एक दलाल चुनना

एक सीमा आदेश क्या है

एक सीमा आदेश क्या है
यूपी में धार्मिक स्थलों से उतारे गए 54 हजार अवैध लाउडस्पीकर, 60 हजार से ज्यादा की आवाज पर लगी लगाम
इसी तरह वह जगह जहां आबादी रहती है, वहां साउंड की सीमा सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक 55 डेसिबल तो रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक 45 डेसिबल तक ही होना चाह‍िए। व्यावसायिक क्षेत्र में ज्‍यादा से ज्‍यादा 65 से 75 डेसिबल तक साउंड हो सकता है। अगर इस कानून का पालन न किया जाये तो कानून एक सीमा आदेश क्या है में पांच साल तक की जेल या एक लाख रुपये तक के जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है। देश के अलग-अलग राज्यों ने क्षेत्रों के अनुसार साउंड की सीम तय कर रखी है। लेकिन कहीं भी ये सीमा 70 डेसिबल से अधिक नहीं है।

सरकार ने समय-सीमा तय कर रखी है, पर महीनों तक जमीन का सीमांकन नहीं होता

जिले में जमीन के सीमांकन, नामांतरण और बंटवारा जैसे काम समय पर नहीं हो पा रहे हैं जिससे लोगों को महीनों चक्कर लगाने पड़ते हैं। दूसरे विभागों की तरह राजस्व विभाग में भी सिटीजन चार्टर बना है यानि किस काम के लिए कितना वक्त लगेगा यह तय है लेकिन तय समय पर काम नहीं हो रहे हैं। आरआई, पटवारी, तहसीलदार व एसडीएम समय पर काम नहीं कर रहे हैं। जमीन संबंधी कार्य के लिए जिम्मेदार राजस्व विभाग में 4221 मामले महीनों से लंबित हैं। ज्यादातर मामले नामांतरण और सीमांकन के मामले हैं।

सरकार आम लोगों के कामों निबटाने शिविर लगवा रही है, पखवाड़े मनाए जाते हैं लेकिन दफ्तर में अफसर-कर्मचारी काम को समय पर पूरा करने में दिलचस्पी नहीं लेते हैं। तहसील कार्यालय में शहर के अलावा दूर दराज के गांवों से लोग सीमांकन, नामांतरण, नकल, प्रमाण पत्र सहित दूसरे कामों के लिए बड़ी संख्या में लोग आते हैं। सरकार की ओर से हर काम के लिए समय निर्धारित कर रखी है। इसके बाद भी लोगों का काम समय पर नहीं होता, महीनों से सीमांकन, नामांतरण और बंटवारे के मामले लटके हैं।

तहसीलदार आदेश करते रहते हैं पर कर्मचारी काम ही नहीं करते

मंगलवार को जनदर्शन में ग्राम सरवनी नौरंगपुर के साधराम पटेल ने शिकायत दी कि, साल भर पहले आधा हेक्टेयर जमीन का सीमांकन किया गया था लेकिन आरआई कुजूर ने यहां गलत रिपोर्ट पेश की थी। जिसके बाद उन्होंने कलेक्टर कोर्ट में आपत्ति कर दोबारा से सीमांकन करने का आवेदन दिया था लेकिन तहसील में कोई सुनवाई नहीं होने के बाद ग्रामीण ने कलेक्टर जनदर्शन में 4 बार शिकायत की लेकिन हर बार तहसील के लिए रिमार्क होने के बाद भी कुछ नहीं हो एक सीमा आदेश क्या है सका।

भास्कर न्यूज | रायगढ़

जिले में जमीन के सीमांकन, नामांतरण और बंटवारा जैसे काम समय पर नहीं हो पा रहे हैं जिससे लोगों को महीनों चक्कर लगाने पड़ते हैं। दूसरे विभागों की तरह राजस्व विभाग में भी सिटीजन चार्टर बना है यानि किस काम के लिए कितना वक्त लगेगा यह तय है लेकिन तय समय पर काम नहीं हो रहे हैं। आरआई, पटवारी, तहसीलदार व एसडीएम समय पर काम नहीं कर रहे हैं। जमीन संबंधी कार्य के लिए जिम्मेदार राजस्व विभाग में 4221 मामले महीनों से लंबित हैं। ज्यादातर मामले नामांतरण और सीमांकन के मामले हैं।

