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विदेशी मुद्रा व्यापार की शर्तें और शब्दावली

विदेशी मुद्रा व्यापार की शर्तें और शब्दावली
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50-दशक की शुरूआत से 70-दशक के अंत तक ‘हिंदू’ वृद्धि दर और ‘नेहरूवादी’ समाजवाद

प्रथम अवस्था (1950-80) की तथाकथित हिंदू वृद्धि दर बढ़ते नियंत्रण और मंद होती वृद्धि दर के दौरान ’70-दशक में प्रो. राज कृष्णा द्वारा प्रचलित शब्दावली. (औसतन 3.5 प्रतिशत वार्षिक) – जिसे बमुश्किल याद किया जाता है – 1917 से 1946 के बीच 30 वर्षों की अवधि के दौरान औसत वृद्धि दर (0.7 प्रतिशत वार्षिक) की पांच गुना थी. ये 30 वर्ष, यकीनन, बेहद मुश्किलों से भरे थे, जिस दौरान विश्व युद्ध हुए और महामंदी भी आई. किंतु वह वृद्धि 1900 से 1913 के बीच की सामान्य विदेशी मुद्रा व्यापार की शर्तें और शब्दावली अवधि में हासिल 1.5 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर से भी दोगुनी थी. अरविंद विरमानी द्वारा तैयार आलेख ‘इंडियाज इकाॅनोमिक ग्रोथ हिस्ट्रीः फ्लक्चुएशंस, ट्रेंड्स, ब्रेक प्वाइंट्स एंड फेजेज’ (जनवरी 2005), इंडियन काउंसिल फाॅर रिसर्च आॅन इंटरनेशनल इकाॅनोमिक रिलेशंस, नई दिल्ली. अगर इस विकास के पीछे राजनीतिक आजादी की प्राप्ति और प्रत्यक्ष औपनिवेशिक लूट (जो बाद में विभिन्न अप्रत्यक्ष तरीकों से चलती रही) की समाप्ति मूल कारण थे, तो इसका कुछ श्रेय विकास की नेहरू-महालनोबिस रणनीति को भी जाता है.

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यदि आप विदेशी मुद्रा में रुचि रखते हैं तो आपके पास 2 विकल्प हैं; आप या तो विदेशी मुद्रा शिक्षा और संकेतों के लिए भुगतान कर सकते हैं या मेरे पास आपके लिए यहां मौजूद जानकारी का उपयोग करके आप अपने लिए सीख सकते हैं।

यदि आप यहां दी गई जानकारी को व्यवहार में लाते हैं तो आप अपने व्यापार में सुधार कर सकते हैं। विदेशी मुद्रा व्यापार में आपको पैसा कमाने की क्षमता है लेकिन आपकी पूंजी खोने का जोखिम भी है। आपको उस पैसे के साथ व्यापार करना चाहिए जिसे आप खो सकते हैं।

विदेशी मुद्रा सीखें

हमारा ब्लॉग लेखों से भरा है जो आपके व्यापार को बेहतर बनाने में आपकी मदद कर सकते हैं। नीचे हमारे कुछ नवीनतम पोस्ट देखें

आरसीएमसी

रजिस्ट्रेशन कम मेंबरशिप सर्टिफिकेट यानी पंजीकरण और सदस्यता प्रमाण पत्र विदेश व्यापार नीति 2015-20 में निर्धारित अनुसार निर्यात संवर्द्धन परिषदों / कमोडिटी बोर्ड / विकास प्राधिकरणों या अन्य सक्षम प्राधिकारियों द्वारा जारी किए जाते हैं। विदेश व्यापार नीति के अंतर्गत आयात/निर्यात के लिए अनुमति मांगने या अन्य कोई लाभ उठाने या छूट प्राप्त करने के लिए आवेदन करने वाली किसी भी कंपनी के लिए वैध आरसीएमसी प्रस्तुत करना जरूरी है।http://dgft.gov.in/sites/default/files/ANF-2C.pdf

