ऑनलाइन ट्रेडिंग में डेरिवेटिव क्या हैं

जहां से वो अपना वैल्यू प्राप्त कर रहा है यानी कि वो साइन, वो उस कागज का अंतर्निहित परिसंपत्ति (Underlying Assets) है। क्योंकि अगर वो साइन नहीं होता तो कागज की कोई वैल्यू नहीं होती। ऐसे ही ढेरों उदाहरण आप अपने आस-पास से ले सकते हैं।
Share Market को कैसे समझें और इन्वेस्ट कैसे करें
आज हम बात करेंगे की Share Market Ko Kaise Samjhe के बारेमे। इंडियन स्टॉक मार्केट या फिर शेयर मार्केट से अच्छा फायदा कमाने के लिए या फिर अच्छी इनकम प्राप्त करने के लिए शेयर मार्केट को बारीकी से समझना बहुत ही आवश्यक होता है।
अगर आप शेयर मार्केट को समझकर शेयर मार्केट में काम करते हैं, तो ऐसा करने से आपके नुकसान होने की संभावना काफी कम हो जाती है और आपके इन्वेस्टमेंट पर अच्छा रिटर्न मिलने की संभावना काफी ज्यादा बढ़ जाती है।
जो व्यक्ति बिना जाने समझे या सीखे शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करता है, अधिकतर उस व्यक्ति के पैसे शेयर मार्केट में डूब जाते हैं, क्योंकि शेयर मार्केट जोखिमों के अधीन होता है।इसलिए शेयर मार्केट को समझकर ही इसके अंदर इन्वेस्ट करना चाहिए। चलिए यहाँ हम जानते हें की स्टॉक मार्किट कैसे समझे के बारेमे।
शेयर मार्किट चार्ट कैसे समझे?
Share Market Chart Kaise Samjhe इसलिए आवश्यक होता है क्योंकि शेयर मार्केट को समझकर व्यक्ति सही कंपनी में सही टाइम पर अपने पैसे इन्वेस्ट कर सकता है, जो आगे चलकर उसे उसके पैसे का अच्छा रिटर्न दे।
नीचे हम आपको कुछ ऐसी बातें बता रहे हैं, जो शेयर मार्केट को समझने के लिए आपके काफी काम आएंगी, तो आइए जानते हैं शेयर मार्केट कैसे समझे?
Share Market Ko Kaise Samjhe 2022
शेयर मार्केट को समझने के लिए आपको पहले Share Market Graph Kaise Samjhe के बारेमे जानना होगा और आपको शेयर मार्केट चार्ट को समझना पड़ेगा।
जब कोई भी रिटेल इन्वेस्टर शेयर Chart को ओपन करता है, तो उसे यह पता नहीं चलता है कि शेयर Chart में वह क्या देखें और कहां देखें शेयर Chart को समझने के लिए बहुत ज्यादा प्रैक्टिस की आवश्यकता होती है, परंतु आपको चिंता नहीं करनी है नीचे आप जानेंगे कि शेयर Chart को समझकर शेयर मार्केट कैसे समझें।
#1. Chart का ट्रेंड देखें
किसी भी स्टॉक के चार्ट को अच्छी तरह से समझने के लिए आपको सबसे पहले यह देखना होता है कि आखिर उस शेयर के ट्रेंड किस तरफ जा रहे हैं।
सामान्य तौर पर इस चार्ट में टोटल तीन टाइप के ट्रेंड देखने को मिलते हैं,जो इस प्रकार है।
- Up Trend (अप ट्रेंड)
- Down Trend (डाउनट्रेंड)
- Sideway Trend (साइडवेज ट्रेंड)
Alert! हाई रिटर्न का लालच पड़ेगा भारी, जानें- NSE ने कहां निवेश न करने की दी सलाह
कॉन्ट्रैक्ट फॉर डिफरेंस ऐसे कॉन्ट्रैक्ट हैं, जिसमे अंडरलाइंग की वैल्यू निवेशक के लिए मायने नहीं रखती है. कॉन्ट्रैक्ट शुरू होने और बंद होने के बीच कीमत के अंतर के आधार पर कमाई होती है.