सरकार आम लोगों के कामों निबटाने शिविर लगवा रही है, पखवाड़े मनाए जाते हैं लेकिन दफ्तर में अफसर-कर्मचारी काम को समय पर पूरा करने में दिलचस्पी नहीं लेते हैं। तहसील कार्यालय में शहर के अलावा दूर दराज के गांवों से लोग सीमांकन, नामांतरण, नकल, प्रमाण पत्र सहित दूसरे कामों के लिए बड़ी संख्या में लोग आते हैं। सरकार की ओर से हर काम के लिए समय निर्धारित कर रखी है। इसके बाद भी लोगों का काम समय पर नहीं होता, महीनों से सीमांकन, नामांतरण और बंटवारे के मामले लटके हैं।

तहसील में ये होते हैं काम

तहसील में ये होते हैं काम: नामांतरण, रिकार्ड दुरुस्ती, सीमांकन, रास्ता दिलाने बाबत, भू- राजस्व वसूली, भू-बंटन आदिवासी भूमि, बिना वसीयत का खाता प्रारूप, खाता विभाजन, फलदार वृक्षों का पट्टा, कोटवार नियुक्ति, भूमि का निस्तार पृथक-पृथक, फलदार वृक्षों का पट्टा, अवैध वृक्ष कटाई, भूमि आबादी घोषित, आबादी भूमि बंटन, अवैध उत्खनन, अतिक्रमण, अवैध कब्जा, राजस्व मामले के अतिरिक्त मामले शासकीय देय राशि वसूली बकाया तकाबी वसूली शोध प्रमाण पत्र वसूली राजस्व मामले विविध प्रकरण सहित अन्य शामिल है।

घरघोड़ा तहसील क्षेत्र के ग्राम पानी खेत निवासी गुलाब राम पटेल ने भी मंगलवार को जनदर्शन में शिकायत करते हुए बताया है कि गांव में स्थित कृषि भूमि खसरा नंबर 14 रकबा 0.380 हेक्टेयर भूमि का सीमांकन के लिए तहसीलदार घरघोड़ा के पास पिछले साल आवेदन लगाया था, पिछले साल से लेकर अब तक तीन बार आवेदन कर चुका है। हर बार तहसीलदार पटवारी को आदेशित कर देते हैं, मगर सीमांकन नहीं हुआ।

सिटीजन चार्टर नियम का नहीं हो रहा है पालन

तहसील दफ्तर में अलग-अलग मामलों के निपटारे के लिए तय समय है। सीमांकन हो या नामांतरण नियमों के अनुसार अधिकारी को उन्हें सिटीजन चार्टर नियमों के अनुसार तय समय में निपटाना होता है, लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पाता। यह मामले कई महीनों तक चलते रहते हैं।

संत राम, लंकापाली पुसौर ने शिकायत दी कि उसकी जमीन केलो परियोजना नहर के लिए अधिग्रहित हुई थी, लेकिन बी-1 पांच साला नहीं होने पर मुआवजा नहीं मिल रहा था। तहसीलदार पुसौर के पास आवेदन किया गया। तहसीलदार ने हल्का नंबर 26 के पटवारी को आवेदन रिमार्क कर दिया। पटवारी ने किसान को बताया कि 2 लाख रुपए मुआवजा मिलेगा। रिकार्ड अपडेट करने के 30 हजार रुपए मांगे

Loudspeaker controversy: क‍ितना लाउड हो स्‍पीकर, क्‍या है सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश जिसका हवाला दे रहे राज ठाकरे?

राज ठाकरे ने अपने प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में कहा क‍ि राज्‍य सरकार को सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का पालन कराना चाह‍िए जिसमें आदेश दिया है क‍ि 45 से 55 डेसिबल तक की आवाज की ही छूट है। मतलब लाउडस्‍पीकर की आवाज की सीमा इतनी ही होनी चाह‍िए। क्‍या है सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश जिसकी बात राज ठाकरे कर रहे हैं और ये डेसिबल (What is Decibel) क्‍या होता है ?