उत्पादों का चयन कुछ बातें ध्यान में रखकर किया जा सकता है। जैसे- निर्यात के विस्तृत आंकड़े, उत्पाद के निर्यात के दिशा-निर्देश, चयनित उत्पाद का निर्यात ट्रेंड, निर्यात योग्य सर्वश्रेष्ठ उत्पाद और उस उत्पाद पर कोई प्रतिबंध न हो।

बाजार का चयन

किसी विदेशी बाजार में पूरी रिसर्च के साथ कदम रखना चाहिए। जैसे- उसका मार्केट साइज़ क्या है, कंपीटिशन और भुगतान की शर्तें क्या हैं, यह सब देखना चाहिए। निर्यातक विदेश व्यापार नीति के अंतर्गत कुछ देशों के लिए उपलब्ध निर्यात लाभों का मूल्यांकन भी कर सकते हैं। निर्यात संवर्द्धन एजेंसियां, विदेशों में भारतीय मिशन आदि ऐसी सूचनाएं जुटाने में मददगार हो सकते हैं।

स्टैंडर्ड यानी मानक, तकनीकी विनियामक, एसपीएस उपाय यानी खाद्य सुरक्षा, पशुओं और पौधों के स्वास्थ्य मानक संबंधी नियम और पुष्टिकरण मूल्यांकन प्रक्रिया, ये सब बाजार की तकनीकी जरूरतें हैं। ये अलग-अलग देशों में अलग-अलग होती हैं।

कीमत / लागत

निर्यात की कीमत तय करन के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिएः

  • विनिर्मित उत्पाद की लागत
  • अकेले या बल्क में पैकिंग की लागत
  • वित्तपोषण की लागत
  • ईसीजीसी कवर की लागत
  • प्रमोट करने या ऑर्डर बुक करने में हुआ खर्च
  • कानूनी दस्तावेज तैयार कराने में हुआ खर्च
  • ढुलाई सहित माल को बंदरगाह तक पहुंचाने की लागत और अन्य खर्च
  • कर, विभिन्न शुल्क और यदि कोई लेवी आदि लगी है तो वह और लाभ मार्जिन .

खरीदार तलाशना

व्यापार मेले (ट्रेड फेयर), प्रदर्शनियां, क्रेता-विक्रेता सम्मेलन, बी-टू-बी (बिज़नेस से बिज़नेस बनाने वाले) पोर्टल आदि बाजार में कदम रखने के प्रभावी माध्यम हैं। निर्यात संवर्द्धन परिषदें, विदेशों में भारतीय मिशन, विदेश स्थित चैंबर्स ऑफ कॉमर्स भी मददगार होते हैं। उत्पादों की सूची, उनकी कीमत, भुगतान की शर्तें और अन्य संबंधित सूचनाएं देने वाली बहुभाषी वेबसाइटों से भी मदद मिलेगी।

खरीदार का चयन करने के बाद अगला कदम उत्पाद में खरीदार की रुचि पैदा करना है। इसके लिए भावी संभावनाएं बताना, कीमतों में छूट देने संबंधी बातों को भी ध्यान में रखना चाहिए।

GATS के अंतर्गत सेवाओं में चार प्रकार के व्यापार सम्मिलित हैं। वे निम्न हैं:

प्रथम प्रकार - सीमा पार पूर्ति - IT एवं काल सेंटर सेवाओं की USA, EU या अन्य देशों को भारतीय पूर्ति सेवाओं की सीमापार पूर्ति का एक अच्छा उदाहरण है

द्वितीय प्रकार - विदेशों में उपभोग जैसे पर्यटन एवं अंतर्राष्ट्रीय घटनाएँ जैसे ओलिंपिंक या क्रिकेट या विश्व कप फुटबाल इत्यादि ।

तृतीय प्रकार - व्यावसायिक उपस्थिति इसके अंतर्गत पूर्ति करने वाली कंपनी सेवाओं की पूर्ति के लिए विदेश शाखा स्थापित करती है जैसे बैंक (भारत में सिटी बैंक या स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक या यू.एस.ए. में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया या बीमा कंपनी (भारत में लोम्बार्ड)

चतुर्थ प्रकार - निगमित व्यक्ति से भिन्न ' वास्तविक ' व्यक्ति की उपस्थिति सरल भाषा में इसे प्रवास कहा जाता है।

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