NSE का कहना है कि निवेशक कॉन्ट्रैक्ट फॉर डिफरेंस/बाइनरी ऑप्शंस जैसे डेरिवेटिव प्रोडक्ट में हाई रिटनर्न के लालच से बचें. (reuters)
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) ने निवेशकों को अनरेगुलेटेड डेरिवेटिव प्रोडक्ट को लेकर आगाह किया है. NSE का कहना है कि निवेशक हाई रिटर्न के झांसे वाले अनरेगुलेटेड डेरिवेटिव प्रोडक्ट के लालच में न फंसे. इससे वे बड़े नुकसान में पड़ सकते हैं. NSE का कहना है कि निवेशक कॉन्ट्रैक्ट फॉर डिफरेंस/बाइनरी ऑप्शंस जैसे डेरिवेटिव प्रोडक्ट में निवेश न करें. कुछ स्टार्टअप प्लेटफार्म पर कॉन्ट्रैक्ट फॉर डिफरेंस/बाइनरी ऑप्शंस के कॉन्ट्रैक्ट चल रहे हैं.
ऐसे प्लेटफार्म SEBI में रजिस्टर्ड नहीं
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का कहना है कि देश में कुछ इंटरनेट बेस्ड अवैध प्लेटफार्म पर इस तरह के ऑनलाइन ट्रेडिंग में डेरिवेटिव क्या हैं ऑफर निवेशकों को दिए जा रहे हैं. ऐसे प्लेटफार्म मार्केट रेगुलेटर सेबी में रजिस्टर्ड नहीं हैं और प्रोडक्ट को ऑनलाइन ट्रेडिंग में डेरिवेटिव क्या हैं भी मंजूरी नहीं मिली है. इन प्लेटफॉर्म पर निवेशकों को इस तरह के प्रोडक्ट में हाई रिटर्न का लालच दिया जा रहा है. निवेशकों को इनसे बचकर रहने की सलाह दी जा रही है.
NSE के अनुसार एक्सचेंज ने यह नोटिस किया कि कुछ अनरेगुलेटेड प्लेटफॉर्म या वेबसाइट कुछ अनरेगुलेटेड डेरिवेटिव प्रोडक्ट्स में ट्रेडिंग ऑफर कर रही हैं, जिन्हें कॉन्ट्रैक्ट फॉर डिफरेंस (CFD) या बाइनरी ऑप्शंस कहा जाता है. जिसके बाद NSE ने यह चेतावनी जारी की है.
क्या होते हैं कॉन्ट्रैक्ट फॉर डिफरेंस
ऐसे कॉन्ट्रैक्ट जिसमे अंडरलाइंग की वैल्यू निवेशक के लिए मायने नहीं रखती है. कॉन्ट्रैक्ट शुरू होने और बंद होने के बीच कीमत के अंतर के आधार पर कमाई होती ऑनलाइन ट्रेडिंग में डेरिवेटिव क्या हैं है. बाजार की भाषा में कह सकते हैं कि CFD एक खरीदार और एक विक्रेता के बीच एक कांट्रैक्ट है, जो यह निर्धारित करता है कि खरीदार, विक्रेता को एक एसेट की मौजूदा वैल्यू और कांट्रैक्ट टाइम पर उसके वैल्यू के बीच अंतर का भुगतान करेगा. US और भारत जैसे मार्केट में ऐसे कॉन्ट्रैक्ट की मंजूरी नहीं है. UK, स्पेन, हॉन्ग कॉन्ग और सिंगापुर जैसे मार्केट में सीमित छूट के साथ इसकी मंजूरी है.
बाइनरी ऑप्शन एक निश्चित भुगतान के साथ एक तरह का विकल्प है, जिसमें एक निवेशक दो संभावित रिजल्ट से आउटकम का अनुमान लगाता है. अगर अनुमान सही है, तो निवेशक को मुनाफा होता है. अगर अनुमान सही नहीं होता है तो निवेशक शुरूआती हिस्सेदारी खो देता है. इसे 'बाइनरी' कहा जाता है क्योंकि इसके केवल 2 परिणाम हो सकते हैं- जीत या हार.
डेरिवेटिव क्या है?। डेरिवेटिव्स। Derivatives in Hindi
हालांकि कुछ डेरिवेटिव्स के अलग से भी एक्सचेंज होते हैं। जैसे कि कमोडिटी डेरिवेटिव्स (Commodity derivatives) की ही बात करें तो इंडिया में इसके लिए अलग से भी एक्सचेंज है। ये क्या होता है इसे हम आगे समझेंगे।
डेरिवेटिव्स पूंजी बाज़ार में सबसे तेजी से धन कमाने का एक बेहतरीन जरिया है। कम से कम पैसों में भी इस विधि से लाभ कमाया जा सकता है। पर बात वही है कि अगर प्रॉफ़िट ज्यादा है तो रिस्क भी बहुत ज्यादा है।
कुछ ऑनलाइन ट्रेडिंग में डेरिवेटिव क्या हैं लोग तो इस मार्केट में बहुत ज्यादा पैसा कमाने के मकसद से ही आते हैं वहीं कुछ लोग अपना रिस्क कम करने के लिए आते है। ये सब कैसे होता है सब हम आगे समझने वाले हैं।
| डेरिवेटिव क्या है?