हाइलाइट्स

  • क‍ितना तेज हो साउंड, सुप्रीम कोर्ट ने दिया था आदेश 2005 में आदेश
  • आदेश के अनुसार आवाज से किसी को दिक्‍कत नहीं होनी चाह‍िए
  • अलग-अलग समय और जगहों के लिए तय है आवाज की सीमा

मुंबई: लाउडस्‍पीकर (Loudspeaker) पर बवाल दिन ब दिन लाउड ही हो जाता रहा। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के अध्‍यक्ष राज ठाकरे (Raj Thackeray) ने ऐलान किया था क‍ि बुधवार 4 मई को मनसे कार्यकर्ता हर मस्‍जिद के सामने उससे दोगुनी आवाज पर हनुमान चालीसा (Hanuman chalisa) का पाठ करेंगे। कई जगह ऐसा किया भी गया। सैकड़ों मनसे कार्यकताओं को ह‍िरासत में ले लिया गया। इसके बाद राज ठाकरे ने प्रेस कॉन्‍फ्रेंस की और सरकार को चेतावनी के देते हुए कहा क‍ि जब तक मस्‍जिदों से लाउडस्‍पीकर पर अजान दी जाएगी तब तक दोगुनी आवाज में हनुमान चालीसा को पाठ करेंगे।

राज ठाकरे ने अपनी पीसी के दौरान कहा क‍ि धर्म व्‍यक्‍तिगत मुद्दा है। ये सबके घर में रहना चाह‍िए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश में 45 से 55 डेसिबल (Decibel) तक की आवाज की ही छूट है। यानी हम अपने घर में जो मिक्‍सर चलाते हैं, बस उतनी आवाज की ही छूट है। इस आदेश पर मुंबई पुलिस ने क्‍या किया? आख‍िर सुप्रीम कोर्ट उस आदेश में एक सीमा आदेश क्या है क्‍या लिखा है जिसका हवाला राज ठाकरे बार-बार दे रहे?

पहले आसान भाषा में डेसिबल को समझ लेते हैं
ध्वनि की मात्रा को मापने की यूनिट को डेसिबल (dB) कहते हैं। ज्‍यादा आवाज मतलब ज्‍यादा डेसिबल। कई रिपोर्ट में दावा किया जाता है क‍ि अच्छी नींद के लिए आसपास रहने वाला शोर 35 डेसिबल से ज्यादा ना हो और दिन के समय 45 डेसिबल तक ही हो। इससे ज्‍यादा होने पर स्‍वास्‍थ्‍य पर असर पड़ता है।

decible scale

मोटर कार, बस, मोटर साइकिल, स्कूटर, ट्रक आद‍ि का साउंड लेवल लगभग 90 डेसिबल त‍क होता है। इसी तरह सायरन की साउंड लेवल 150 डेसिबल तक होता है। जब हम किसी के कान में बात करते हैं तब आवाज का लेवल लगभग 20 डेसिबल होता है। मंदिर और मस्‍जिद में लगे लाउडस्पीकर की आवाज का स्‍तर लगभग 100 से 120 डेसिबल तक होता है। पटाखे लगभग 100 से 110 डेसिबल आवाज पैदा करते हैं। फ्रिज से आने वाली आवाज 40 डेसिबल होती है। डॉक्‍टर कहते हैं क‍ि 85 डेसिबल से ज्‍यादा आवाज आपको बहरा बना सकता है।

supreme court noise pollution

सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कॉपी जिसमें कहा गया क‍ि आवाज से किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए।

कितना लाउड हो स्‍पीकर, क्‍या है सुप्रीम कोर्ट का आदेश?
लाउडस्‍पीकर की आवाज को लेकर सुप्रीम कोर्ट के दो आदेश हैं। पहला आदेश 18 जुलाई 2005 का है तो दूसरा 28 अक्‍टूबर 2005 का। ध्वनि प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट का सबसे अहम फैसला 18 जुलाई, 2005 का है जिसमें कोर्ट ने कहा था कि हर व्यक्ति को शांति से रहने का अधिकार है और यह अधिकार जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा है।

लाउडस्पीकर या तेज आवाज में अपनी बात कहना अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार में आता है, लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी जीवन के अधिकार से ऊपर नहीं हो सकती। कोर्ट ने आगे कहा क‍ि किसी को इतना शोर करने का अधिकार नहीं है जो उसके घर से बाहर जाकर पड़ोसियों और अन्य लोगों के लिए परेशानी पैदा करे। कोर्ट ने कहा था कि शोर करने वाले अक्सर अनुच्छेद 19(1)ए में मिली अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार की शरण लेते हैं। लेकिन कोई भी व्यक्ति लाउडस्पीकर चालू कर इस अधिकार का दावा नहीं कर सकता।

decibels noise

सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कॉपी जिसमें साउंड सीमा का जिक्र है।

