USD कीमत का इतिहास

Rupee Weakens: डॉलर के मुकाबले रुपये सबसे निचले स्तर पर, एक डॉलर के मुकाबले 77 पर ट्रेड कर रहा रुपया
Rupee Falls Against Dollar: रुपया सोमवार को लगभग 77 डॉलर प्रति डॉलर के निचले स्तर पर जा पहुंचा है. डॉलर के मुकाबले रुपये में ये सबसे बड़ी गिरावट है.
By: ABP Live | Updated at : 07 Mar 2022 11:09 AM (IST)
Rupee Weakens Against Dollar: रुस और यूक्रेन के बीच युद्ध ( Russia Ukraine War) की भारत को बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है. डॉलर ( Dollar) के मुकाबले रुपये ( Rupee) में गिरावट जारी है. सोमवार को डॉलर के मुकाबले रुपया अपने निचले स्तर 77 रुपये के स्तर तक जा गिरा है. अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगियों द्वारा रूसी तेल पर प्रतिबंध लगाने की खबरों पर कच्चे तेल के ताजा उछाल के बाद रुपया सोमवार को लगभग 77 डॉलर प्रति डॉलर के निचले स्तर पर जा पहुंचा है. यह लगातार चौथा सत्र था जब मुद्रा कमजोर हुई है. घरेलू करेंसी मार्केट में रुपये 76.96 प्रति डॉलर पर कारोबार कर रही है.
क्या होगा महंगे डॉलर का असर
1. भारत दूनिया का दूसरा सबसे ज्यादा ईंधन खपत करने वाला देश है. जो 80 फीसदी आयात के जरिए पूरा किया जाता है. सरकारी तेल कंपनियां डॉलर में भुगतान कर कच्चा तेल खरीदती हैं. अगर डॉलर महंगा हुआ और रुपया सस्ता हुआ तो उन्हें डॉलर खरीदने के लिए ज्यादा रुपये का भुगतान करना होगा. इससे आयात महंगा होगा और आम उपभोक्ताओं को पेट्रोल डीजल के लिए ज्यादा कीमत ना चुकानी पड़ेगी.
2. भारत से लाखों बच्चे विदेशों में पढ़ाई कर रहे हैं जिनके अभिभावक फीस से लेकर रहने का खर्च अदा कर रहे हैं. उनकी पढ़ाई महंगी हो जाएगी. क्योंकि अभिभावकों को ज्यादा रुपये देकर डॉलर खरीदना होगा. जिससे महंगाई का उन्हें झटका लगेगा.
3. खाने का तेल पहले से USD कीमत का इतिहास ही महंगा है जो आयात तो पूरा किया जा रहा है. डॉलर के महंगे होने पर खाने का तेल आयात करना और भी महंगा होगा.
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4. विदेशों में घूमना होगा महंगा. जो लोग विदेश जाना चाहते हैं उन्हें डॉलर खरीदने के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने से पड़ सकते हैं जिससे उनपर महंगाई का असर पड़ेगा.
आरबीआई ने बेचा डॉलर
वैश्विक तनाव और कच्चे तेल के दामों में भारी उछाल के चलते करेंसी पर दबाव है. रुपये को कमजोर होने से बचाने के लिए आरबीआई ने डॉलर बेचने को काम किया है. रुपये को गिरने से बचाने के लिए आरबीआई ने पिछले हफ्ते बड़ा फैसला उठाते हुए 2 बिलियन डॉलर अपने विदेशी मुद्रा कोष से बेचा है. जिससे इंपोर्ट करने वाली कंपनियों को महंगा डॉलर ना खरीदना पड़े. लेकिन कच्चे तेल के दाम 14 साल के उच्चतम स्तर 140 डॉलर प्रति बैरल के करीब जा पहुंचा है. महंगे कच्चे तेल के चलते देश में महंगाई बढ़ने का अंदेशा है. आपको बता दें जब आरबीआई डॉलर बेचने का काम करती है तो वो रुपया खरीदती है जिससे बाजार में उपलब्ध ज्यादा नगदी को कम किया जा सके. इससे बढ़ती कीमतों पर नकेल कसी जा सकती है.
