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भारत रूढ़िवादी स्टाइल में टी20 खेल रहा है: वान
लंदन, (आईएएनएस)| इंग्लैंड के पूर्व इंग्लैंड कप्तान माइकल वॉन ने ऑस्ट्रेलिया में टी20 विश्व के सेमीफाइनल में इंग्लैंड से 10 विकेट की शर्मनाक पराजय झेलकर बाहर हुई भारतीय टीम की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि भारत टी20 विश्व कप में रूढ़िवादी क्रिकेट खेल रहा है और सीमित-ओवर क्रिकेट के इतिहास में अपने प्रतिभा के साथ न्याय ना करने वाली टीमों में सबसे आगे है।
भारत का इस साल के विश्व कप का सफर सेमीफाइनल में खत्म हो गया जब जोस बटलर के नेतृत्व में इंग्लैंड ने उन्हें गुरुवार को एडिलेड में 10 विकेट से रौंदा। 'द टेलीग्राफ' अखबार में वॉन ने अपने कालम में लिखा, "भारत इतिहास की सबसे बड़ी अंडर-परफॉमिर्ंग टीम है। सारे खिलाड़ी इंडियन प्रीमियर लीग में खेलकर बताते हैं कि इससे कैसे उनके गेम में निखार आया लेकिन भारतीय टीम ने कब पिछली बार बड़े मंच पर अपनी प्रतिभा के साथ न्याय किया? 2011 में अपनी धरती पर 50-ओवर विश्व कप जीतने के बाद उनके हाथ एक भी खिताब नहीं आया। भारत कई सालों से रूढ़िवादी अंदाज में सफेद-गेंद क्रिकेट खेलता आया है।"
उन्होंने आगे लिखा, "उन्होंने ऋषभ पंत जैसे प्रतिभाशाली और विस्फोटक बल्लेबाज का भी सदुपयोग नहीं किया है। इस युग में ऐसे बल्लेबाज को आपको शीर्ष क्रम में डालकर मारने की पूरी छूट देनी चाहिए। उनकी प्रतिभा को देखते हुए उनकी शैली से मैं स्तब्ध हूं। उनके खिलाड़ी सही हैं लेकिन प्रक्रिया गलत है। आप विपक्षी टीम को पांच ओवर तक सहजता के साथ कैसे खेलने दे सकते हैं?"
वॉन ने भारतीय एकादश में ऑलराउंडर की कमी का उल्लेख करते हुए लिखा, "उनके पास गेंदबाजी के पांच ही विकल्प हैं और ऐसा कैसे संभव है जब 10-15 साल पहले उनके बल्लेबाजी क्रम में सभी गेंदबाजी कर लेते थे। सचिन तेंदुलकर, सुरेश रैना, युवराज सिंह और सौरव गांगुली भी उपयोगी गेंदबाज थे। अब कोई बल्लेबाज गेंदबाजी नहीं करता और ऐसे में कप्तान के विकल्प बहुत सीमित होते हैं।"
वॉन ने भारत के चयन और कप्तान रोहित शर्मा की कप्तानी पर भी सवाल उठाए। उन्होंने लिखा, "टी20 क्रिकेट के आंकड़े बताते हैं कि ऐसे स्पिनर जो गेंद को दोनों तरफ स्पिन करा सकते हैं वह कितने अहम हैं। भारत लेग स्पिनर से लैस है लेकिन वह कहां हैं? उनके पास एक बाएं हाथ का तेज गेंदबाज है, अर्शदीप सिंह, जो गेंद को दाएं हाथ के बल्लेबाजों के लिए अंदर ला सकता है। 168 के स्कोर के बचाव में वह क्या करते हैं? पहला ओवर भुवनेश्वर कुमार को थमा देते हैं जो गेंद को बाहर निकालते हैं और ऐसे में जॉस बटलर और एलेक्स हेल्स को रूम मिलता है। पहला ओवर बाएं हाथ के गेंदबाज से कराईए और गेंद को अंदर ले आईए ताकि बल्लेबाजों को कोई रूम नहीं मिले और वह तेज शुरूआत नहीं कर सकें।