प्रतिभूतियों (Securities) को मोटे तौर पर तीन भागों में बांटा जा सकता है – (1) इक्विटि प्रतिभूतियां (equity securities) (2) डेट प्रतिभूतियां (Debt securities) और (3) डेरिवेटिव प्रतिभूतियां (Derivatives securities)। नीचे ऑनलाइन ट्रेडिंग में डेरिवेटिव क्या हैं दिये गए चार्ट में आप इसे देख सकते हैं।
कहने का अर्थ ये है कि डेरिवेटिव भी एक प्रतिभूति है जिसका कि एक मौद्रिक मूल्य होता है। लेकिन यहाँ याद रखने वाली बात है कि ये अपना मूल्य खुद से प्राप्त नहीं करता है बल्कि किसी और चीज़ से प्राप्त करता है।
यानी कि कोई भी ऐसा उपकरण (Instrument) जिसकी अपनी खुद की कोई वैल्यू नहीं होती है बल्कि उसकी वैल्यू किसी और ही चीज़ से प्राप्त होती है। उसे डेरिवेटिव (Derivatives) कहा जाता है।
| डेरिवेटिव्स के प्रकार
डेरिवेटिव्स (Derivatives) चार प्रकार के होते हैं –
1. फॉरवर्ड डेरिवेटिव्स (Forward Derivatives)
2. फ्युचर डेरिवेटिव्स (Future Derivatives)
3. ऑप्शन डेरिवेटिव्स (Option Derivatives)
4. स्वैप डेरिवेटिव्स (Swap Derivatives)
हम सभी को एक-एक करके अलग-अलग लेखों में समझने वाले हैं, ऐसा इसीलिए ताकि इसके काम करने के तरीके को विस्तार से समझ सके। तो आइये फॉरवर्ड डेरिवेटिव्स (Forward Derivatives) से शुरू करते हैं;
क्या निश्चित समय के डेरिवेटिव का व्यापार एक प्रकार का जुआ हो सकता है?
मूलरूप में समानता निहित है। दोनों जुआ और व्युत्पन्न व्यापार आपको धन ला सकता है, लेकिन इससे नुकसान भी हो सकता है।
कई लोगों के अनुसार, ट्रेडिंग डेरिवेटिव जुआ का एक रूप है। उन्हें ऑनलाइन ट्रेडिंग में डेरिवेटिव क्या हैं लगता है कि यह केवल भाग्य के भरोसे है कि आप जीतते हैं या हारते हैं। सच्चाई यह है कि, व्युत्पन्न व्यापार बहुत अधिक है। यह ऊपर या नीचे बटन को मारने के रूप में सरल नहीं है।
इस सुरक्षा का व्यापार करने से आपको कौशल के सभी सेट विकसित करने की आवश्यकता होती है। एक व्युत्पन्न व्यापारी के रूप में सफल होने के लिए आपको विभिन्न रणनीतियों को लागू करने, चार्ट का विश्लेषण करने, पढ़ने और सीखने में घंटों खर्च करने होंगे। पर्याप्त वित्तीय और भावनात्मक प्रबंधन को शामिल करना भी बहुत महत्वपूर्ण है।
कुछ जोर देकर कहेंगे कि दलाल बाजार में हेरफेर करते हैं, और इस प्रकार, ट्रेडिंग डेरिवेटिव एक मिथ्याकरण है। और यद्यपि दलाल प्लेटफॉर्म के मालिक हैं, वे बहुत अधिक नहीं बदल सकते हैं या उन्हें खोजा जाएगा और उन पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। दलाल और व्यापारी समान मूल्य चार्ट का उपयोग कर रहे हैं। जोड़तोड़ की संभावना बहुत कम है।
फिक्स्ड-टाइम डेरिवेटिव ट्रेडिंग का एक्सपोजर
जब आप स्टॉक या FX जैसे विभिन्न वित्तीय इंस्ट्रूमेंट का ट्रेड करते हैं, तो एसेट खरीदने का एकमात्र तरीका है जब कोई अन्य व्यक्ति बेच रहा हो। और इंस्ट्रूमेंट बेचने का एकमात्र तरीका है जब कोई व्यक्ति दूसरी तरफ से खरीद रहा हो।
स्थिति थोड़ी अलग दिखती है डेरिवेटिव ट्रेडिंग। मूल रूप से, आप एक निश्चित अवधि के दौरान कीमत की दिशा पर अनुमान लगाते हैं। आप किसी अन्य व्यापारी को नहीं खरीदते और बेचते हैं, लेकिन आपका ब्रोकर। इसलिए ब्रोकर सफल लेनदेन पर भुगतान का प्रतिशत निर्धारित करने का हकदार है। ऐसा करने से, ब्रोकर यह सुनिश्चित करना जारी रखता है कि लेनदेन जीत रहे हैं या नहीं।