अक्टूबर 2005 वाले फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि त्योहारों के मौके पर आधी रात तक लाउडस्पीकर बजाए जा सकते हैं। लेकिन ऐसा एक साल में 15 दिन से ज्‍यादा नहीं हो सकता। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश आरसी लाहोटी और न्यायमूर्ति अशोक भान की पीठ ने एक वैधानिक नियम की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। इसी आदेश में यह भी कहा गया था क‍ि लाउडस्पीकर या ऐसी कोई आवाज करने वाली चीज रात 10.00 बजे से सुबह 6.00 बजे के बीच बंद रहेगी। फिर वाहे वह सभागार, सम्मेलन कक्ष, सामुदायिक हॉल और बैंक्वेट हॉल हो।

18 जुलाई 2005 को आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने आवाज को लेकर कुछ मानक तय किये। कोर्ट ने आदेश दिया था कि सार्वजनिक स्थल पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज उस क्षेत्र के लिए तय शोर के मानकों से 10 डेसिबल (ए) से ज्यादा नहीं होगी या फिर 75 डेसिबल (ए) से ज्यादा नहीं होगी, इनमें से जो भी कम होगा वही लागू माना जाएगा। जहां भी तय मानकों का उल्लंघन हो, वहां लाउडस्पीकर व उपकरण जब्त करने के बारे में राज्य प्रविधन करे।

कोर्ट के आदेश के अनुसार सार्वजनिक या निजी संपत्ति पर आवाज करने वाले कोई भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण की आवाज 55 डेसिबल होगी तभी उसे चलाने की अनुमति राज्‍य सरकार दे सकती है। जिस तरह के लाउडस्पीकर मंदिरों और मस्जिदों में लगे होते हैं, उनसे करीब 100 से 120 डेसिबल साउंड पैदा होता है जो सीधा-सीधा सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्‍लंघन है।
Rules Over Loudspeakers: यूपी में लगाना है लाउडस्पीकर तो क्या हैं नियम, कहां करें संपर्क, समझें पूरी प्रक्रिया
अगर कहीं निर्माण कार्य हो रहा है तो 75 डेसिबल से अधिक तक के शोर को अनुमति दी सकती है। विस्फोटक पर डेसिबल का उल्‍लेख करना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा क‍ि बॉक्‍स पर यह लिखा हो क‍ि इसके अंदर का पटाखा क‍ितना ध्‍वनि प्रदूषण करेगा।

क्या कहता है कानून
देश में ते आवाज को लेकर कानून भी है। इसे वर्ष 2000 में बनाया गया और नाम दिया गया बने ध्वनि प्रदूषण (अधिनियम और नियंत्रण)। कानून की पांचवीं धारा लाउडस्पीकर्स और सार्वजनिक स्थानों पर आवाज के स्तर को लेकर बात करता है। इसके साफ-साफ कहा गया है क‍ि किसी भी सार्वजनिक स्‍थान पर आवाज वाले आयोजन के लिए प्रशासन से लिख‍ित मंजूरी लेनी होगी। इसके अलावा रात 10 से सुबह 6 बजे के बीच लाउडस्पीक नहीं बजा सकते। निजी और सार्वजनिक जगहों पर लाउडस्पीकर के आवाज की सीमा 10 और 5 डेसिबल से अधिक नहीं होनी चाहिए।

यूपी में धार्मिक स्थलों से उतारे गए 54 हजार अवैध लाउडस्पीकर, 60 हजार से ज्यादा की आवाज पर लगी लगाम
इसी तरह वह जगह जहां आबादी रहती है, वहां साउंड की सीमा सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक 55 डेसिबल तो रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक 45 डेसिबल तक ही होना चाह‍िए। व्यावसायिक क्षेत्र में ज्‍यादा से ज्‍यादा 65 से 75 डेसिबल तक साउंड हो सकता है। अगर इस कानून का पालन न किया जाये तो कानून में पांच साल तक की जेल या एक लाख रुपये तक के जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है। देश के अलग-अलग राज्यों ने क्षेत्रों के अनुसार साउंड की सीम तय कर रखी है। लेकिन कहीं भी ये सीमा 70 डेसिबल से अधिक नहीं है।