वॉन ने आगे लिखा, "भारत की सफलता विश्व क्रिकेट के लिए जरूरी है लेकिन सभी संसाधनों के होते हुए उन्हें और मैच जीतने होंगे। 2016 में वह अपनी धरती पर टी20 विश्व कप फाइनल तक नहीं पहुंच पाए। पिछले साल उन्होंने निराश किया। इस बार भी पाकिस्तान को हराने के लिए टी20 के सर्वकालिक बेहतर बल्लेबाज विराट कोहली की एक अविश्वसनीय पारी की जरूरत पड़ी। अब सच का सामना करना होगा।''
उन्होंने लिखा, "हर वैश्विक प्रतियोगिता से पहले सब उनकी गुणवत्ता को बढ़ा चढ़ा कर बोलते हैं। शायद लोगों को डर है कि सोशल मीडिया पर गालियां पड़ेंगी या आगे भारत में काम नहीं मिलेगा। आप चंद महान खिलाड़ियों के पीछे छिप नहीं सकते क्योंकि इस प्रारूप में आपको एकजुट होकर एक टीम बनकर खेलना पड़ता है। भारत के पास गेंदबाजी के विकल्प कम हैं, उनकी बल्लेबाजी में गहराई नहीं है और उनके स्पिन गेंदबाज चतुराई से बल्लेबाज को नहीं छका रहे।"
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सभी को भारतीय टीम से यह उम्मीद थी कि वो एडिलेड ओवल मैदान पर इंग्लैंड को मात देकर आईसीसी टी20 विश्व कप-2022 के फाइनल में कदम रखेगी।
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लेकिन सभी की ये उम्मीद टूट गई। इंग्लैंड ने गुरुवार को खेले गए दूसरे सेमीफाइनल में भारत को 10 विकेटों से हरा दिया। इसी के साथ उसने फाइनल में जगह बना ली जहां वो 13 नवंबर को पाकिस्तान से भिड़ेगा।
दूसरे सेमीफाइनल में भारतीय पारी के आखिरी पांच ओवरों को छोड़ दिया जाए तो भारत कहीं भी इंग्लैंड के सामने टिक नहीं सका। लेकिन सबसे ज्यादा उसे परेशान कर गए इंग्लैंड द्वारा फेंके गए सात ओवर।
ये सात ओवर फेंके इंग्लैंड के स्पिनरों ने। यानी आदिल रशीद और लियम लिविंगस्टन ने। धीमी शुरुआत के बाद एडिलेड की छोटी बाउंड्रीज को देखते हुए भारतीय बल्लेबाज इंग्लैंड के स्पिनरों पर तेजी से रन बना सकते थे लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
रशीद और लिविंग्सटन ने मिलाकर कुल सात ओवर फेंक और इन सात ओवरों में रन दिए सिर्फ 41। विकेट हालांकि सिर्फ एक ही मिला वो भी रशीद को लेकिन इन सात ओवरों में भारतीय पारी को बड़े स्कोर से वंचित रख दिया। रशीद ने चार ओवरों में 20 रन दिए तो वहीं लिविंग्सटन ने तीन ओवरों में 21 रन खर्च किए।
भारतीय स्पिनरों ने नहीं दिखाया दम
वहीं अगर भारतीय स्पिनरों की तुलना इंग्लैंड के स्पिनरों से की जाए तो टीम इंडिया के फैंस को निराशा होगी। भारत की तरफ से इस मैच में दो स्पिनर खेले थे। अनुभवी ऑफ स्पिनर रविचंद्रन अश्विन और बाएं हाथ के स्पिनर अक्षर पटेल, लेकिन दोनों ने जमकर रन लुटाए और विकेट भी नहीं ले सके।