इसलिए, कीमतों में हेरफेर करने का कोई मतलब नहीं है।
ओवर ऑल ट्रेडिंग (Over all trading)
भारत में डेरिवेटिव इंस्ट्रूमेंट (derivative instrument) की ट्रेडिंग निर्धारित नियम और कानून के तहत की जाती है। पूरी ट्रेडिंग स्टॉक एक्सचेंज (stock exchange) के माध्यम से होती है, जहां खरीदी बिक्री कॉन्ट्रैक्ट (contract) ऑफर ट्रेडिंग की सारी प्रक्रिया है। ऑटोमेटिक कंप्यूटराइज टर्मिनल (automatic computerized terminal) के माध्यम से होती है। ऑटोमेटिक प्रक्रिया पर ऑनलाइन निगरानी (Surveillance) भी रखी जाती है। जिसकी वजह से पूरी पारदर्शिता होती है।
डेरिवेटिव मार्केट में फ्यूचर कांट्रैक्ट (futures contract) की व्यवस्था भी उपलब्ध है। जिसकी वैलिडिटी (validity) 3 महीने की होती है और हर महीने की शुरुआत में एक नया फ्यूचर कांट्रैक्ट अस्तित्व में आता है और प्रत्येक माह के अंतिम गुरुवार (Thursday) को एक फीचर कांट्रैक्ट समाप्त होता ऑनलाइन ट्रेडिंग में डेरिवेटिव क्या हैं है जो 3 माह पूर्व शुरू हुआ था।
सदस्यता(Membership)
डेरिवेटिव मार्केट में निवेश करने के लिए किसी भी व्यक्ति ऑनलाइन ट्रेडिंग में डेरिवेटिव क्या हैं को एक्सचेंज (exchange) के फ्यूचर तथा ऑप्शन साइट की सदस्यता लेनी आवश्यक है। इसमें क्लीयरिंग (clearing) मेंबर की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। क्योंकि यह आपके किए गए सोदे (deal) के निपटान करते हैं और रिस्क मैनेजमेंट (risk management) तथा सोदे (deal) के सेटलमेंट करते हैं।
आसान और त्रुटिरहीत क्लीयरिंग (flawless clearing) पूरे ट्रेडिंग सिस्टम को मजबूत आधार ऑनलाइन ट्रेडिंग में डेरिवेटिव क्या हैं प्रदान करती है। क्लीयरिंग मेंबर प्रत्येक ट्रेडिंग दिवस (trading day) के समापन के पश्चात अपने ट्रेडिंग मेंबर की ओपन पोजीशन (position) तैयार करता है। इससे विभिन्न ट्रेडिंग मेंबर के एप्लीकेशन पता चलते हैं। उसमें कस्टोडियल पार्टिसिपेंट (custodial participant) के लिए की गई क्लीयरिंग भी शामिल होती है।
ट्रेडिंग मेंबर दो प्रकार के होते सोदे (deal) करता है एक वह अपने स्वयं के लिए और दूसरा वह अपने क्लाइंट (client) के लिए करता है। किसी भी सोदे के लिए ट्रेडिंग मेंबर को यह दिखाना आवश्यक है कि वह सौदा किस प्रकार का है, और क्लीयरिंग मेंबर इन दोनों प्रकार के सौदों की फाइल पोजीशन प्रत्येक ट्रेडिंग दिवस के आखरी में तैयार करता है।
सेटलमेंट (settlement)
ओपन पोजीशन (open position) के द्वारा जरूरतों तथा स्थिति का जायजा मिलने के पश्चात सेटलमेंट (settlement) की बारी होती है। सेटलमेंट (settlement) से तात्पर्य यह है जो पोजीशन ओपन होती है। उनको एडजेस्ट (adjust) करना होता है डेरिवेटिव मार्केट में फ्यूचर तथा ऑप्शन सौदों को केस एडजस्टमेंट के द्वारा सेटल किया जाता है।
बाकी सिक्योरिटी (security) के आदान-प्रदान के दौरान सेटलमेंट नहीं होता, अपितु इन सौदों की कीमत के अनुसार राशि का एडजस्टमेंट (adjustment) किया जाता है।