फिर से 90 दिनों के भीतर मुकदमा दायर करने की मिलेगी सहूलियत- सुप्रीम कोर्ट ने दिए संकेत

कोरोना के घटते मामलों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह अपने 27 अप्रैल के उस आदेश को वापस ले लेगा, जिससे मामलों को दायर करने की सीमा अवधि बढ़ा दी गई थी। मामले की सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अवधि में ढील देने वाले आदेश को वापस लिया जा सकता है।

फिर से 90 दिनों के भीतर मुकदमा दायर करने की मिलेगी सहूलियत- सुप्रीम कोर्ट ने दिए संकेत

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि वह अपने 27 अप्रैल के उस आदेश को वापस ले लेगा, जिससे मामलों को दायर करने की सीमा अवधि बढ़ा दी गई थी। कोर्ट ने ये बातें कोरोना के घटते प्रभाव को देखते हुए कहा है।

दूसरी कोविड लहर की शुरुआत को ध्यान में रखते हुए 27 अप्रैल, 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव याचिकाओं सहित अन्य याचिका दायर करने की वैधानिक अवधि में ढील दी थी। सीजीआई एमवी रमना , न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ ने कहा कि एक अक्टूबर को सीमा अवधि का स्वत: विस्तार वापस ले लिया जाएगा और उसके बाद, अदालतों में मामले दर्ज करने के लिए 90 दिनों की सामान्य सीमा एक बार फिर से लागू होगी। हम आदेश पारित करेंगे, ”पीठ ने आदेश को सुरक्षित रखते हुए कहा।

पीठ ने इस दलील को “निराशावादी” करार दिया कि सीमा अवधि को साल के अंत तक बढ़ाया जाए क्योंकि देश में तीसरी कोविड लहर की आशंका है। सीजीआई ने कहा- “आप निराशावादी हैं। कृपया तीसरी लहर को आमंत्रित न करें।

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शुरुआत में, अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि कोविड की स्थिति में सुधार हुआ है और वर्तमान में देश में कोई कंटेनमेंट जोन नहीं है और इसलिए सीमा अवधि में ढील देने वाले आदेश को वापस लिया जा सकता है। उन्होंने कहा, “अगर केरल या किसी अन्य स्थान पर कोई कंटेनमेंट जोन है तो वे अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं।”

वेणुगोपाल ने सुझाव दिया कि सुप्रीम कोर्ट के 8 मार्च, 2021 के आदेश को बहाल किया जा सकता है। चुनाव आयोग की ओर से पेश सीनियर वकील विकास सिंह ने कहा कि चुनाव याचिका दायर करने के लिए 90 दिनों के बजाय 45 दिनों की सीमा अवधि दी जाए और वादियों के खिलाफ वैधानिक अवधि 1 अक्टूबर के बजाय अब से चलना शुरू हो जाए।

चुनाव आयोग ने अपनी याचिका में असम, केरल, दिल्ली, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों से संबंधित चुनाव याचिका दायर करने की समयसीमा तय करने की मांग की है। सिंह ने कहा कि ईवीएम और वीवीपैट मशीनें ऐसी ही पड़ी हैं, क्योंकि छह राज्यों में विधानसभा चुनावों के संबंध में चुनाव याचिका दायर होने पर उन्हें सबूत के रूप में संरक्षित किया जाना है।

इससे पहले, शीर्ष अदालत ने पिछले साल 23 मार्च को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी पूर्ण शक्ति का इस्तेमाल करते हुए 15 मार्च, 2020 से महामारी के कारण अदालतों से अपील के लिए अनिश्चित काल के लिए सीमा अवधि बढ़ाने के लिए कहा था।

