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अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश

अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश

निप्पॉन इंडिया एमएफ ने अंतरराष्ट्रीय योजनाओं में निवेश लेना रोका

इस परिसंपत्ति प्रबंधक ने 22 जून को अधिसूचित किया कि उसने इन योजनाओं में निवेश लेना शुरू कर दिया था। यह कदम बाजार नियामक भारतीय प्रतिभति एवंे विनिमय बोर्ड (सेबी) के निर्देशों के बाद उठाया गया था। सेबी ने कहा था कि जिन फंड हाउसों ने रिडेंप्शन के जरिये ताजा निवेश के लिए जगह बनाई है , वे विदेशी बाजारों में निवेश करने वाली अपनी योजनाओं में फिर से सबस्क्रिप्शन शुरू कर सकते हैं।

इस फंड हाउस ने बुधवार को कहा कि वह एक बार फिर निप्पॉन इंडिया यूएस इक्विटी अपॉर्च्यूनिटी फंड , निप्पॉन इंडिया जापान इक्विटी फंड , निप्पॉन इंडिया ताइवान इक्विटी फंड , निप्पॉन इंडिया मल्टी एसेट फंड और निप्पॉन इंडिया ईटीएफ हैंग बीईईएस में निवेश रोक दिया है।

फंड हाउस द्वारा जारी एक सूचना में कहा गया है , ‘ वैश्विक प्रतिभूतियों में निवेश करने वाली कुछ खास निप्पॉन इंडिया एमएफ योजनाओं में खरीदारी पुन: शुरू होने के बाद मौजूदा वैश्विक निवेश सीमाओं के व्यापक तौर पर इस्तेमाल देखा गया। इसलिए वैश्विक निवेश सीमा के उल्लंघन से बचने के लिए हमने एकमुश्त खरीदारी बंद करने का प्रस्ताव रखा।’ 31 जनवरी को सेबी ने फंड हाउसों को 7 अरब डॉलर की उद्योग-केंद्रित निवेश सीमा का उल्लंघन होने के बाद वैश्विक योजनाओं में नया निवेश स्वीकार करना बंद करने का निर्देश दिया था।

अंतरराष्ट्रीय रियल एस्टेट में भारतीय निवेशकों के लिए कई अवसर: विमल आनंद

आज रियल एस्टेट निवेश, राष्ट्रीय सीमाओं द्वारा प्रतिबंधित नहीं हैं भारतीय रियल एस्टेट बाजार में अवसरों का ध्यान रखते हुए, कई विदेशी निवेशकों और डेवलपर्स ने यहां निवेश करने में रुचि दिखाई है। इसी समय, कई भारतीय डेवलपर्स और निवेशक अपने निवेश पोर्टफोलियो को विविधता लाने के लिए विदेशों में अवसर तलाश रहे हैं।

एक नाइट फ्रैंक-आईआरईएक्स (अंतर्राष्ट्रीय रियल एस्टेट एक्सपो) की रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीयों ने विदेशों में घरों पर खर्च किया हैकई गुना मैनिफ़ोल्ड। रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु हैं:

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बाजार विश्लेषण उपकरण

नीचे सूचीबद्ध कुछ वेबसाइटें हैं जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार डेटा, आपके निर्यात उत्पादों के लिए बाजार विश्लेषण, और प्रचलित स्वैच्छिक मानकों, विशेष रूप से प्रमुख विकसित बाजारों और खुदरा श्रृंखलाओं, निवेश प्रवाह और अवसरों आदि के बारे में जानकारी प्रदान करने में उपयोगी हैं।

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दुनिया के इस बाजार में निवेश करने पर मिलेगा मोटा मुनाफा, जानिए सब कुछ

स्मार्टफोन और डीआईवाय (डू इट योरसेल्फ) एप्लिकेशन की वजह से विदेशी बाजारों में ऑनलाइन निवेश करना आसान हो गया है.

स्मार्टफोन और डीआईवाय (डू इट योरसेल्फ) एप्लिकेशन की वजह से विदेशी बाजारों में ऑनलाइन निवेश करना आसान हो गया है.

बीते दस साल में अमेरिकी शेयर बाजार डाउ जोन्स ने 196% का रिटर्न दिया है, जबकि बीएसई सेंसेक्स ने लगभग 150% से अधिक का रिट . अधिक पढ़ें

  • News18Hindi
  • Last Updated : March 17, 2021, 16:54 अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश IST

