में भले ही देश का एक्सपोर्ट 23.5% तक बढ़ा हो लेकिन इसके मुकाबले में आयात दोगुने दर से भी अधिक का रहा है. जून 2022 में देश का आयात सालाना आधार पर 57.55% बढ़ा है. अब ऐसी स्थिति में निष्कर्ष यही निकलता है कि रुपए में गिरावट के बावजूद भी भारत का व्यापार घाटा (India's Trade Deficit) बढ़ा है.
रुपए की गिरावट के क्या कारण हैं?
इस प्रश्न का उत्तर जानने से पहले हमें यह समझना होगी कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में सिर्फ रुपया ही एक समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार मात्र करेंसी नहीं है जो डॉलर के मुकाबले कमजोर हुई है. बल्कि दुनिया के संपन्न आर्थिक देशों की करेंसी भी कमज़ोर हुई है. इन सभी के पीछे के कारण भी लगभग एक से ही दिखाई पड़ते हैं. सबसे पहला कारण तो यूक्रेन-रूस के बीच जारी युद्ध को माना जा सकता है. इन दो देशों की लड़ाई ने वैश्वीक अस्थिरता पैदा की है, जिसकी वज़ह से आर्थिक नुकसान देखने को मिल रहे हैं. कोविड-19 की वजह से जारी आर्थिक सुस्ती भी इसका एक मुख्य कारण है. लेकिन भारतीय रुपए में गिरावट का एक अतिरिक्त कारण निवेशकों का भारत से मोहभंग होना भी है.
कुछ दिनों में संभलेगी स्थिति
भारत के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार प्रो० के वी सुब्रह्मण्यम की मानें तो रुपए में आई गिरावट अल्पकालिक है. उनके अनुसार जब वैश्विक अस्थिरता बढ़ती है तो 'फ्लाइट टू सेफ्टी' जैसी आर्थिक घटना की वजह से करेंसी में गिरावट आती है. भारतीय रुपए के लिए भी यही कारण दिखाई पड़ता है. बकौल सुब्रह्मण्यम भारतीय रुपए में आई गिरावट बहुत से देशों के मुकाबले अभी कम है. यूक्रेन और रूस के बीच जंग की शुरुआत से आकलन करें तो यूरो करेंसी डॉलर के मुकाबले 11.2% कमज़ोर हुई है तो वहीं जापानी येन 18.8% कमज़ोर हुआ है. जबकि इसकी तुलना में भारतीय करेंसी की गिरावट 5.3% ही है. इसलिए आने वाले समय में रुपया एक बार फिर बेहतर स्थिति में आ जायेगा.
डॉलर की मजबूती की वजह
केंद्र सरकार भी स्तिथियों को भांपते हुए आयात भुगतान के अन्य माध्यमों पर काम कर रही है. चूंकि भारत विदेशी मुद्रा के रुप में डॉलर का भुगतान अधिकांश आयात के लिए करता है, इसलिए भारत के ऊपर डॉलर मुद्रा का एक विशेष दबाव हमेशा से बना रहता है. हाल की परिस्थितियों में भारत ने बहुत से देशों के साथ भारतीय रुपए में ही व्यापार करने की संधि की है, जिसमें प्रमुख रुप से रूस और ईरान जैसे देश शामिल हैं. इन देशों से एक फायदा यह है कि पेट्रोलियम उत्पादों के आयात में सुविधा मिल जाएगी. वैश्विक अर्थव्यवस्था का समीकरण भी अब यही कहता है कि दुनिया को डॉलर के अलावा अन्य करेंसी को भी व्यापार के लिए अधिक से अधिक इस्तेमाल करने की जरूरत है. डॉलर के एकाधिकार को चुनौती देना ही विश्व व्यापार में अन्य देशों को स्थापित करेगा.
(लेखक बीएचयू के फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल के संस्थापक एवं अध्यक्ष हैं. यहां व्यक्त विचार निजी हैं.)
विदेशी मुद्रा भंडार के मोर्चे पर मिली अच्छी खबर, एक साल में सबसे तेज गति से बढ़ा
नई दिल्ली: विदेशी मुद्रा भंडार के मोर्चे पर अच्छी खबर मिली है। बीते 11 नवंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान देश के विदेशी मुद्रा भंडार में एक साल से ज्यादा की सबसे तेज वृद्धि दर्ज की गई है। इसके साथ ही अपना विदेशी मुद्रा भंडार 544 अरब डॉलर के पार चला गया।
भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ से शुक्रवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, 11 नवंबर 2022 को समाप्त सप्ताह के दौरान देश के विदेशी मुद्रा भंडार में 14.73 अरब डॅालर की वृद्धि रही है। इसके साथ ही अब देश का विदेशी मुद्रा भंडार 544.72 अरब डॅालर पर पहुंच गया है। विदेशी मुद्रा भंडार में अगस्त 2021 के बाद यह सबसे ज्यादा वृद्धि रही है। बीते चार नवंबर को समाप्त सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 529.99 अरब डॅालर था। 2022 की शुरुआत में देश का विदेशी मुद्रा भंडार करीब 630 अरब डॅालर था। तब से रुपये में गिरावट का माहौल है।
इस साल की शुरूआत में अपना विदेशी मुद्रा भंडार संतोषजनक स्तर पर था। लेकिन इसी साल रुपये के मूल्य में गिरावट भी देखने को मिली। इसी गिरावट को रोकने के लिए रिजर्व बैंक को डॉलर खुले बाजार में बेचना पड़ रहा है। इसका असर दिखा और बीते सितंबर के मध्य के बाद रुपया पहली बार डॅालर के मुकाबले 80 के स्तर के करीब पहुंचा।
रिजर्व बैंक के अनुसार, आलोच्य सप्ताह के दौरान विदेशी मुद्रा आस्तियों (FCA) में 11.8 अरब डॅालर की वृद्धि हुई है। अब यह 482.53 अरब डॅालर पर पहुंच गई हैं। विदेशी मुद्रा भंडार में एफसीए की सबसे बड़ी हिस्सेदारी होती है।
आरबीआई के मुताबिक बीते 11 नवंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान देश के स्वर्ण भंडार में भी बढ़ोतरी हुई। इस सप्ताह यह 2.64 अरब डॅालर बढ़कर 39.70 अरब डॅालर पर पहुंच गया। दरअसल, विदेशी मुद्रा भंडार किसी भी देश के केंद्रीय बैंक में रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां होती हैं, ताकि आवश्यकता पड़ने पर वह अपनी देनदारियों का भुगतान कर सकें। विदेशी मुद्रा भंडार को एक या एक से अधिक मुद्राओं में रखा जाता है। अधिकांशत: डॉलर और बहुत बा यूरो में विदेशी मुद्रा भंडार रखा जाता है।
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