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Published at : 07 Mar 2022 10:33 AM (IST) Tags: Indian Rupee US dollar crude oil price hike Russia Ukraine War RUPEE HITS RECORD LOW AGAINST US DOLLAR हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News USD कीमत का इतिहास पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Business News in Hindi
Rupee vs Dollar History: आजादी के दिन क्या 1 रुपये के बराबर था 1 डॉलर ? अब तक आई है इतनी गिरावट
तब 1 डॉलर 25 रुपये का था और उदारीकरण के लागू होते ही इसमें तेज गिरावट दर्ज की गई, क्योंकि रुपये की वैल्यू बाजार तय करने लगा और 1 डॉलर 35 रुपये तक का हो गया.
शरद अग्रवाल
- नई दिल्ली,
- 16 जून 2022,
- (अपडेटेड 16 जून 2022, 4:15 PM IST)
- नोटबंदी से कमजोर हुआ भारतीय रुपया
- आर्थिक उदारीकरण ने बदली रुपये की चाल
आम लोगों का मानना है कि जब भारत आजाद हुआ, यानी 15 अगस्त 1947 को, तब रुपये और डॉलर की कीमत एक बराबर थी. पर हकीकत में क्या ऐसा था, अगर नहीं तो तब कितने कितनी थी रुपये की वैल्यू और अब इतने साल में कैसे बदला रुपये का हाल.
तब पाउंड से होती थी तुलना
रुपये और डॉलर की वैल्यू को लेकर जानने वाली सबसे जरूरी बात ये है कि आजादी से पहले भारत, एक ब्रिटिश उपनिवेश था. यानी तब इसकी वैल्यू का आकलन ब्रिटेन की मुद्रा पाउंड के आधार पर होता था. माना जाता है तब 1 पाउंड की वैल्यू 13.37 रुपये के बराबर थी. इस तरह अगर पाउंड और डॉलर के तब के एक्सचेंज रेट को देखा जाए तो 15 अगस्त 1947 के दिन 1 डॉलर की वैल्यू 4.16 रुपये होनी चाहिए.
ऐसे बना डॉलर और रुपये का रिश्ता
समय के साथ-साथ रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर होता गया. इसकी कई वजह रही, कभी भारत सरकार ने खुद रुपये की वैल्यू को कम किया तो कभी वैश्विक परिस्थितियों के चलते ऐसा हुआ. दुनिया की सबसे पुरानी ट्रैवल कंपनियों में से एक और मनी एक्सचेंज सेक्टर में काम करने वाली बड़ी कंपनी Thomas Cook India के मुताबिक डॉलर और अन्य मुद्राओं के बीच तालमेल का इतिहास (Dollar vs Rupee History) 1944 से शुरू होता है. इसी साल Britton Woods Agreement पास हुआ था.
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इस समझौते ने दुनिया के सभी देशों की मुद्राओं की विनिमय दर का एक सिस्टम स्थापित किया. इस तरह रुपया और डॉलर कभी बराबर रहे ही नहीं, क्योंकि भारत को आजादी इस समझौते के बाद मिली. इसलिए उसे अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को अपनाना पड़ा और इसी के साथ रुपये की वैल्यू भी बदल गई. हां, अगर आप मॉर्डन कैलकुलेशन के हिसाब से जाएं तो 1913 के आसपास 1 डॉलर की वैल्यू करीब-करीब 90 पैसे की बैठती है.
1966 में 1 डॉलर 7.5 रुपये का
आजादी के बाद रुपये की वैल्यू में बड़ा बदलाव 1957 में आया, तब 1 रुपये को 100 पैसे की वैल्यू में बांट दिया गया. इससे हर भारतीय तक मुद्रा की पहुंच को सुनिश्चित किया गया. इसके बाद 1966 में जब देश को भीषण आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा, तब फिर से रुपये की वैल्यू में बदलाव आया. तब भारत निर्यात की तुलना में आयात ज्यादा करता था. इसलिए ट्रेड बैलेंस को बनाए रखने के लिए सरकार ने डॉलर के मुकाबले रुपये की वैल्यू को कम (Devaluation) किया और 1 डॉलर 7.5 रुपये का हो गया.