नई दिल्ली. दुनिया कोरोना महामारी से उबर रही है. ऐसे में भारत समेत अधिकांश देशों के शेयर बाजार तेजी के रिकॉर्ड कायम कर रहे हैं. दुनिया की नंबर वन अर्थव्यवस्था अमेरिका में भी निवेश बढ़ रहा है. विशेषज्ञों के मुताबिक अमेरिकी शेयर बाजारों में यह समय निवेश के लिए सबसे ज्यादा मुफीद हैं.
एंजेल ब्रोकिंग लिमिटेड डीवीपी- इक्विटी स्ट्रैटेजिस्ट ज्योति रॉय बताती हैं कि अमेरिका और भारतीय सूचकांकों का तुलनात्मक विश्लेषण करने पर पता चलता है कि अमेरिकी बाजारों में निवेश करना क्यों फायदेमंद हो सकता है? यदि हम पिछले एक दशक में डाउ जोन्स और बीएसई सेंसेक्स के प्रदर्शन को ध्यान में रखते हैं, तो हमें प्रत्येक से रिटर्न की स्पष्ट तस्वीर मिलती है. डाउ जोन्स ने 196% का रिटर्न दिया है, जबकि बीएसई सेंसेक्स ने 2010 और 2020 के बीच 10 साल की समय सीमा में लगभग 150% से अधिक का रिटर्न दिया है. उनके मुताबिक स्मार्टफोन और डीआईवाय (डू इट योरसेल्फ) एप्लिकेशन के प्रसार के कारण वैश्विक बाजारों का अध्ययन करना और बटन के एक क्लिक पर ऑनलाइन निवेश करना आसान हो गया है. कई लोग अमेरिका और अन्य अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश से बेहतर रिटर्न को लेकर आश्वस्त हैं. विदेशों में निवेश करने पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित हुआ है, लोगों को उन प्रक्रियाओं या विकल्पों के बारे में पूरी तरह से जानकारी नहीं होती है जिनका वे पीछा कर सकते हैं.
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अमेरिकी बाजारों में निवेश में क्याें ज्यादा मुनाफा है
अमेरिका वैश्विक वित्तीय केंद्र और नवाचारों का केंद्र बना हुआ है. अमेरिका और इसके बाजारों में हर दिन होने वाले विकास अक्सर दुनियाभर में माल की कीमत, विनिर्माण उत्पादन और व्यापार को प्रभावित करते हैं. इस कारण यह दुनियाभर के निवेशकों को आकर्षित करता है. अमेरिकी शेयरों में निवेश से दुनिया के बाकी हिस्सों में भी संभावनाएं खुल सकती हैं. अमेरिकी बाजारों में सूचीबद्ध अधिकांश कंपनियां प्रमुख वैश्विक समूह हैं, जो एशिया, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया आदि के कुछ हिस्सों में अपने रीजनल ऑपरेशंस का संचालन करते हैं. जाहिर है कि मुख्यालय में निर्णय लेने से दुनिया के अन्य हिस्सों में ऑपरेशंस पर परिणाम होंगे.
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कैसे कर सकते हैं निवेश
कई ब्रोकरेज फर्म और वित्तीय संस्थान उन्हें अब विकल्प दे रहे हैं. उनके माध्यम से, अमेरिकी शेयरों में निवेश किया जा सकता है. यह सुनिश्चित भी किया जा सकता है कि भारतीय निवेशक हाई वैल्यू के बोझ में नहीं दबे हैं और इसका उत्तर फ्रेक्शनल ट्रेडिंग हो सकता है. दूसरा विकल्प अमेरिका में ब्रोकरेज खाता खोलना है, क्योंकि कई भारतीय वित्तीय सेवा प्रदाता भारतीय निवेशकों के लिए इसकी सुविधा दे रहे हैं. इसके अलावा, वे रुपए में ईटीएफ और यूएस-विशिष्ट अंतरराष्ट्रीय म्यूचुअल फंड में भी निवेश कर सकते हैं. इन जैसे विकल्प निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो की विविधीकरण रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, क्योंकि इससे उन्हें वैश्विक नवप्रवर्तकों पर दांव लगाने का अवसर मिलता है. सौभाग्य से, डिजिटलीकरण ने निवेश को आसान बना दिया है, और अंतरराष्ट्रीय निवेश के लिए प्रक्रियाएं अधिक आसान और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में निवेश तेज हो गई हैं.
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फ्रेक्शनल ट्रेडिंग से ले सकते हैं अमेरिकी बाजारों में एंट्री
अब निवेशकों को कम से कम एक डॉलर में भी शेयर का फ्रेक्शन आवंटित करने की अनुमति मिलने लगी है. यह शेयर का एक छोटा सा हिस्सा है और निवेश की गई राशि के अनुसार रिटर्न मिलता है. हर बार एक बड़ी टिकट कंपनी के शेयर का मूल्य तेजी से बढ़ता है. आरबीआई ने लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम के माध्यम से विनियामक सीमाएं लागू की हैं, जो निवेश की गई कुल राशि पर सीमा तय करती है और इतनी ही राशि देश के बाहर के शेयर बाजारों में निवेश के माध्यम से लगाई जा सकती है. वर्तमान में यह सीमा 250,000 डॉलर प्रति वर्ष है.
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डॉलर का भी मिल सकता है फायदा
अमेरिकी स्टॉक डॉलर में व्यापार करते हैं, इसलिए डॉलर में मूल्यवान रिटर्न प्रदान करने वाले आपके निवेश की संभावना बढ़ जाती है. यदि पिछले दस वर्षों में अमेरिकी डॉलर बनाम भारतीय रुपया की तुलना की जाए तो अंतर साफ दिखता है. डॉलर के मुकाबले रुपया लगभग 45% कम हो गया है. वहीं, एक वजह यह भी है कि उभरते बाजारों से आने वाले कई तकनीकी दिग्गज अमेरिकी बाजारों में अपना भाग्य आजमा रहे हैं. यानी कि उन्हें भी भविष्य में अमेरिकी स्टॉक में ज्यादा फायदा होने की उम्मीद है.

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