भारतीय स्पिनरों ने मिलकर फेंके सिर्फ छह ओवर और रन दिए 57। इंग्लैंड के दोनों स्पिनरों की तुलना भारतीय स्पिनरों से कि जाए तो अंतर बहुत बड़ा है। इंग्लैंड के स्पिनरों का इस मैच में इकॉनमी 5.85 का रहा जबकि भारतीय स्पिनरों का इकॉनमी 9.50 का रहा। यानी लगभग दो गुना।
पटेल ने अपने कोटे के पूरे चार ओवर फेंके और 30 रन दिए लेकिन विकेट नहीं निकाल सके। अश्विन बेहद महंगे साबित हुए। उन्होंने महज दो ओवर गेंदबाजी की और रन दिए 27। यहां अगर युजवेंद्र चहल होते तो इंग्लैंड को निश्चित तौर पर परेशानी में डाल सकते थे।
पंत का नहीं किया सही इस्तेमाल
इस मैच में ऋषभ पंत को इसलिए जगह दी गई थी क्योंकि एडिलेड ओवल की साइड की बाउंड्रीज छोटी हैं और पंत स्पिनरों के खिलाफ इसका फायदा उठा सकते थे। लेकिन जब इंग्लैंड के स्पिनर गेंदबाजी कर रहे थे तब पंत को बल्लेबाजी के लिए भेजा ही नहीं गया।
ये तय था कि पंत को अगर इसी काम के आप बार के अंदर कब व्यापार कर सकते हैं? लिए रखा गया है तो टीम के बल्लेबाजी क्रम में बदलाव होगा क्योंकि इंग्लैंड के स्पिनर संभवतः 12-14 ओवर तक ही गेंदबाजी करेंगे, बावजूद इसके पंत को काफी नीचे भेजा गया। अगर पंत होते तो सात ओवरों में इन दोनों के खिलाफ तेजी से रन बना सकते थे।
Viral Chutkule: सुनसान सड़क पर एक आवारा लड़का लड़की को देखकर बोला
1 ) जुआ खेलने के जुर्म में पुलिस ने गप्पू, टप्पू और चिंटू को गिरफ्तार कर लिया…
जेल ले जाकर तीनों को बोरियों में बंद कर दिया गया
पुलिस ने पहली बोरी पर लात मारी अंदर से आवाज़ आई: भौं-भौं…
पुलिस वाला- लगता है इसमें कुत्ते हैं।
दूसरी बोरी पर लात मारी फिर अंदर से आवाज आई- म्याऊं म्याऊं…
पुलिस वाला- लगता है, इसमें बिल्ली है…
तीसरी बोरी पर लात मारी तो कोई आवाज नहीं आई,
फिर तीन-चार बार और लात मारी, फिर भी आवाज नहीं आई…
पांचवीं बार लात मारने ही वाला था, तभी अंदर से गप्पू की आवाज आई- मैं आलू हूं, आलू…!!
2 ) सुनसान सड़क पर एक आवारा लड़का लड़की को देखकर बोला- मेरे साथ चलोगी?
लड़की- कहां?
लड़का- जहां तुम कहो।
लड़की- अच्छा, तो पुलिस स्टेशन चलते हैं।
लड़का- लो बताओ, अब बंदा अपनी बहन से मजाक भी नहीं कर सकते !!
3 ) पत्नी- जरा किचन से आलू लेते आना।
पति- यहां तो कहीं आलू दिख नहीं रहे हैं।
पत्नी- तुम तो हो ही अंधे, कामचोर हो, एक काम ढंग से नहीं कर सकते,
मुझे पता था कि तुम्हें नहीं मिलेंगे, इसलिए मैं पहले ही ले आई थी!
अब आदमी की कोई गलती हो तो बताओ…
4 ) संता (बंता से)- पूरी जिंदगी निकली जा रही है इसी इंतजार में,
कभी कोई टीचर मिलेगा तो एक बात उनसे आप बार के अंदर कब व्यापार कर सकते हैं? जरूर पूछूंगा।
संता- क्या?