आर्थिक उदारीकरण ने बदली रुपये की चाल
साल 1991 को भारत में आर्थिक सुधार या उदारीकरण वाला साल समझा जाता है. इस दौरान भारत एक आर्थिक संकट से गुजर रहा था और सरकार को आयात के लिए भुगतान करने में भी दिक्कत आ रही थी. तब दुनिया में तेज गति से आगे बढ़ने के लिए उदारीकरण का रास्ता चुना गया. उस दौरान 1 डॉलर 25 रुपये का था और उदारीकरण के लागू होते ही इसमें तेज गिरावट दर्ज की गई, क्योंकि रुपये की वैल्यू बाजार तय करने लगा और 1 डॉलर 35 रुपये तक का हो गया.
नोटबंदी ने किया रुपया कमजोर
साल 2013 में रुपये की वैल्यू में अचानक से बड़ी गिरावट दर्ज की गई. इसकी वजह आयात के लिए डॉलर की डिमांड का बढ़ना और FII का भारतीय बाजारों से पैसा खींचना रहा. तब रुपया कुछ ही दिन में 55.48 रुपये प्रति डॉलर से घटकर 57.07 रुपये पर आ गया. फिर आई नोटबंदी (Demonetisation) की रात. नवंबर 2018 में जब सरकार ने 1000 रुपये और 500 रुपये पुराने नोट बंद करने का निर्णय किया, तब रुपये की वैल्यू में बड़ा बदलाव हुआ. 1 डॉलर का मूल्य 67 से 71 रुपये के बीच तक पहुंच गया.
आजादी से अब तक 1775% गिरा रुपया
डॉलर के मुकाबले रुपये का ये टूटना अभी भी जारी है. मौजूदा समय में 1 डॉलर की वैल्यू 78 रुपये से ज्यादा है. इस तरह देखें, तो आजादी से अब तक रुपये की वैल्यू 1775% प्रतिशत कम हुई है.
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INR USD Exchange Rate Today: भारत का 100 रुपया अमेरिका में 1.29 डॉलर, 13 मई का एक्सचेंज रेट
भारत के 100 रुपये के बदले में अमेरिका में 1.29 डॉलर मिलेंगे। 13 मई के एक्सचेंज रेट के मुताबिक भारत का एक रुपया अमेरिका के 0.013 डॉलर होगा। अमेरिका का एक डॉलर भारत USD कीमत का इतिहास के 77.56 रुपये होगा।
यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका में काफी संख्या में भारतीय लोग ऐसे भी रहते हैं जिन्हें भारत से रुपया आता है जो अमेरिका में डॉलर के रूप में उन्हें मिलता है। छात्र और काफी पहले से यूएस में सेटल हो चुके भी वहां ऐसे काफी लोग हैं जिनका किसी न किसी जरिए ये पैसा भारत से अमेरिका जाता है। वहीं वैश्विक मार्केट में हर रोज डॉलर और रुपयों का भाव ऊपर-नीचे होता रहता है। ऐसे में हम आपको प्रतिदिन एक्सचेंज रेट में दोनों करेंसी का भाव बताते हैं जिससे भारत से आया पैसा यूएस डॉलर में कनवर्ट कराने में आप परेशान ना हो।
आज यानी शुक्रवार 13 मई को भारत के 100 रुपये अमेरिका में 1.29 डॉलर बराबर हैं। यानी एक भारतीय रुपया, यूएसए के 0.013 डॉलर बराबर है। ऐसे में भारतीय रुपये को कोई डॉलर में बदलना चाहते हैं तो 10 हजार रुपयों के बदले अमेरिका में आपको 129.01 डॉलर मिलेंगे। शुक्रवार को भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 77.56 रुपये पर बंद हुआ। बता दें कि पिछले कुछ दिनों से रुपया और डॉलर के भाव में ज्यादा बदलाव नहीं आया है।