एमएसपी पर चने की खरीद सीमा बढ़ाई, अब 40 क्विंटल तक बिकेगा चना

एमएसपी पर चने की खरीद सीमा बढ़ाई, अब 40 क्विंटल तक बिकेगा चना

जानें, अब किसान एमएसपी पर एक दिन में कितना चना बेच सकेंगे

इस समय एक सीमा आदेश क्या है देश के अधिकांश राज्यों में गेहूं, चना सहित अन्य रबी फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद का काम चल रहा है। न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी पर खरीद का काम केंद्र सरकार की विभिन्न एजेंसियों के माध्यम से किया जाता है। अलग-अलग राज्यों में उपज की खरीद वहां के तय नियमों के अनुसार पर की जाती है। केंद्र सरकार की ओर से राज्यों को प्रमुख फसलों की खरीद के लिए लक्ष्य तय किया जाता है। उसी तय किए लक्ष्य के अनुसार राज्यों द्वारा खरीद की जाती है। ये खरीद लक्ष्य से अधिक भी हो सकती है। न्यूनतम समर्थन मूल्य में खरीद के निर्धारित नियमों के अनुसार ये तय किया जाता है कि एक किसान एक दिन में कितने क्विंटल उपज बेच सकता है।

इसी एक सीमा आदेश क्या है क्रम में मध्यप्रदेश में इस समय चने की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद का काम जोर-शोर से चल रहा है। यहां एक किसान एक दिन में अधिकतम 25 क्विंटल चना ही बेच सकता था जिसे अब बढ़ा दिया गया है। इस संबंध में मध्यप्रदेश के किसान-कल्याण तथा कृषि विकास मंत्री कमल पटेल ने बताया कि पूर्व में उपार्जन केंद्रों पर चना फसल की प्रतिदिन प्रति किसान उपार्जन सीमा मात्र 25 क्विंटल थी, जिसे अब बढ़ाकर 40 क्विंटल कर दिया गया है।

क्यों बढ़ाई चना फसल बेचने की लिमिट

कृषि मंत्री ने कहा कि किसान अपनी ट्राली में 40 क्विंटल चना लेकर आता था लेकिन 25 क्विंटल की सीमा होने के कारण किसानों को 15 क्विंटल चना वापस ले जाना पड़ता था। उन्होंने बताया कि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर ने दिल्ली में हुई चर्चा में किए गए अनुरोध पर किसानों के हित में निर्णय लेते हुए सीमा को 25 क्विंटल से बढ़ाकर 40 क्विंटल करने के निर्देश दे दिए गए हैं। अब एक किसान एक दिन में 40 क्विंटल तक चना न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेच सकेगा। इससे प्रदेश केे किसानों को लाभ होगा।

किस शर्त पर किया गया उपार्जन सीमा का निर्धारण

उपार्जन सीमा का निर्धारण इस शर्त के साथ किया गया है कि चना उपार्जन हेतु किसानों की उत्पादकता एवं भूमि अभिलेखों की मैपिंग की गई हो। राज्य कृषि मंत्री पटेल ने बताया कि अब किसान प्रतिदिन उपार्जन केंद्र पर 40 क्विंटल चना लेकर आ सकते हैं। भारत सरकार द्वारा सीमा में वृद्धि करते हुए आदेश जारी कर दिए हैं। केंद्र सरकार द्वारा जारी आदेश के परिप्रेक्ष्य में राज्य शासन के कृषि विभाग ने भी प्रतिदिन, प्रति किसान चना उपार्जन सीमा में वृद्धि संबंधी आदेश जारी कर दिए गए हैं।

चना खरीद की लिमिट बढऩे से किसानों को क्या होगा फायदा

चना खरीद की लिमिट बढऩे से किसानों को बार-बार मंडी नहीं आना पड़ेगा। इससे उनके समय और खर्च की बचत होगी। वे एक बार में ही अपनी उपज मंडी लाकर बेच सकेंगे। पहले 25 क्विंटल की लिमिट होने से किसानों को दो बार मंडी आना पड़ता था। वहीं ट्रोली भी आधी खाली रहती थी। जिससे उनका मंडी आने का खर्च बढ़ जाता था और समय भी बर्बाद होता था। इस बात को ध्यान में रखते हुए राज्य कृषि मंत्री कमल पटेल ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर से लिमिट को 40 क्विंटल तक बढ़ाने का आग्रह किया था जिसे स्वीकार कर लिया गया।

क्या है चने सहित अन्य रबी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2022-23

केंद्र सरकार की ओर से हर रबी और खरीफ सीजन के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किए जाते हैं। रबी फसलों की बुआई से पहले ही रबी की विभिन्न फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किए जा चुके हैं, जिस पर ही सभी राज्यों में इन फसलों की सरकारी खरीद की जाएगी। इस वर्ष 2022-23 के लिए गेहूं, चना, सरसों तथा जौ का न्यूनतम समर्थन मूल्य इस प्रकार है-