बंता- ये साइन थीटा, कॉस थीटा और टैन थीटा का यूज लाइफ में कब और कैसे करना है?
5 ) टीचर ने चिंटू से पूछा- अच्छा ये बताओ कि दुनिया में कितने देश हैं?
चिंटू- अरे मैम आप भी ये कैसी बात कर रही हैं।
दुनिया में तो बस एक ही देश है, हमारा देश भारत। बाकी तो सब विदेश हैं|
6 ) पत्नी ICU में थी। पति का रो-रोकर बुरा हाल था।
डॉक्टर- हम पूरी कोशिश कर रहे हैं, पर वह कुछ बोल ही नहीं रही है। शायद कोमा में है।
अब तो सब कुछ भगवान के हाथ में है।
पति बोल उठा- सिर्फ 40 की ही तो है अभी! तभी एक चमत्कार दिखा।
ECG और धड़कन बड़ने लगी, पत्नी की उंगली हीली, होंठ हिले और आवाज आई 36 की।
7 ) जज- क्या सबूत है कि जब आप बार के अंदर कब व्यापार कर सकते हैं? एक्सीडेंट हुआ, तब तुम कार तेज़ नहीं चला रहे थे?
कार चालक- साहब, मैं अपनी पत्नी को लेने ससुराल जा रहा था।
जज- ओह, छोड़ दो इस मासूम को, ऐसे समय कोई भी गाड़ी तेज़ नहीं चला सकता।
“न्यूज रूम में न्यूज मेकर” कार्यक्रम, विनोद सिंह ने कहा, नियमों-नीतियों का लाभ जनता तक पहुंचाना जरूरी
Ranchi : झारखंड में वामदलों के एकमात्र विधायक हैं भाकपा माले के विनोद सिंह. सोमवार को लगातार डॉट इन के लोकप्रिय कार्यक्रम न्यूजरूम में न्यूज मेकर में विनोद सिंह बतौर अतिथि शामिल हुए. कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार संतोष मानव ने किया. कार्यक्रम में विनोद सिंह ने झारखंड की राजनीति, झारखंडी मुद्दों, भाजपा की राजनीति, सरकार की नीतियों, ईडी-आईटी की भूमिका सहित वामपंथी राजनीति पर विस्तार से अपनी बेबाक राय रखी. इन तमाम मुद्दों को लेकर हुए सवालों का विधानसभा की तरह ही अपने अंदाज में जवाब दिया. विनोद सिंह ने न केवल वर्तमान राज्य सरकार को कसौटी पर कसने का काम किया, बल्कि केंद्र की भाजपा सरकार पर भी प्रहार किये.
सवाल : आपके पिता स्व. महेंद्र सिंह गरीबों की आवाज थे, उनका पूरा जीवन गरीबों के लिए संघर्ष करते हुए बीता. आप अपने पिता को किस रूप में देखते हैं.
जवाब : मैं बचपन से परिवार को करीब से देखा. मेरे पिता चाहे गांव हो, सोसाइटी हो, जहां समस्याएं दिखती थीं, उसके निदान के लिए निरंतर प्रयासरत रहते थे. इसके लिए उन्हें किसी से टकराने की जरूरत पड़ती तो टकरा जाते थे, यहां तक कि परिवार से भी.
सवाल : आपके पिता हमेशा गरीबों के लिए लड़ते रहे, आर्थिक संपन्नता भी नहीं थी तो आपको लगा कि आपके पिता परिवार के साथ न्याय नहीं कर पाये.
जवाब : बचपन के रूप में मुझे पिता का अधिक समय नहीं मिला. कई-कई साल तक जेल में रहे. लेकिन तमाम बातों के बावजूद उनके तमाम मित्रों दोस्तों ने इस चीज की कभी कमी खलने नहीं दी.