गुरुवार को रुपया अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले 25 पैसे गिरकर 77.50 के अपने जीवनकाल के निचले स्तर पर बंद हुआ था। विदेशी मुद्रा व्यापारियों ने कहा कि भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सीमाबद्ध व्यापार देख सकता है क्योंकि घरेलू मुद्रास्फीति बढ़ने के कारण अगले महीने भारतीय केंद्रीय बैंक द्वारा USD कीमत का इतिहास दरों में बढ़ोतरी से व्यापक डॉलर की ताकत नुकसान की भरपाई कर सकती है।
मालूम हो कि मुद्रा विनिमय दर यानी एक्सचेंज रेट देशों के आर्थिक प्रदर्शन, मुद्रास्फीति, ब्याज दर के अंतर और पूंजी के फ्लो पर निर्भर करती है। पिछले बुधवार को बैंकिंग, रियल एस्टेट और ऑटो बिजनेस में नुकसान होने की वजह से शेयरों में गिरावट आई और इसी वजह से भारत के शेयर निचले स्तर पर बंद हुए थे। इसके बाद बुधवार और गुरुवार को भी थोड़ा बहुत आगे पीछे हुआ।
एक डॉलर की कीमत 80 रुपये पर पहुंची, जानें- क्यों कमजोर होता जा रहा है रुपया, अभी और कितनी गिरावट बाकी?
Rupee Vs Dollar: एक डॉलर की कीमत 80 रुपये पर पहुंच गई है. संसद में सवालों के जवाब में केंद्र सरकार की तरफ से जवाब दिया गया है कि 2014 के बाद से डॉलर के मुकाबले रुपये में अभी तक 25 फीसदी की गिरावट दर्ज की गयी है.
Updated: July 19, 2022 12:44 PM IST
Rupee Vs Dollar: मंगलवार को शुरुआती कारोबार में भारतीय रुपया मनोवैज्ञानिक रूप से महत्वपूर्ण विनिमय दर के स्तर डॉलर के मुकाबले 80 रुपये के स्तर से नीचे चला गया. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, रुपया घटकर 80.06 प्रति डॉलर पर आ गया.
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रुपया विनिमय दर क्या है?
अमेरिकी डॉलर की तुलना में रुपये की विनिमय दर अनिवार्य रूप से एक अमेरिकी डॉलर को खरीदने के लिए आवश्यक रुपये की संख्या है. यह न केवल अमेरिकी सामान खरीदने के लिए बल्कि अन्य वस्तुओं और सेवाओं (जैसे कच्चा तेल) की पूरी मेजबानी के लिए एक महत्वपूर्ण मीट्रिक है, जिसके लिए भारतीय नागरिकों और कंपनियों को डॉलर की USD कीमत का इतिहास आवश्यकता होती है.
जब रुपये का अवमूल्यन होता है, तो भारत के बाहर से कुछ खरीदना (आयात करना) महंगा हो जाता है. इसी तर्क से, यदि कोई शेष विश्व (विशेषकर अमेरिका) को माल और सेवाओं को बेचने (निर्यात) करने की कोशिश कर रहा है, तो गिरता हुआ रुपया भारत के उत्पादों को और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाता है, क्योंकि रुपये का अवमूल्य विदेशियों के लिए भारतीय उत्पादों को खरीदना सस्ता बनाता है.
डॉलर के मुकाबले रुपया क्यों कमजोर हो रहा है?
सीधे शब्दों में कहें तो डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा है, क्योंकि बाजार में रुपये की तुलना में डॉलर की मांग ज्यादा है. रुपये की तुलना में डॉलर की बढ़ी हुई मांग, दो कारकों के कारण बढ़ रही है.
पहला यह कि भारतीय जितना निर्यात करते हैं, उससे अधिक वस्तुओं और सेवाओं का आयात करते हैं. इसे ही करेंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) कहा जाता है. जब किसी देश के पास यह होता है, तो इसका तात्पर्य है कि जो आ रहा है उससे अधिक विदेशी मुद्रा (विशेषकर डॉलर) भारत से बाहर निकल रही है.