  • चना का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5230 रुपए प्रति क्विंटल है।
  • गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 2015 रुपए प्रति क्विंटल रखा गया है।
  • सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5050 रुपए प्रति क्विंटल रहेगा।
  • जौ का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1635 रुपए प्रति क्विंटल है।

प्रदेश में चना बेचने के लिए कितने किसानों ने कराया है पंजीयन

राज्य में इस बार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर चना की खरीदी का काम 21 मार्च से शुरू हो चुका है। यहां 101 केंद्रों पर पंजीकृत किसान से चने की खरीद की जा रही है। चना की फसल बेचने के लिए राज्य के करीब सात लाख 43 हजार 487 किसानों ने पंजीयन कराया है। उपज बेचने के लिए एक लाख 34 हजार 962 किसानों को एसएमएस भेजें गए हैं। इनमें से 11 हजार 266 किसानों ने 18 हजार 285 मीट्रिक टन चना न्यूनतम समर्थन मूल्य बेच दिया है। प्रदेश में इस बार 21 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में चना की बुवाई की गई है।

इस बार एमएसपी पर कितना चना खरीदने का है लक्ष्य

इस बार मध्यप्रदेश सरकार ने आठ लाख 67 हजार मीट्रिक टन चना खरीदी का लक्ष्य रखा है। वहीं राज्य में गेहूं के लिए 129 लाख मीट्रिक टन का लक्ष्य रखा गया है। यहां 5 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा सरसों की खरीद की जाएगी। इसके अलावा दो लाख मीट्रिक टन मसूर की खरीद भी होगी। बता दें कि इस बार प्रदेश में गेहूं और चने की फसल काफी अच्छी हुई है।

मध्यप्रदेश के किन-किन जिलों में होती है चने की खेती

मध्यप्रदेश का चना उत्पादन राज्यों में दूसरा स्थान है। राज्य के होशंगाबाद, नरसिंहपुर, विदिशा, उज्जैन, मंदसौर, धार, भिंड, मुरैना, शिवपुरी तथा रीवा, नीमच, गुना, एक सीमा आदेश क्या है शाजापुर, देवास, रतलाम, झाबुआ, जबलपुर, ग्वालियर, सीहोर, छिंदवाड़ा जिले में चने की खेती की जाती है। इसकेे अलावा यहां के बुंदेल खंड क्षेत्र के टीकमगढ़, छत्तरपुर, दमोह, दतिया, पन्ना, सागर में भी चने की खेती होती है।

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कार्गो सेवाएँ

1.कार्गो की आयात/निर्यात प्रक्रिया

आयातक/निर्यातक कोचिन पोर्ट के माध्यम से विभिन्न प्रकार के कार्गो का आयात/निर्यात कर सकते हैं। कोचिन पोर्ट के माध्यम से आयात/निर्यात किए जा सकने वाले कार्गो का विवरण विदेश व्यापार प्रक्रिया 2008-09 में विदेश व्यापार महानिदेशक द्वारा प्रकाशित किया गया है। अधिक जानकारी के लिए कृपया http://dgft.delhi.nic.in and www.cbec.gov.in का अवलोकन करें।

(ए) आयात दस्तावेज़

(1) सीमा शुल्क द्वारा अनुमोदित सामान्य घोषणापत्र आयात करें।
(2) कार्गो हाउस एजेंट्स के माध्यम से दाखिल किए जाने वाले कार्गो शुल्क के साथ बिल की प्रविष्टि।
(3) प्रभार प्रमाणपत्र से परे सीमा शुल्क।
(4) कार्गो के स्वामित्व के लिए स्टीमर एजेंट डिलीवरी ऑर्डर/बिल ऑफ लेडिंग।

(बी) निर्यात दस्तावेज

(1) सीमाशुल्क द्वारा स्वीकृत शिपिंग बिल।
(2) सीमाशुल्क हाउस एजेंट के माध्यम से कार्गो शुल्क।
(3) सीमाशुल्क निर्दिष्ट शिपिंग के लिए निर्यात आदेश दें।
सभी दस्तावेज पोर्ट कम्युनिटी सिस्टम और सीमा शुल्क प्रणाली के माध्यम से ऑनलाइन जमा किए जाने हैं।