जवाब : हम जिस सोसाइटी या माहौल में रहते हैं, वहां तो सीखते ही हैं. सबसे अधिक धैर्य की शक्ति मेरे पिता में थी. विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में लड़ने की शक्ति कैसे आती है, यह मैंने देखा है. यह सब झेलते हुए अपने पिता को कभी मैंने परेशान नहीं देखा.
जवाब : मैं तो यह मानता हूं कि किसी भी व्यक्ति के लिए अलग-अलग दौर में अहम रोल होता है. उसकी तुलना नहीं की जा सकती है. अलग-अलग दौर और परिस्थितियां लोगों को जन्म देती है. महेंद्र सिंह से बेहतर भी लोग आयेंगे वह समय अलग था.
सवाल : 1932 का खतियान का मुद्दा झारखंड में छाया हुआ है. इसे रोजगार से भी जोड़ा गया है. कुछ लोग कह रहे हैं कि यह कोर्ट में लटक जायेगा और महज राजनीतिक तमाशा रह जायेगा. आपको क्या लगता है.
जवाब : प्रक्रिया क्या हो नहीं हो यह अलग बात है. मगर एक लंबे समय से माइनिंग इलाके, आदिवासी इलाके, जंगल और बिहड़ों में रहने वाले लोग यहां के उपेक्षित रहे, जिसमें रोजगार अहम मुद्दा है. पहले दौर में लोग पहचान के लिए लड़ाई लड़े. मगर अब अधिकार और रोजगार के लिए लड़ाई चल रही है. दूसरे राज्य सरकारें भी निजी क्षेत्र में आरक्षण देने के लिए बिल लाती है. जहां तक झारखंड की बात है तो इरादों को देखना होगा जो शासन या सत्ता मैं रहते हैं. अगर इरादे अटल है तो वे अपने राज्य के निवासियों के लिए रास्ते और विकल्प खोज निकालेंगे. लेकिन अगर इरादे मजबूत ना हो तो कानून और नियम बनते रहते हैं. जहां तक स्थानीय नीति की बात है तो इसको लेकर पहले भी विवाद उठता रहा है. दूसरे राज्य में भी यह होता रहा है. यहां की सरकार इसे नौवीं अनुसूची में डालना चाहती है सरकार को महज औपचारिकता नहीं निभानी चाहिए, इसके लिए रूपरेखा भी सामने रखनी चाहिए. केंद्र अगर तत्परता दिखाती है तो राज्य सरकार को अपनी सीमा के अंदर इसे लागू करने की रूपरेखा बनानी चाहिए.
सवाल : महाराष्ट्र में अगर आप 10 साल भी रहते हैं तो वहां का आपको स्थानीय मान लिया जाता है. झारखंड के संदर्भ में 1932 क्यों. जब आपको पता है कि यह कोर्ट में अटक जायेगा.
जवाब : यह अलग राज्य की अलग परिस्थिति है. कुछ राज्यों का विकास ही प्रवासी मजदूरों के कारण हुआ है. ना केवल राज्य बल्कि अलग-अलग देशों का विकास भी इसके कारण हुआ है. झारखंड सहित विभिन्न राज्यों के लोग विदेशों में काम करते हैं, जो यहां से अधिक फायदेमंद है. इसलिए महाराष्ट्र और झारखंड की आर्थिक और सामाजिक परिस्थिति बिल्कुल अलग है. बिहार में भी खतियान आधारित स्थानीय नीति है.
सवाल : सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला है कि 1977 के बाद जिसे भी नौवीं अनुसूची में डाला गया है, उसकी समीक्षा हो सकती है.
जवाब : निश्चित रूप से समीक्षा होनी चाहिए. पहले भी सरना धर्म का प्रस्ताव भेजा गया है. विधानसभा सीट बढ़ाने का प्रस्ताव भी भेजा जा चुका है. इसलिए इसकी क्या गारंटी है कि इसे नौवीं अनुसूची में डाल ही देगी.