2022 की शुरुआत के बाद से, जैसा कि यूक्रेन में युद्ध के मद्देनजर कच्चे तेल और अन्य कमोडिटीज की कीमतों में बढ़ोतरी होने लगी है, जिसकी वजह से भारत का सीएडी तेजी से बढ़ा है. इसने रुपये में अवमूल्यन यानी डॉलर के मुकाबले मूल्य कम करने का दबाव डाला है. देश के बाहर से सामान आयात करने के लिए भारतीय ज्यादा डॉलर की मांग कर रहे हैं.
दूसरा, भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश में गिरावट दर्ज की गयी है. ऐतिहासिक रूप से, भारत के साथ-साथ अधिकांश विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में CAD की प्रवृत्ति होती है. लेकिन भारत के मामले में, यह घाटा देश में निवेश करने के लिए जल्दबाजी करने वाले विदेशी निवेशकों द्वारा पूरा नहीं किया गया था; इसे कैपिटल अकाउंट सरप्लस भी कहा जाता है. इस अधिशेष ने अरबों डॉलर लाए और यह सुनिश्चित किया कि रुपये (डॉलर के सापेक्ष) की मांग मजबूत बनी रहे.
लेकिन 2022 की शुरुआत के बाद से, अधिक से अधिक विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों से पैसा निकाल रहे हैं. ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि भारत की तुलना में अमेरिका में ब्याज दरें बहुत तेजी से बढ़ रही हैं. अमेरिका में ऐतिहासिक रूप से उच्च मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए अमेरिकी केंद्रीय बैंक आक्रामक रूप से ब्याज दरों में वृद्धि कर रहा है. निवेश में इस गिरावट ने भारतीय शेयर बाजारों में निवेश करने के इच्छुक निवेशकों के बीच भारतीय रुपये की मांग में तेजी से कमी की है.
इन दोनों प्रवृत्तियों का परिणाम यह है कि डॉलर के सापेक्ष रुपये की मांग में तेजी से गिरावट दर्ज की गयी है. यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा है.
क्या डॉलर के मुकाबले केवल रुपये में ही आई है गिरावट?
यूरो और जापानी येन समेत सभी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर मजबूत हो रहा है. दरअसल, यूरो जैसी कई मुद्राओं के मुकाबले USD कीमत का इतिहास रुपये में तेजी आयी है.
क्या रुपया सुरक्षित क्षेत्र में है?
रुपये की विनिमय दर को “प्रबंधित” करने में आरबीआई की भूमिका को समझना महत्वपूर्ण है. यदि विनिमय दर पूरी तरह से बाजार द्वारा निर्धारित की जाती है, तो इसमें तेजी से उतार-चढ़ाव होता है – जब रुपया मजबूत होता है और रुपये का अवमूल्यन होता है.
लेकिन आरबीआई USD कीमत का इतिहास रुपये की विनिमय दर में तेज उतार-चढ़ाव की अनुमति नहीं देता है. यह गिरावट को कम करने या वृद्धि को सीमित करने के लिए हस्तक्षेप करता है. यह बाजार में डॉलर बेचकर गिरावट को रोकने की कोशिश करता है. यह एक ऐसा कदम है जो डॉलर की तुलना में रुपये की मांग के बीच के अंतर को कम करता है. जिससे USD कीमत का इतिहास भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आती है. जब आरबीआई रुपये को मजबूत होने से रोकना चाहता है तो वह बाजार से अतिरिक्त डॉलर निकाल लेता है, जिससे भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी होती है.
एक डॉलर की कीमत 80 रुपये से ज्यादा होने के बाद यह कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या रुपये में और गिरावट आनी बाकी है? जानकारों का मानना है कि 80 रुपये का स्तर एक मनोवैज्ञानिक स्तर था. अब इससे नीचे आने के बाद यह 82 डॉलर तक पहुंच सकता है.
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