2. व्यक्तिगत सामान निकासी
कोचिन पोर्ट के पास कंटेनरों में प्राप्त निजी सामानों के हस्तन की सुविधा है। कंटेनर को क्यू6 शेड में उतारा जाएगा और क्यू6 शेड में सीमा शुल्क कार्यालय द्वारा माल की जांच और निकासी की जाएगी। ग्राहकों को कस्टम हाउस एजेंट के माध्यम से या स्वयं द्वारा सीमा शुल्क और पोर्ट के लिए आवश्यक दस्तावेज जमा करने होते हैं।
आयातक सबसे पहले कार्गो शुल्क और पोर्ट को डिलीवरी ऑर्डर के साथ बिल ऑफ लेडिंग की प्रति प्रस्तुत करेंगे। सीमा शुल्क परीक्षा के लिए पोर्ट से मूल्यांकन टिकट जारी किया जाएगा। सीमाशुल्क की मंजूरी के बाद आयातक सामान की डिलीवरी लेने के लिए सामान घोषणा में मुहर के साथ सीमा शुल्क जमा करेंगे।

3.कंटेनर फ्रेट स्टेशन(सीएफएस) सुविधाएँ एवं परिचालन
कोचिन पोर्ट में यंत्रीकृत भराई और उतराई सेवा के साथ एक पूर्ण कंटेनर फ्रेट स्टेशन है। सीएफएस में एलसीएल और एफसीएल कार्गो दोनों की भराई व उतराई की सुविधा है।हर कार्यदिवस सुबह 6 से रात 10 बजे तक सीएफएस का संचालन होता है। ऑन-व्हील स्टफिंग प्रदान की जाती है। रो-रो जेटी सीएफएस के आसपास के क्षेत्र में स्थित है। सीआईएसएफ द्वारा सुरक्षा प्रदान की जा रही है। पैलेटाइजिंग के लिए सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।

4. आईएमओ श्रेणी-I कार्गो
कोचिन पोर्ट में आईएमओ श्रेणी- I कार्गो हस्तन की प्रक्रिया देखने के लिए कृपया नीचे क्लिक करें। इस प्रक्रिया को मुख्य विस्फोटक नियंत्रक द्वारा अनुमोदित किया गया है।

5. लो-लो/रो-रो टर्मिनल
कोचिन पोर्ट ने विल्लिंगडन आईलैण्ड और आईसीटीटी वल्लारपाडम के बीच कंटेनरों के परिवहन के लिए एक लो-लो/रो-रो टर्मिनल स्थापित किया है। इस सुविधा के साथ बहुत कम लागत पर पोर्ट सीएफएस एवं आईसीटीटी से कंटेनर आसानी से ले जाया जा सकता है।

6. बंकरिंग
सभी बर्थों पर बंकर की आपूर्ति बार्ज/ट्रकों/पाइपलाइन से की जा सकती है। सभी प्रमुख तेल कंपनियां आपूर्ति करती हैं जो एजेंटों के माध्यम से व्यवस्थित होती हैं।

7. पाइप लाइन नेटवर्क
पामोलीन, सीएनएसएल (काजू नट शेल तरल) और रसायन जैसे तरल कार्गो के हस्तन के लिए एससीबी और एनसीबी में अलग पाइपलाइनें। कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों के हस्तन के लिए टैंकर बर्थ पर पाइपलाइन उपलब्ध हैं। क्वू5 पर, कार्बन ब्लैक फीड स्टॉक (सीबीएफएस) के हस्तन के लिए पाइपलाइन बिछाई गई हैं। एनसीबी में लचीले होज़ टैंकर बर्थ उपयोग के लिए उपलब्ध हैं।

8. वार्फ सूचना केन्द्र
एरणाकुलम वार्फ एवं मट्टांचेरी वार्फ के समुद्री नियंत्रण में चौबीसो घण्टे शिपिंग नियंत्रण कक्ष काम कर रहे हैं। पोत की आवाजाही और कार्गो संचालन के बारे में किसी भी जानकारी के लिए उपयोगकर्ता इन नियंत्रण कक्षों से संपर्क कर सकते हैं। संपर्क नं.इस प्रकार है

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