सवाल : इन दिनों ईडी और आईटी को लेकर माहौल गर्म है. सत्ता व विपक्ष दोनों एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. विपक्ष कह रहा आप बार के अंदर कब व्यापार कर सकते हैं? है कि आप गलत नहीं है तो डर कैसा.
जवाब : करप्शन का सवाल रहता है तो कोई बात नहीं है. ईडी और इनकम टैक्स जैसी एजेंसियों के राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने को लेकर हाल में ही सुप्रीम कोर्ट ने भी टिप्पणी की है. बात झामुमो-कांग्रेस सरकार या एनडीए सरकार की नहीं है. यह बहुत स्पष्ट है कि आम जनता भी जान रही है. जहां पर भाजपा की सरकार है, वहां यह दरवाजे बंद हो जाती हैं. मगर जहां विपक्षी आप बार के अंदर कब व्यापार कर सकते हैं? दलों की सरकारे हैं, वहां दरवाजे खुल जाते हैं. वहां सारी चीजें लागू होने लगती है. इसका इस्तेमाल राजनीतिक मंच के रूप में हो रहा है. पूजा सिंघल के रूप में मैंने देखा. जब जांच का केंद्र भाजपा की ओर जाने लगती है तो दरवाजे बंद हो जाते हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए.
जवाब : निश्चित रूप से आकलन होना चाहिए. मगर इसे चुनाव के नजरिए से देखा जा रहा है. मगर अगले 10 सालों में कोई सुखद भविष्य नहीं है. वामदलों का मतलब है जनता के संघर्ष व उनके आवाज का साथ देना.
जवाब : हम एक से दो तो हमेशा होते रहे हैं. चुनाव के नजरिए से देखें तो यह संख्या बढ़ेगी. झारखंड आंदोलन में वाम दलों की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है. इस बार कई सीटों पर कम मार्जिन से हारे हैं.
जवाब : जहां वोट खरीदने और बेचने का माहौल बन जाये तो वहां से मैंने बायकॉट किया है. मगर कई बार हम हारते हुए कैंडिडेट को वोट दिये. हम राज्यसभा को दूसरे नजरिए से देखते हैं. जो हमारी आवाज सदन में उठा सके, उसे वोट करेंगे. मगर जहां खरीद-फरोख्त करके चुनाव होगा वहां हम दूर ही रहेंगे.
जवाब : भाजपा की गलत नीतियों के कारण झामुमोनीत सरकार यहां बनी. इसके पीछे बड़ा आंदोलन झारखंडी मुद्दों का रहा. इन आंदोलन को एक धार देने का काम हुआ. यह सरकार सरकार कई मोर्चों पर काम कर रही है. मगर रोजगार के मामले में 3 सालों में निराशा हाथ लगी, जो अपेक्षित काम नहीं हुए. मैट्रिक व इंटर नियुक्ति की नियमावली बने.
जवाब : आज बाल दिवस है. ऐसे लोगों ने विधानसभा या सभाओं में देखा है. यह एकांगी पहलू हो सकता है. ऐसा नहीं है. हां हम बड़े हो जाते हैं तो भूमिकाएं बदल जाती है. आज बच्चों के लिए पढ़ना काम बना दिया गया है. पढ़ना एक मनोरंजन बनाया जाना चाहिए.
जवाब : भाजपा के शासनकाल में कई गड़बड़ियां हुई हैं. आपको जनता ने जिन मुद्दों का पर चुनाव जीताया है, उस पर काम करें. अभी भी झारखंड में शोषण जारी है. हमें भाजपा के खिलाफ न्यायालय भी जाना चाहिए. सरकार को भी ठोस कार्रवाई करनी चाहिए. रघुवर काल के घोटाले पर कार्रवाई नहीं हुई है.
जवाब : अगर मेरे लिए यह पेशा होता तो बिल्कुल चेंज कर लेता. हारने के बाद भी जनता के बीच रहे और उनकी सेवा की.